फ़हम अल क़ुरआन

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हम फ़हम अल क़ुरआन लिख रहे हैं. ये कोई आसान काम नहीं है. एक-एक लफ़्ज़ पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करना होता है. सारी तवज्जो इसी बात पर होती है कि कहीं ज़रा सी भी चूक न हो जाए.
फिर सोचते हैं कि जिस मौला ने इस अज़ीम और मुक़द्दस काम को करने की हिदायत दी है, वही इसे मुकम्मल भी कराएगा. ये हमारा यक़ीन है अपने पाक परवरदिगार पर. फिर अल्लाह के महबूब और हमारे प्यारे आक़ा हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेहर भी तो है.
इस अज़ीम काम को करते वक़्त पापा बहुत याद आते हैं. बचपन में पापा क़ुरआन करीम के बारे में हमें बताया करते थे. वे कहा करते थे कि क़ुरआन एक मुकम्मल पाक किताब है. ये हिदायत भी है और शिफ़ा भी. 
आपसे दुआओं की दरख़्वास्त है
फ़िरदौस ख़ान     
20 अप्रैल 2015
#फ़हम_अल_क़ुरआन

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काबा शरीफ़ के अंदर का नज़ारा

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सुब्हान अल्लाह 
काबा शरीफ़ के अंदर का नज़ारा 



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खाना...

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एक बुज़ुर्ग फ़रमाते हैं कि मैं एक मस्जिद में नमाज़ अदा करने गया. वहां मैंने देखा कि एक मालदार ताजिर (व्यापारी) बैठा हैं और क़रीब ही एक फ़क़ीर दुआ मांग रहा हैं-
"या अल्लाह तआला, आज मैं इस तरह का खाना और इस क़िस्म का हलवा खाना चाहता हूं".
ताजिर ने ये दुआ सुनकर बदगुमानी करते हुए कहा- "अगर ये मुझसे कहता तो मैं इसे ज़रूर खिलाता, मगर ये बहाना साज़ी कर रहा है और मुझे सुनाकर अल्लाह तआला से दुआ कर रहा है, ताकि मैं सुनकर इसे खिला दूं, वल्लाह मैं तो इसे नहीं खिलाऊंगा".
वो फ़क़ीर दुआ से फ़ारिग़ होकर एक कोने में सो गया. कुछ देर बाद एक शख़्स ढका हुआ तबाक़ लेकर आया और दायें बायें देखता हुआ फ़क़ीर के पास गया और उसे जगाने के बाद वो तबाक़ ब सद आजिज़ी उसके सामने रख दिया. ताजिर ने ग़ौर से देखा, तो ये वही खाने थे जिनके लिए फ़क़ीर ने दुआ की थी. फ़क़ीर ने ख़्वाहिश के मुत़ाबिक़ इसमें से खाया और बाक़ी खाना वापस कर दिया.
ताजिर ने खाना लाने वाले शख़्स को अल्लाह तआला का वास्ता देकर पूछा- "क्या तुम इन्हें पहले से जानते हो"?
खाना लाने वाले शख़्स ने जवाब दिया- "ब खुदा, हरगिज़ नहीं, मैं एक मज़दूर हूं, मेरा जमाई और बेटी साल भर से इन खानों की ख़्वाहिश रखते थे, मगर मुहैया नहीं हो पाते थे. आज मुझे मज़दूरी में एक मिस्क़ाल (यानी साढ़े चार माशा) सोना मिला, तो मैंने उससे गोश्त वग़ैरह ख़रीदा और घर ले आया. मेरी बीवी खाना पकाने में मसरूफ़ थी कि इस दौरान मेरी आंख लग गई. आंखें तो क्या सोईं, सोई हुई क़िस्मत अंगड़ाई लेकर जाग उठी. मुझे ख़्वाब में सरवरे-दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का जलवा-ए-ज़ैबा नज़र आ गया और हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने अपने मुबारक लबों को जुम्बिश दी और फ़रमाया-
"आज तुम्हारे इलाक़े में अल्लाह तआला का एक वली आया हुआ है. उसका क़याम मस्जिद में है, जो खाने तुमने अपने बीवी बच्चों के लिए तैयार करवाए हैं, उन खानों की उसे भी ख़्वाहिश है. उसके पास ले जाओ वो अपनी ख़्वाहिश के मुत़ाबिक़ खाकर वापस कर देगा, बक़िया में अल्लाह तआला तेरे लिए बरकत अता फ़रमाएगा और मैं तुम्हारे लिए जन्नत की ज़मानत देता हूं".
नींद से उठकर मैंने हुक्म की तामील की, जिसे तुमने भी देखा.
वो ताजिर कहने लगा- "मैंने इन्हें इन्हीं खानों के लिए दुआ मांगते सुना था. तुमने इन खानों पर कितनी रक़म ख़र्च की"?
उस शख़्स ने जवाब दिया- "मिस्क़ाल भर सोना".
उस ताजिर ने पेशकश की- क्या ऐसा हो सकता हैं कि मुझसे दस मिस्क़ाल सोना ले लो और उस नेकी में मुझेभी हिस्सेदार बना लो"?
उस शख़्स ने कहा- "ये नामुमकिन है".
ताजिर ने इज़ाफ़ा करते हुए कहा- "अच्छा मैं तुझे बीस मिस्क़ाल सोना दे देता हूं".
उस शख़्स ने अपने इंकार को दोहराया. फिर उस ताजिर ने सोने की मिक़दार बढ़ाकर पचास फिर सौ मिस्क़ाल कर दी, मगर वो शख़्स अपने इंकार पर डटा रहा और कहने लगा- "वल्लाह, जिस शै की ज़मानत रसूले-अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दी है, अगर तू उसके बदले सारी दुनिया की दौलत भी दे दे फिर भी मैं उसे फ़रोख़्त नहीं करूंगा, तुम्हारी क़िस्मत में ये चीज़ होती, तो तुम मुझसे पहले कर सकते थे".
ताजिर निहायत नादिम और परेशान होकर मस्जिद से चला गया, गोया उसने अपनी क़ीमती चीज़ खो दी हो.

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इशराक़ की नमाज़

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इशराक़ की नमाज़ हज और उमरा का सवाब
हज़रत अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-" जो शख़्स नमाज़-ए-फ़ज्र बा-जमाअत अदा करे, फिर (अपनी जगह पर) बैठकर सूरज तुलुअ होने तक अल्लाह का ज़िक्र करता रहे. फिर 2 रकअत (इशराक़ की) नमाज़ पढ़े, तो उसे कामिल हज और उमरा का सवाब मिलता है."
हज़रत हसन बिन अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद नक़ल किया गया है, जो शख़्स फ़ज्र की नमा पढ़कर सूरज निकलने तक अल्लाह तअला के ज़िक्र में मशग़ूल रहता है. फिर दो या चार रकअत (इशराक़ की नमाज़) पढ़ता है, तो उसकी खाल को भी दोज़ख़ की आग न छुएगी.



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رحمتوں کی بارش

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 اپنے پیارے آقا حضرت محممد صللاہ علیہ وسلم کی شان میں کلام
...رحمتوں کی بارش 
میرے مولا
رحمتوں کی بارش کر ہمارے آقا
حضرت محممد صلللاہ علیہ وسلم پر
جب تک
کائنات روشن
رہے
آفتاب نکلتا رہے
شام ڈھلتی رہے
اور رات آتی جاتی رہے
میرے مولا
سلام نازل فرما
ہمارے نبی صلللاہ علیہ وسلم
اور آل نبی کی روحوں پر
ازل سے ابد تک
فردوس خان-

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عقیدت کے پھول

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 اپنے پیارے آقا حضرت محمًد
صلً اللہ علیہ وسلم کی شان میں 

... عقیدت کے پھول
میرے پیارے آقا
میرے خدا کے محبوب 
صلً اللہ علیہ وسلم
آپ کو لا کھوں سلام 
پیارے آقا 
ہر صبح 
چمبیل کے 
مہکتے سفید پھول 
چنتی ہوں 
اور سوچتی ہوں 
یہ پھول کس طرح آپ کی خدمت میں پیش کروں 
میرے آقا 
چاہتی ہوں 
آپ ان پھولوں کو قبول کریں 
کیونکہ 
یہ صرف چمبیل کے 
پھول نہیں ہیں 
یہ میری عقیدت کے پھول ہیں 
جو آپ کے لئے ہی کھلے ہیں 
فردوس خان-

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अल्लाह की नेमतें

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अल्लाह ने हमें ज़िन्दगी दी. वालदेन दिए, भाई-बहन दिए, रिश्तेदार दिए, दोस्त दिए. लज़ीज़ खाने दिए. और ख़ूबसूरत नज़ारे दिए. अल्लाह ने हमें मुहब्बत की नेमत से नवाज़ा. हम अल्लाह की नेमतों का जितना भी शुक्र अदा करें, कम है.

अल क़ुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है- तो तुम अपने परवरदिगार की कौन कौनसी नेमतों को झुठलाओगे.
(सूरह रहमान में 13 मर्तबा)
#क़ुरान

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अल्लाह की मर्ज़ी

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हम ज़िन्दगी में बहुत कुछ चाहते हैं. और जब हमारी चाह पूरी नहीं होती, तो हम उदास हो जाते हैं. लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि जो कुछ होता है, सिर्फ़ अल्लाह की मर्ज़ी से ही होता है.

अल क़ुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है-
और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता, जब तक अल्लाह न चाहे.

(क़ुरान 76:30)
#क़ुरान

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अल्लाह की रहमत

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ऐसा नहीं है कि ज़िन्दगी के आंगन में सिर्फ़ ख़ुशियों के ही फूल खिलते हैं, दुख-दर्द के कांटे भी चुभते हैं. कई बार उदासियों का अंधेरा घेर लेता है. ऐसे में कुछ चीज़ें हुआ करती हैं, जो उम्मीद की रौशनी बनकर हिम्मत बढ़ाती हैं. और हाथ थाम कर रौशनी की सिम्त ले चलती हैं.

अल क़ुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है-
अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद मत होना.

(क़ुरान 39:53)
#क़ुरान

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ख़ुशी

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ज़िन्दगी में ऐसा वक़्त भी आता है जब अल्लाह हमें अपनी ऐसी नेमतों से नवाज़ता है, जिसका हमने कभी तसव्वुर भी नहीं किया होता.
अल क़ुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है- और अनक़रीब तुम्हारा अल्लाह तुम्हें इतना देगा कि तुम ख़ुश हो जाओगे.
(क़ुरान 93:5)
#क़ुरान

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ज़िन्दगी का मक़सद क्या है?

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इंसान सारी उम्र भागता रहता है. उसे ख़ुद नहीं पता होता कि वह चाहता क्या है. जब तक उसे इस बात का अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. ज़िन्दगी का असल मक़सद अल्लाह की इबादत करना है, बाक़ी सराब है.

अल क़ुरान  में अल्लाह ने फ़रमाया है- मैंने जिन्नात और इंसानों को महज़ अपने लिए पैदा किया है कि वे सिर्फ़ मेरी इबादत करें.
क़ुरान 51:56
#क़ुरान

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सुकून

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इंसान सुकून की तलाश में कहां कहां भटकता है, लेकिन सुकून उसे अल्लाह की पनाह में ही मिलता है.
अल क़ुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है- याद रखो अल्लाह ही की याद से इत्मीनान नसीब होता है दिलों को.
(क़ुरान 13:28)
#क़ुरान

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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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