सोने और चांदी के गहने की ज़कात

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विद्वान इस बात पर सहमत हैं सोने और चाँदी के आभूषणों पर ज़कात अनिवार्य है यदि वह गहना हराम इस्तेमाल के लिए है, या वह व्यापार इत्यादि के लिए तैयार किया गया है। किन्तु अगर वह वैध आभूषण है जो इस्तेमाल के लिए, या उधार देने के लिए तैयार किया गया है जैसे कि चाँदी की अंगूठी, महिलाओं का आभूषण तथा जो हथियार के दस्तें के लिए वैध किया गया है, तो इस में ज़कात के अनिवार्य होने के बारे में विद्वानों का मतभेद है। कुछ विद्वान इस बात की ओर गये हैं कि उस में ज़कात अनिवार्य है क्योंकि वह अल्लाह तआला के इस कथन के सामान्य अर्थ के अंतर्गत आता है : “और जो लोग सोने चाँदी का कोष (खज़ाना) रखते हैं और उसे अल्लाह के मार्ग में खर्च नहीं करते उन्हें कष्टदायक सज़ा की सूचना पहुँचा दीजिए।” (सूरतुत्तौबा :34)

क़ुर्तुबी अपनी तफसीर में कहते हैं : इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने सहीह बुखारी में इस अर्थ का वर्णन किया है, एक दीहाती ने उन से कहा : मुझे अल्लाह तआला के फरमान : “और जो लोग सोना और चाँदी इकट्ठा कर के रखते हैं।” के बारे में बतायें। इब्ने उमर ने कहा : “जिस ने उसे इकट्ठा कर के रखा और उस का ज़कात नहीं दिया तो उस के लिए बर्बादी है, यह ज़कात का आदेश उतरने से पहले था, जब ज़कात का आदेश आ गया तो अल्लाह तआला ने उसे धन के शुद्धिकरण का साधन बना दिया।” (बुखारी 2/111 (तालीक़न), 5/204 (तालीक़न), इब्ने माजा 1/569 – 570 (हदीस संख्या : 1787), बैहक़ी 4/82)

तथा इसलिए भी कि ऐसी हदीसें आई हैं जो इस बात की अपेक्षा करती हैं, उन्हीं में से वह हदीस है जिसे अबू दाऊद, नसाई और तिर्मिज़ी ने अम्र बिन शुऐब से और उन्हों ने अपने बाप और दादा के द्वारा रिवायत किया है कि : एक महिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई जिस के साथ उस की एक लड़की भी थी, और उसकी लड़की के हाथ में दो सोने के मोटे कंगन थे। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस से कहा : “क्या तुम इस की ज़कात देती हो ?” उस ने कहा : नहीं। आप ने फरमाया : “क्या तुम्हें यह बात पसंद है कि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन तुझे इन के बदले आग के दो कंगन पहनाये ?” इस पर उस महिला ने उन दोनों को निकाल कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर फेंक दिया और कहा कि : वे दोनों अल्लाह और उस के रसूल के लिए हैं।

(अहमद 2/178, 204, 208, अबू दाऊद 2/212 (हदीस संख्या : 1563), तिर्मिज़ी 3/29-30 (हदीस संख्या :637), नसाई 5/38 (हदीस संख्या : 2479, 2480), दारक़ुतनी 2/112, इब्ने अबी शैबा 3/153, अबू उबैद (किताबुल अमवाल पृ0 537 हदीस संख्या : 1260, संस्करण हर्रास), बैहक़ी 4/140)

तथा अबू दाऊद ने अपनी सुनन में, हाकिम ने अपनी मुसतदरक में और दारक़ुतनी और बैहक़ी ने अपनी अपनी सुनन में आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे पास आये तो आप ने मेरे हाथ में चाँदी के छल्ले देख कर फरमाया : “ऐ आइशा, यह क्या है ?” मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, मैं ने इन्हें इस लिए तैयार किया है ताकि आप के लिए बनवा-सिंघार करूँ। आप ने फरमाया : “क्या तुम इन की ज़कात देती हो ?” मैं ने कहा : नहीं या जो अल्लाह ने चाहा, आप ने फरमाया : “यह तुम्हारे नरक के लिए काफी है।” (अबू दाऊद 2/312 हदीस संख्या : 1565, और शब्द अबू दाऊद के ही हैं, दारक़ुतनी 2/105-106, हाकिम 1/389-390, बैहक़ी 4/139)

तथा वह हदीस भी आधार है जिसे उन्हों ने उम्मे सलमह से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं सोने के आभूषण पहनती थी तो मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, क्या यह खज़ाना है ? तो आप ने फरमाया : “जो ज़कात अदा किये जाने की राशि को पहुँच गया और उस का ज़कात निकाल दिया गया तो वह खज़ाना नहीं है।” (अबू दाऊद 2/212-213 हदीस संख्या : 1564, दारक़ुतनी 2/105, हाकिम 1/390, बैहक़ी 4/83, 140)

तथा कुछ लोग इस बात की ओर गये हैं कि उस में ज़कात अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि वह जाइज़ इस्तेमाल के द्वारा कपड़े और अन्य वस्तुओं की तरह बन गया, वह मूल्यों के वर्ग से नहीं रह गया। तथा उन्हों ने आयत के सामान्य अर्थ का उत्तर यह दिया है कि वह सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के अमल से विशिष्ट हो जाता है, क्योंकि सहीह (शुद्ध) इसनाद के द्वारा आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से प्रमाणित है कि वह अपने भाई की अनाथ बेटियों की देखभाल करती थीं जिन के पास आभूषण थे, तो वे उन की ज़क़ात नहीं निकालती थीं।

तथा दारक़ुतनी ने अपनी इसनाद के साथ अस्मा बिन्त अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि वह अपनी बेटियों को सोने के आभूषण पहनाती थीं और उन की ज़कात नहीं निकालती थीं, जिन का मूल्य लगभग पचास हज़ार था। (सुनन दारक़ुतनी 2/109)

अबू उबैद अपनी किताब “अल-अमवाल” में कहते हैं : हम से हदीस बयान किया इसमाईल बिन इब्राहीम ने, उन्हों ने रिवायत किया नाफिअ़ से और उन्हों ने रिवायत किया इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से कि वह अपनी बेटियों में से एक औरत की शादी दस हज़ार पर करते थे और वह उन में से चार हज़ार का उस के लिए आभूषण तैयार करते थे। उन्हों ने कहा कि तो वे उस की ज़कात नहीं देते थे। (दारकु़तनी ने इसी के समान रिवायत किया है 2/109, अबू उबैद ने अल-अमवाल में रिवायत किया है, पृ0 540 हदीस संख्या : 1276, (हर्रास संस्करण), बैहक़ी 4/138).

तथा उन्हों ने कहा : इसमाईल बिन इब्राहीम ने हम से हदीस बयान किया अय्यूब से, और उन्हों ने अम्र बिन दीनार से कि उन्हों ने कहा कि : जाबिर बिन अब्दुल्लाह से पूछा गया कि : क्या आभूषण में ज़कात है ? उन्हों ने उत्तर दिया : नहीं, कहा गया: यदि वह दस हज़ार को पहुँच जाये ? कहा : यह बहुत है। (इसे शाफेई ने अपनी मुसनद (सिंदी के क्रम के साथ) 1/228 हदीस संख्या : 629 में और अल-उम्म 2/41 में रिवायत किया है, अबू उबैद किताबुल अमवाल पृ0 540 हदीस संख्या : 1275 (हर्रास संस्करण), बैहक़ी 4/138).

इन दोनों कथनों में सब से उच्च कथन उन लोगों का है जिन्हों ने आभूषण में ज़कात के अनिवार्य होने की बात कही है, जबकि वह निसाब (ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम राशि) को पहुँच जाये, या उस के मालिक के पास सोने और चाँदी, या व्यापार के सामान में से इतनी राशि हो जिस से निसाब पूरा हो जाये ; क्योकि सोने और चाँदी में ज़कात के अनिवार्य होने की हदीस सामान्य है, और हमारे ज्ञान के अनुसार उस को विशिष्ट करने वाला कोई प्रमाण नहीं है, तथा अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस, आइशा और उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु अन्हुम की पीछे उल्लिखित हदीसों के आधार पर, और उन हदीसों की सनदें जैयिद हैं, उन में कोई प्रभावकारी आपत्ति नहीं है, अत: उन पर अमल करना अनिवार्य है। जहाँ तक तिर्मिज़ी और इब्ने हज़्म और मौसिली के उन को ज़ईफ क़रार देने का संबंध है तो हमारे ज्ञान के अनुसार उसका कोई अधार नहीं है, जबकि ज्ञात होना चाहिए कि तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने जो कुछ उल्लेख किया है उस में वह माज़ूर हैं, क्योंकि उन्हों ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस की हदीस को ज़ईफ तरीक़ों से रिवायत किया है, जबकि अबू दाऊद, नसाई और इब्ने माजा ने उसे दूसरे शुद्ध तरीक़ों से रिवायत किया है, शायद कि तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह को इस का पता नहीं चला।

और अल्लाह ही के हाथ में तौफीक़ (शक्ति का स्रोत) है, तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप की संतान तथा आप के साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

Courtesy islamqa

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