तहज्जुद की नमाज़ की सुन्नतें

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कहते हैं, तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने वाला 72 लोगों को बख़्शवाता है... क्यों न हम भी तहज्जुदगुज़ार बनकर 72 लोगों को बख़्शवाने का ज़रिया बनें...
अल्लाह हमें राहे-हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे... आमीन

तहज्जुद की नमाज़
और किसी वक़्त रात में तहज्जुद पढ़ा करो जो तेरे लिए बेहतर चीज़ है, क़रीब है की तेरा रब मक़ाम महमूद में पहुंचा दे. अल क़ुरान  17:19

हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: (रमजान के रोज़े के बाद सबसे अच्छा रोज़ा अल्लाह के सम्मानित महीने "मुहर्रम" के रोज़े हैं,  और फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अच्छी नमाज़ रात की नमाज़ (तहज्जुद) की नमाज़ है. इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है.
1. तहज्जुद की नमाज़ के लिए सब से अच्छी संख्या ग्यारह या तेरह  रकअत है, विशेष रूप से देर देर तक खड़े रह कर. क्योंकि हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- के विषय में एक हदीस में है कि : (हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- ग्यारह रकअत पढ़ा करते थे, यही उनकी नमाज़ थी.) इसे बुखारी ने उल्लेख किया है.
एक और बयान में है कि:(वह रात में तेरह रकअत नमाज़ पढ़ा करते थे.) इसे भी बुखारी ने उल्लेख किया है.
2- और जब रात की नमाज़ के लिए उठे तो मिस्वाक करना सुन्नत है, इसी तरह यह भी सुन्नत है कि सुरह आले-इमरान की इस आयत को :

 ( إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ لَآياتٍ لِأُولِي الْأَلْبَابِ ((آل عمران: 190 )
 (निस्संदेह आकाशों और  धरती की रचना में और रात और दिन के आगे-पीछे बारी-बारी आने में बुद्धिमानों के लिए निशानियाँ हैं.) (आले-इमरान: 190)
से लेकर सूरा के अंत तक पढ़े.

3. इसी तरह यह भी सुन्नत है कि जो दुआएं हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-से साबित हैं वे दुआएं पढ़े जिन में यह दुआ भी शामिल है:
 (اللهم لك الحمد أنت قيم السموات والأرض ومن فيهن ، ولك الحمد أنت نور السموات والأرض ومن فيهن ، ولك الحمد أنت ملك السموات والأرض ، ولك الحمد أنت الحق ، ووعدك الحق ، ولقاؤك حق ، وقولك حق ، والجنة حق ، والنار حق ، والنبيون حق)
अल्लाहुम्मा लकल हमद, अन्ता क़य्येमुस-समावाति वल-अर्ज़ व मन फि हिन्ना, व लकल हमद अन्ता नुरुस-समावाति वल-अर्ज़ व मन फि हिन्ना, व लकल हमद अन्ता मलिकुस-समावाति वल-अर्ज़, व लकल हमद अन्तल-हक्क़, व वअदुकल- हक्क़, व लिक़ाउका हक्क़, वल-जन्नतु हक्क़, व क़ौलुका हक्क़, वल-जन्नतु-हक्क़, वन-नारू हक्क़, वन-नबिय्यूना हक्क़.

(हे अल्लाह! सारी प्रशंसा तेरे लिए है, तू आकाशों का और पृथ्वी का सिरजनहार और रखवाला है और जो उनमें हैं, सारी प्रशंसा तेरे लिए है, तू प्रकाश है आकाशों का और पृथ्वी का और जो उनमें हैं, और सारी प्रशंसा तेरे लिए है  तू आकाशों का और पृथ्वी का मालिक है, और सारी प्रशंसा तेरे लिए है तू हक़ है, और तेरा वचन हक़ है, और तुझ से भेंट हक़ है, और तेरी बात हक़ है, और स्वर्ग हक़ है, और नरक हक़ है, और सब पैगंबर हक़ हैं.)

4. सुन्नतों में यह भी शामिल है कि रात की नमाजों को पहले दो हलकी-फुल्की रकअतों से शुरू की जाए, यह इसलिए ताकि उन दोनों रकअतों के द्वारा बाद की नमाजों के लिए चुस्त रह सके: हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:(जब तुम में से कोई रात की नमाज़ के लिए खड़ा हो तो दो हलकी-फुल्की रकआतों से शुरू करे.)   इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है.

5. इसी तरह यह भी सुन्नत है कि रात की नमाज़ को हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-से साबित दुआ से शुरू करे:जिन में से एक दुआ यह है:
(اللهم رب جبريل وميكائيل وإسرافيل ، فاطر السموات والأرض ، عالم الغيب والشهادة ، أنت تحكم بين عبادك فيما كانوا فيه يختلفون إهدني لما اختلف فيه من الحق بإذنك إنك تهدي من تشاء إلى صراط مستقيم )
(अल्लाहुम्मा रब्बा जिबरीला व मीकाईला व इसराफीला, फातिरस-समावाति वल-अर्ज़, आलिमल-ग़ैबि वश-शहादा, अन्ता तह्कुमु बैना इबादिका फीमा कानू फ़ीहि यख्तलिफून, एहदिनी लिमख-तुलिफा फीहि मिनल-हक्क़ि बिइज़निका इन्नका तह्दी मन तशाउ इला सिरातिम-मुस्ताक़ीम)
(हे अल्लह! जिबरील और मीकाईल और इसराफील का मालिक! आकाशों और पृथ्वी का रचयिता, खुली और ढकी का जानने वाला, तू अपने भक्तों के बीच ऐसी हक्क़ बातों में फैसला करता है जिन में विवाद किया गया, तू मुझे अपनी दया से विवाद वाले हक्क़ में मार्ग दे, निस्संदेह तू जिसे चाहता है, सीधे रास्ते पर लाता है.) इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है.

6.  रात की नमाज़ को लंबी करना भी सुन्नत में शामिल है, हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-से प्रश्न किया गया कि कौन सी नमाज़ अधिक सराहनीय है? तो उन्होंने उत्तर दिया "तूलुल-क़ुनूत" यानी देर तक नमाज़ में ठहरना.) इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया.  इस हदीस में जो: "तूलुल-क़ुनूत"
"طول القنوت"
है उसका अर्थ है: देर तक नमाज़ में ठहरे रहना.
7.– जब सज़ा से संबंधित क़ुरान की आयत आए तो अल्लाह की पनाह माँगना भी सुन्नत है, उस समय यह पढ़ना चाहिए:
[ أعوذ بالله من عذاب الله ]

(अऊज़ु बिल्लाहि मिन अज़ाबिल्लाहि)
[मैं अल्लाह की शरण में आता हूँ अल्लाह की सज़ा से).
और जब दया से संबंधित आयत आए तो दया मांगनी चाहिए और यह पढ़ना चाहिए:
[ اللهم إني أسألك من فضلك ]
(अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका मिन फज़लिका)
[हे अल्लाह! मैं तुझ से तेरी कृपा मांगता हूँ]
 और जब अल्लाह की पवित्रता से संबंधित आयत आए तो अल्लाह की पवित्रता व्यक्त करे.

Courtesy rasoulallah

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