सलाम

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अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और बहुत रहमवाला है.

सब तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं, जो तमाम जहां का पालने वाला है, हम उसी की तारीफ़ करते हैं और उसी का शुक्र अदा करते हैं. अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ (पूजनीय) नहीं है, वह अकेला है और उसका कोई साझी और शरीक (भागीदार) नहीं है. मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह के बंदे (ग़ुलाम) और रसूल (पैग़म्बर / संदेशवाहक) हैं.
अल्लाह की बेशुमार रहमतें और सलामती नाज़िल, जो उनके रसूल (स.अ.व.) पर और उनकी आल-औलाद और उनके साथियों पर.

आमतौर पर यह देखा गया है कि जब एक इंसान दूसरे इंसान से मिलता है, तो सबसे पहले अभिवादन करता है, जिसकी वजह से उन दोनों व्यक्तियों में एक विश्वास पैदा होता है. वो विश्वास की वजह से जिनसे उनके बीच एक गहरा रिश्ता बनता और उनमें मुहब्मबत बढ़ती है.

‘इस्लाम’ एक भाईचारा बढ़ाने वाला धर्म है. ‘इस्लाम’ वह एक अरेबिक शब्द है जिसका का मूल शब्द है ‘सलम’, मतलब ‘सलामती’.इस्लाम में जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मिलता है, तो वह एक दूसरे से अभिवादन के तौर पर ‘अस्सलामु अलैकुम’ या ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’ या फिर पूर्ण रूप से ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातहू’ कहते हैं, जिसका मतलब होता है ‘अल्लाह की आप पर सलामती, दया और कृपा रहे’. यह एक दुआ (प्रार्थना) है, जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शुभकामना और सलामती के लिए अल्लाह (परमेश्वर) से करता है.

सलाम की शुरुआत
अबू हुरैरा (रज़ि) की रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, जब अल्लाह ने आदम (अ.स.) को पैदा किया और उन्हें हुक्म दिया कि “जाओ और फ़रिश्तों  सलाम करो और सुनो वो आपको क्या जवाब देते हैं, वो आपके लिए और आपके आने वाली नस्लों के लिए सलाम के शब्द होंगे. आदम (अ.स.) उनके पास गए और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम’ तो उन्होंने जवाब दिया, ‘वालेकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह’. (सहीह बुख़ारी)

अल्लाह के क़ुरआन में सलाम
क़ुरआन में अल्लाह तअला ने एक दूसरे को सलामती की दुआ करने के लिए कहा है और जब आपको सलाम कहा जाए, तो उसे बेहतरीन शब्दों के साथ जवाब देना चाहिए.

“जब आपको कोई सलामती की दुआ दी जाए, तो तुम भी सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है”. (सूरह निशा 4.86)
“मौत के फ़रिश्ते जब प्राण (रूह) निकलने के लिए आते हैं, तो वो पाक साफ़ (नेक) लोगों को सलाम कहते हैं और फिर जन्नत में प्रवेश होने की शुभ सूचना देते हैं ।” (सूरह नहल 16.32)
सिर्फ़ इतना ही नहीं, बल्कि यह सलामती की दुआ सिर्फ़ इस दुनिया में ही नहीं, मगर जन्नत में भी यही दुआ है, जो जन्नत के चौकीदार और जन्नतवासी एक दूसरे को करेंगे.
“जन्नत के चौकीदार जन्नत में आने वाले को सलाम कहेंगे.” (सूरह अज जुमर 39.73)
“जन्नती जब आपस में मिलेंगे, तो एक दूसरे को सलाम करेंगे.” (सूरह यूनुस 10.10)

रसूल (स.अ.व.) का सलाम के बारे में फ़रमान
जब भी कोई मुसलमान अपने किसी मुसलमान से मिलता है, तो उस का कर्तव्य है कि वो उसको सलाम करे.
अब्दुल्लाह इब्न अम्र से रिवायत है कि एक व्यक्ति ने नबी (स.अ.व.) से पूछा, कौन-सा अमल इस्लाम में सबसे बेहतर है? नबी (स.अ.व.) ने जवाब दिया, “भूखे को खाना खिलाना और परिचित तथा अपरिचित व्यक्ति को सलाम करना”. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

अबू हुरैरा (रदी) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) को कहते सुना है कि एक मुसलमान के दूसरे पर पांच अधिकार हैं, “जब वह मिले, तो उसे सलाम करे, जब वह दावत दे, तो उसे क़ुबूल करे, जब वह राय (सलाह) मांगे, तो उसे बेहतर सलाह दे, जब वह छीकें तो उसका जवाब दे, जब वह बीमार हो, तो उसकी ख़बर पूछे और जब वह मर जाए तो उसके जनाज़े में जाए”. (सहीह बुख़ारी)

अत तुफ़ैल इब्न उबय्य इब्न काब से रिवायत है कि वह अब्दुल्लाह इब्न उमर की मुलाक़ात के लिए जाते थे और उसके साथ बाज़ार के लिए जाना होता था. उन्होंने कहा, जब हम बाज़ार के लिए गए, तो अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कोई भी व्यक्ति को सलाम किए बिना नहीं गुज़रे चाहे वो कचरा उठाने वाला हो या व्यापारी या गरीब व्यक्ति या और कोई”. (सहीह बुख़ारी)

नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “सलाम अल्लाह का एक नाम है, जो अल्लाह ने इस दुनिया में रखा है. उसे लोगो में फैलाओ. जब इंसान लोगों को सलाम करता है और लोग उसे जवाब देते हैं, तो उसका दर्रजा ऊंचा होता है, क्योंकि उसने उनको शांति की याद दिलाई. अगर किसी ने जवाब नहीं दिया, तो उसे वो जवाब देगा, जो अच्छा और बहुत ही शान वाला है”. (सहीह बुख़ारी)

नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, सबसे अच्छा वह है, जो सलाम में पहल करे. (अबू दावूद और तिरमिज़ी)

जाबिर (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया कि सवार पैदल चलने वाले को सलाम करे और पैदल चलने वाला बैठे हुए व्यक्ति को सलाम करे और दो चलने वालों में अच्छा वो है, जो सलाम में पहल करे (सहीह बुख़ारी और सहीह इब्ने-हिब्बान)

एक व्यक्ति नबी (स.अ.व.) के पास आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम’, आपने उसका उत्तर दिया और वह बैठ गया. आपने फ़रमाया, ‘दस’ अर्थात तुझे दस नेकियां मिलीं. एक दूसरा व्यक्ति आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’, आपने उसका उत्तर दिया और वह बैठ गया, आपने फ़रमाया, ‘बीस’ अर्थात तुझे बीस नेकियां मिलीं. एक तीसरा व्यक्ति आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह’, आपने उसका उत्तर दिया और फ़रमाया, ‘तीस’ अर्थात तुझे तीस नेकियां मिलीं. (अबू दावूद और तिरमिज़ी)

अबू हुरैरह (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “आप में से कोई जब मजलिस में आए,  तो सलाम करे और जब लौटे तो भी सलाम करे”.  (सहीह बुख़ारी)

अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) पर सलाम
अल्लाह ईमान वालों को कहते हैं कि हम, हमारे फ़रिश्ते अपने रसूल (स.अ.व.) पर सलामती की दुआ भेजते हैं और आप भी उन पर बेशुममार सलाम भेजा करो.

“बेशक अल्लाह और इस के फ़रिश्ते नबी (स.अ.व.) पर रहमत भेजते हैं, ऐ ईमान वालो ! तुम भी इन (नबी) पर रहमत और सलामती की ख़ूब दुआ भेजा करो.“  (सुरह अल अहजाब 33.56)

जिब्राईल (अ.स.) का ख़दीजा (रइ) और आयशा (रज़ि) को सलाम कहना
ख़दीजा (रज़ि) नबी (स.अ.व.) की पवित्र पत्नी थी, उनकी बहुत सी श्रेष्ठताएं थीं, जिनमें से एक यह थी कि एक बार जिब्राईल (अ.स.) आए और उन्होंने नबी (स.अ.व.) से कहा, “ऐ मुहम्मद, अगर आपके पास ख़दीजा आए तो उनके रब और मेरी ओर से उनको सलाम पहुंचाना, और उनको यह शुभ समाचार सुना देना कि जन्नत में उनके लिए एक ऐसा घर है, जिसमें न किसी प्रकार का शोरगुल होगा, न कभी उनको उसमें कोई थकान होगी. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

आयशा (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने कहा, “आयशा! यह जिब्राईल हैं, तुम्हे सलाम कह रहे हैं”, तो मैंने कहा, “वालेकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह”, आप उन्हें देख सकते हैं, मगर मैं नहीं देख सकती.” (सहीह बुख़ारी)

सलाम करने के फ़ायदे
इस्लाम के तरीक़े से सलाम करने के बहुत से फ़ायदे हैं, जिनमें से कुछ निम्न दिए गए हैं-
सलाम करने से इंसान विनम्र बनता है और विनम्र इंसान सबको प्यारा होता है.
सलाम में पहल की वजह से अहंकार नष्ट होता है.
अगर आप किसी से सलाम करते हैं, तो इसका मतलब यह होता है की आप उसकी ख़ैर व भलाई चाहते हैं, जिससे आप दोनों के बीच में मुहब्बत बढ़ती है.
किसी अपरिचित व्यक्ति से आप सलाम करते हैं, तो उससे आप दोनों में पहचान बढ़ती है.

 ग़ैर मुस्लिम से सलाम और उनके सलाम का जवाब
अबू हुरैरा (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “यहूदी और नसारा को सलाम में पहल न करो”. (सहीह मुस्लिम)

“जब आपको कोई सलामती की दुआ दी जाए, तो तुम भी सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है”. (सुरह निसा 4.86)

अनस बिन मालिक (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, अगर अहले-किताब आपसे सलाम करे, तो आप उनको ‘वालेकुम’ कहो. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

इब्ने-अल कय्यिम (रह) ने कहा कि अगर यहूदी और नसारा आपको सलाम करें, तो उनको भी सलाम का उसी अंदाज़ में जवाब दो. यही सही तरीक़ा है कि वो आपके लिए सलामती की दुआ करें, तो आप भी करो. (अहकाम अहल अध् धिम्म 1/200)
साभार arifmansuri

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