ईद-अल-ग़दीर
Author: Admin Labels:: ईद, फ़िरदौस ख़ान की क़लम से
आज ईद-अल-ग़दीर है. ईद-अल-ग़दीर 18 जिल'हिज्ज को मनाई जाती है. इस दिन अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ग़दीर-ए-ख़ुम के मैदान में मौला-ए-कायनात को सवा लाख हाजियों के दरम्यान, अल्लाह के हुक्म से अपना जानशीन और ख़लीफ़ा मुक़र्रर किया था.
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं-
जिसका मैं मौला, उसका अली मौला.
ग़ौरतलब है कि ग़दीर मक्का से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी, जहां तालाब था. इसके आसपास हरेभरे दरख़्त थे. क़ाफ़िले वाले इनकी छांव में आराम करते और तालाब का मीठा पानी पीते थे. बाद में यह तालाब एक बड़ी झील में तब्दील हो गया.
अली के नाम से तूफ़ान भी ख़ौफ़ खाते हैं
जिन्हें यक़ीन नहीं वो डूब जाते हैं
फ़रिश्ते कब्र में कुछ और पूछते ही नहीं
ज़ुबान पे नाम-ए-अली सुन के लौट जाते हैं...
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जिसका मैं मौला, उसका अली मौला.
ग़ौरतलब है कि ग़दीर मक्का से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी, जहां तालाब था. इसके आसपास हरेभरे दरख़्त थे. क़ाफ़िले वाले इनकी छांव में आराम करते और तालाब का मीठा पानी पीते थे. बाद में यह तालाब एक बड़ी झील में तब्दील हो गया.
अली के नाम से तूफ़ान भी ख़ौफ़ खाते हैं
जिन्हें यक़ीन नहीं वो डूब जाते हैं
फ़रिश्ते कब्र में कुछ और पूछते ही नहीं
ज़ुबान पे नाम-ए-अली सुन के लौट जाते हैं...