फ़रिश्ते कौन हैं

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ख़ुदाय वाहदहु ला शरीक जो सब मख़लूक का ख़ालिक़ और मालिक है.
उसने इंसान को मिट्टी से अपनी इबादत और इताअत के लिए पैदा किया है. और फ़रिश्तों को उसने नूर से पैदा करके उन को हमारी नज़रों से छुपा दिया है. उनका मर्द या औरत होना कुछ नहीं बतलाता, उनको फ़रिश्ते कहते हैं. अल्लाह तआला ने उनको हर तरह की सूरत में बन जाने की क़ुदरत दी हैं. फ़रिश्ते चाहें, तो हवा बन जाएं, इंसान बन जाएं या किसी जानवर बन जाएं. वे किसी भी शक्ल में ख़ुद को ढाल सकते हैं.
इनके पर भी होते हैं, किसी के दो पर, किसी के तीन पर, किसी के चार पर.इनकी ख़ुराक अल्लाह तआला की याद और ताबेदारी करना है. तमाम ज़मीन-ओ-आसमान का इंतज़ाम इनके सपुर्द है.
वो कोई काम अल्लाह तआला के हुक्म के खिलाफ़ नही करते. इनमें यह चार फ़रिश्ते बड़ा रूतबा रखते हैं.
हज़रत जिबराईल (अलैहिस्सलाम)
हज़रत मीकाईल (अलैहिस्सलाम)
हज़रत इस्राफ़िल (अलैहिस्सलाम)
हज़रत इज़राईल (अलैहिस्सलाम)
हज़रत जिबराईल अल्लाह तआला के अहकाम और किताबें रसूलों और नबियों के पास लाते थे. बाज़ मौक़े पर अल्लाह तआला उन्हें रिज़्क़ पहुंचाने और बारिश वग़ैरह के कामों पर मुक़र्रर किया हैं. बहुत से फ़रिश्ते उनकी मातहती में काम करते हैं. कुछ बादलों और हवाओं, दरियाओं, तालाबों और नहरों के कारोबार में लगे हुए हैं.
हज़रत इस्राफ़िल सूर लिए खड़े हैं. जब क़यामत होगी वो सूर बजाएंगे.
हज़रत इज़राईल मलक-उल-मौत मख़लूक़ की जान निकलने के लिए मुक़र्रर हैं और बहुत से फ़रिश्ते उनकी मातहती में काम करते हैं. नेक और बद लोगों की जान निकलने वाले फ़रिश्ते अलग-अलग हैं. दो फ़रिश्ते इंसान के अच्छे और बुरे अमल लिखने वाले हैं. इन्हें किरमान कातेबीन कहते हैं.
बाज़ फ़रिश्ते इंसान को मुसीबत से बचाने के लिए मुक़र्रर हैं. ये अल्लाह तआला के हुक्म से हिफ़ाज़त करते हैं.
बाज़ फ़रिश्ते जन्नत और दोज़ख़ के इंतज़ामात के लिए मुक़र्रर हैं. बाज़ फ़रिश्ते हर वक़्त अल्लाह तआला की इबादत और याद में मशग़ूल रहते हैं.
बाज़ फ़रिश्ते दुनिया में काम करने आते हैं, उनकी सुबह व शाम बदली भी होती है. सुबह की नमाज़ के बाद रात में काम करने वाले फ़रिश्ते आसमान पर चले जाते हैं. उनकी जगह दिन में काम करने वाले फ़रिश्ते आ जाते हैं. ये फ़रिश्ते अस्र की नमाज़ के बाद चले जाते हैं.
बाज़ फ़रिश्ते दुनिया में फिरते हैं और जहां अल्लाह तआला का ज़िक्र होता हो, जैसे क़ुरआन मजीद पढ़ा जाता हो, या बुज़ुर्गों और आलिमों की सोहबत में दीन का ज़िक्र होता हो, ये वहां जमा होते हो जाते हैं.
फिर उनके शरीक होने की गवाही अल्लाह तआला के सामने देते हैं और यह सब बातें क़ुरआन व हदीस में मौजूद हैं.
पेशकश : वाजिद शेख़

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بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

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