सेहत और ईमान बचाएं...

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फ़िरदौस ख़ान
मैगी को लेकर ख़बर है कि इसमें सुअर का मांस और ज़हरीले तत्व पाए गए हैं, जो सेहत के लिए बेहद नुक़सानदेह है... ख़बर के मुताबिक़ अट्टा मैगी में Bactosoytone नामक तत्व शामिल होता है, जो DSG (Disodium ग्लूटामेट), स्वाद-627 के नीचे छुपा हुआ होता है. इसे सामग्री में नहीं लिखा जाता. Bactosoytone एक उत्प्रेरक एंजाइम है, जो सुअर से लिया गया है.

समझ नहीं आता कि आख़िर फ़ैशन और आलस की वजह से लोग अपनी और अपने बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ कैसे कर लेते हैं...

अगर आपको मैगी ही खानी है, तो इसका घरेलू तरीक़ा अपनाएं. मैदे से घर में मैगी (नूडल्स) बना लें या फिर बाहर बनवाकर, इसे सुखाकर रख लें. जब मैगी खाने का मन हो, तो मनचाही मौसमी सब्ज़ियां और मसालें डालकर इसे पका लें... हां, इसमें दो मिनट की बजाय दस से पंद्रह मिनट लग जाएंगे, लेकिन आप ज़हर खाने से तो बच जाएंगे... साथ ही ईमान भी सलामत रहेगा...


तस्वीरें भास्कर से साभार

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अहमियत किस की रूह की या जिस्म की

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कबीर अली 
सारा खेल रूह (आत्मा) का है. रूह है, तो तकलीफ़ है, ख़ुशी है, ग़म है, हर चीज़ है. रूह चली जाए तो कुछ नहीं.
अब इंसान का पहला काम है रूह को पाक रखना. ये पाक साफ़ रहेगी, तो जिस्म से होने वाले काम सही होंगे. अच्छा सोचेगा, अच्छा करेगा. रूह ही ख़राब हो, तो जिस्म को कितना भी साफ़ कर लें, कुछ नहीं होगा. हर मज़हब में कहा गया है कि आत्मा अमर है. उसको मौत नहीं आती, याद रखो. इसी आत्मा से तुम्हारे करमो का हिसाब लिया जाएगा. लोग कहते हैं, किसने देखा? जबकि सबने देखा. सपना सभी देखते हैं, सोते हुए होते घर पर हैं. देखते हैं कहीं दूर किसी शहर में कोई आपको मारता है. बहुत लोग नींद में रोते हैं. जगाकर पूछो तो कहते हैं- बुरा सपना देखा. ये वही आत्मा पर चोट थी. इसी तरह मरने पर जिस्म ख़त्म हो जाएगा और आत्मा का हिसाब होगा. क्या किया, पैसा कैसे कमाया, कहां लुटाया? अनाथों. लाचारों. कमज़ोरों. के लिए क्या किया? लोग बुढ़ापे मे इबादत करते हैं, किस काम की ? जब किसी काम के नहीं रहे, तो अल्लाह याद आया.
दोस्तों ! आज अपनी इच्छाओं के गु़लाम ना बनो, कल कोई साथ नहीं आएगा.
क्या ख़ूब काहा है-
जमी है बरफ़ जो पलकों पर जमी रहने दे
ज़रा सी देर को ठंडी हवा भी रहने दे
ये शब गुज़ार दे तू लज्ज़ते-गुनाह के बग़ैर
बचा ले रूह को, जलता है जिस्म जलने दे

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IKHLAAS

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Ikhlaas ek raaz hai allah aour bande ke darmiyaan!
TABRANI) MOMIN KI NIYAT USKE AMAL SE BADI HOTI HAI!!
Amal kirdaar ka naam hai
Niyat ya ikhlaas miyaar ka naam hai!
Ikhlaas do hai
1) ARSHI IKHLAAS
2) FARSHI IKHLAASH
Islaam me contity matternahi hai islaam me quality matter hai
Quraan. Me jahan jahan ye asya
Sure taoba)119.. Aye imaan walon Allah se daro aour taqwa ikhtiyaar karo""
(ittaqullah)yahan muraad parhezgaari se hai darne se hai
(at taqwa minkum) yahan muraad ikhlaas sehai!
Aap 1000 nafal raat ko jaag kar padh lo kuch nahi hoga agar useme ikhlaas nahi hai!!
Lakhon log allah se dua karte hai qubool nahi hoti kiyu ki ikhlaas nahi hai!! Ab ikhlaas wo hai us amal ko kahete hai jo sirf aour sirf is niyat se kiya jaye ki Allah razi ho! Sirf Allah ke liye duniya ke dikhawe ko nahi!!
Ab raha sawal QUBOOLIYAT ka to QUBOOLIYAT ke mani hi ikhlaas wali ibadat ke hai!
IKHLAAS WALA DUA PER NATEEJE KA INTEZAAR NAHI. Karta! Ikhlaas hai hi usi cheez ka naam ke amal nazar na aaye jab amal nazar hi nahi aayega to natija kaisa ye raaz hai!!
-Kabir Ali

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ज़रा सोचिये

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फ़िरदौस ख़ान
हम अपने घर को रौशन करने के लिए तरह-तरह की लाइटें लगाते हैं... गर्मी से बचने के लिए हमें एसी चाहिए... क्या कभी आपने सोचा है कि क़ब्र में कितना अंधेरा होगा और कितनी गर्मी होगी... ?
क़ब्र के अंधेरे और गर्मी से बचने के लिए हमने अब तक क्या किया है...?
ज़रा सोचिये...
अल्लाह हम सबको क़ब्र के अज़ाब से बचा ले,आमीन

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नेकी राहत है, सुकून है...

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फ़िरदौस ख़ान
गरमी के मौसम में प्यासे राहगीरों को ठंडा पानी पिलाने से बड़ा सवाब भला और क्या हो सकता है... आसपास कई मिसालें मिल जाती हैं... पहले जहां राहगीरों के लिए सड़कों के क़रीब कुएं खुदवाए जाते थे और जगह-जगह घने दरख़्तों के नीचे पानी के मटके रखे जाते थे, वहीं अब पक्के प्याऊ बनाए जाते हैं और कई जगह ठंडे पानी की टंकियां भी रखी जाती हैं... देहात और क़स्बों में आज भी पानी के मटके देखे जा सकते हैं... कुछ लोग वक़्त निकालकर राहगीरों को ख़ुद पानी पिलाते हैं...
जहां आसपास पीने का पानी न हो, वहां अगर पानी से भरे कुछ घड़े रख दिए जाएं, तो कितना अच्छा हो... है न

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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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