हज़रत मूसा और क़साब का क़िस्सा

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फ़िरदौस ख़ान   
 हमारी अम्मी हमें बहुत सी दुआएं दिया करती थीं. उनकी एक दुआ ऐसी थी, जिसे सुनकर हमारे चेहरे पर भी उसी तरह मुस्कान खिल उठती थी, जिस तरह अल्लाह के बन्दे क़साब का चेहरा खिल उठा था, जब उनकी मां ने उन्हें एक अज़ीम दुआ दी थी.  
हज़रत मूसा और क़साब का क़िस्सा कुछ इस तरह है. एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार!  जन्नत में मेरे साथ कौन होगा? उनके इस सवाल पर इरशाद हुआ कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम!  तुम्हारे साथ जन्नत में एक क़साब होगा. 
ये सुनने के बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम क़साब की तलाश में निकल पड़े. एक जगह उन्होंने क़साब को देखा, जो गोश्त बेच रहा था. उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा और ख़ामोशी से उसे देखते रहे.  आख़िरकार शाम का वक़्त हुआ. आपने देखा कि अब तक उसने अपना कारोबार ख़त्म कर लिया था. उसने गोश्त का एक टुकड़ा उठाया और उसे एक कपड़े में रखकर अपने घर की तरफ़ चल दिया.
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसका मेहमान बन जाने की उससे इजाज़त मांगी. वह इसके लिए ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गया और उन्हें अपने घर ले गया. इसके बाद क़साब ने गोश्त पकाया और रोटियां भी बनाईं.
फिर उसने एक प्याले में थोड़ा सा शोरबा निकाला और रोटियां लेकर एक हुजरे में चला गया.
वहां एक ज़ईफ़ औरत आराम फ़रमा रही थीं. उसने उन्हें सहारा देकर उठाया और बड़े प्यार से खाना खिलाने लगा. इसके बाद फिर वापस उन्हें आराम करने के लिए लिटा दिया. उस वक़्त उसके कान में इस ज़ईफ़ औरत ने कुछ कहा, जिसे सुनकर क़साब के चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गई. फिर वह हुजरे से बाहर आ गया. 
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ये सब माजरा देख रहे थे. उन्होंने क़साब से पूछा कि वह कौन हैं और उन्होंने तुम्हारे कान में ऐसा क्या कहा, जिससे तुम्हारे चेहरे पर एकदम से मुस्कान खिल उठी. क़साब ने उन्हें  बताया कि ऐ अजनबी मेहमान ! ये ज़ईफ़ औरत मेरी मां है. जब मैं अपना कारोबार ख़त्म करके शाम को घर आता हूं, तो खाना पकाकर सबसे पहले मैं इन्हें खिलाता हूं और इनकी ख़िदमत करता हूं. इसके बाद ही मैं अपना और कोई काम करता हूं.
हर रोज़ मेरी मां ख़ुश होकर मुझे दुआ देती है और आज तो उन्होंने ऐसी दुआ दी, जिसे सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई. वे कह रहीं थीं- अल्लाह तुझे जन्नत में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ रखे. बस मैं उनकी इसी बात को सुनकर मुस्कुरा रहा था और अपने दिल में सोच रहा था- या मेरे मौला, कहां में एक गुनाहगार और कहां अल्लाह के नबी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम.
क़साब की बात सुनकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा कि मैं ही अल्लाह का नबी मूसा हूं. तुम्हारी मां सच कहती हैं. तुम जन्नत में मेरे साथ रहोगे. 
सच ! मां की दुआएं कभी ज़ाया नहीं होतीं. 

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

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