हज़रत जुनैद बग़दादी

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फ़िरदौस ख़ान
जुनैद बग़दादी प्रसिध्द सूफ़ी संत हैं. वे संत हज़रत सक्ती क़े भांजे और शिष्य थे. उन्हें शिक्षा और अमल का उद्गम माना जाता है. ईश्वर भक्ति और त्याग के प्रतीक संत जुनैद बग़दादी ने लोगों को कर्तव्य पालन और लोककल्याण का संदेश दिया. इसके बावजूद उनके विरोधी उन्हें अधर्मी और काफ़िर कहकर पुकारते थे.

बचपन में जब एक दिन वे मदरसे से आ रहे थे तो उन्होंने रास्ते में अपने पिता को रोते हुए देखा. उन्होंने इसका कारण पूछा तो उनके पिता ने बताया कि आज मैंने कुछ दिरहम (मुद्रा) तुम्हारे मामा हज़रत सक्ती को भेजे थे, लेकिन उन्होंने इन्हें लेने से साफ़ इंकार कर दिया. जब ईश्वर के भक्तों को मेरे कडे परिश्रम की कमाई पसंद नहीं तो फिर मेरा जीवन भी व्यर्थ है. जुनैद बग़दादी पिता से दिरहम लेकर अपने मामा की कुटिया पर पहुंचे. हज़रत सक्ती ने पूछा कौन है? उन्होंने जवाब दिया कि मैं जुनैद हूं और अपने पिता की ओर से भेंट लेकर आया हूं, इसे स्वीकार कर कृतार्थ कीजिए. मगर जब जुनैद ने इसे लेने से साफ़ इंकार कर दिया तो उन्होंने कहा कि आपको उस ईश्वर का वास्ता जिसने आप को संत बनाया और मेरे पिता को सांसारिक व्यक्ति बनाकर दोनों के साथ ही न्याय किया है. मेरे पिता ने अपना कर्तव्य पूरा किया और अब आप अपने नैतिक दायित्व का पालन करें. उनकी यह बात सुनकर हज़रत सक्ती ने दरवाज़ा खोल दिया और उन्हें गले से लगा लिया. उसी दिन हज़रत सक्ती ने जुनैद को अपना शिष्य बना लिया.

सात साल की छोटी उम्र में वे अपने पीर हज़रत सक्ती के साथ मक्का की यात्रा पर गए थे. तभी वहां सूफियों में आभार की परिभाषा पर चर्चा हो रही थी. सबने अपने-अपने विचार रखे. हज़रत सक्ती ने उनसे भी अपने विचार व्यक्त करने को कहा. गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने कहा कि आभार की परिभाषा यह है, जब ईश्वर सुख-एश्वर्य दे तो इसे लेने वाला इसके कारण अल्लाह की अवज्ञा न करे. मक्का से वापस आकर उन्होंने शीशों की दुकान खोली, मगर दुकानदारी में उनका ज़रा भी मन नहीं लगा. वे कहते हैं कि मनुष्य को नैतिक शिक्षा अपने आसपास के वातावरण से ही मिल जाती है. निष्ठा की शिक्षा उन्होंने एक हज्जाम से प्राप्त की थी. एक बार मक्का में वे एक हज्जाम के पास गए तो देखा कि वे किसी धनवान की हजामत बना रहा है. उन्होंने उससे आग्रह किया कि वह ईश्वर के लिए उनकी भी हजामत बना दे. यह सुनकर हज्जाम ने धनवान की हजामत छोड़कर उनके बाल काटने शुरू कर दिए. बाल काटने के बाद हज्जाम ने उनके हाथ में एक पुडिया दी, जिसमें कुछ रेज़गारी लिपटी हुई थी और कहा कि इसे अपने काम में ख़र्च कर लेना. पुडिया लेकर उन्होंने संकल्प लिया कि उन्हें जो कुछ मिलेगा उसे वे इस हज्जाम को दे देंगे. कुछ समय बाद बसरा में एक व्यक्ति ने अशर्फियों से भरी थैली उन्हें भेंट की. वे उस थैली को लेकर हज्जाम के पास गए. थैली देखकर हज्जाम ने कहा कि उसने तो उनकी सेवा केवल अल्लाह के लिए की थी, इसलिए वह इसे स्वीकार नहीं कर सकता.

जुनैद बग़दादी कहते हैं कि अल्लाह के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी भी किसी पर उपकार करके अहसान नहीं जताता और न ही उसके बदले में उससे कुछ चाहता है. वे लोगों को नेकी और सच्चाई के रास्ते पर चलने की सीख देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को सीमित साधनों में ही प्रसन्न रहना चाहिए. सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं. जिस अल्लाह ने सुख दिया है, दुख भी उसी की देन है. इसलिए मनुष्य को दुखों से घबराने की बजाय सदा अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए. वे स्वयं भी रूखी-सूखी रोटी खाकर गुज़ारा करते थे. अमीर उन्हें बहुमूल्य रत्न और वस्तुएं भेंट करते थे, लेकिन वे इन्हें लेने से साफ इंकार कर देते थे. वे कहते थे कि सूफियों को धन की ज़रूरत नहीं है. अगर कोई उन्हें कुछ देना ही चाहता है तो वे ज़रूरतमंदों की मदद करे, जिससे ईश्वर भी उससे प्रसन्न रहे. वे अपने साथ बुरा बर्ताव करने वाले लोगों को उनकी गलती के लिए माफ करके उनकी भी मदद करते थे. एक बार चोर ने उनका कुर्ता चुरा लिया और दूसरे दिन जब बाज़ार में उन्होंने चोर को कुर्ता बेचते देखा. ख़रीदने वाला चोर से कह रहा था कि अगर कोई गवाही दे दे कि यह माल तेरा ही है तो मैं ख़रीद सकता हूं. उन्होंने कहा कि मैं वाकिफ़ हूं. यह सुनकर ख़रीदार ने कुर्ता ख़रीद लिया.

उनका कहना था कि तकलीफ़ पर शिकायत न करते हुए सब्र करना बंदगी की बेहतर अलामत है. सच्चा बंदा वही है जो न तो हाथ फैलाए और न ही झगड़े. तवक्कुल सब्र का नाम है जैसा कि अल्लाह फ़रमाता है कि वे लोग जो सब्र करते हैं और अपने मालिक पर भरोसा करते हैं. सब्र की परिभाषा यह है कि जो लोगों से दूर करके अल्लाह के करीब कर दे. तवक्कुल का मतलब यह है कि तुम अल्लाह के ऐसे बंदे बन जाओ जैसे आदिकाल में थे. फ़रमाया कि यकीन नाम है इल्म का, दिल में इस तरह बस जाने का जिसमें बदलाव न हो सके. यकीन का मतलब यह है कि गुरूर को छोड़कर दुनिया से बे नियाज़ हो जाओ. उनका यह भी कहना था कि जिसकी ज़िन्दगी रूह पर निर्भर हो वह रूह निकलते ही मर जाता है और जिसकी ज़िन्दगी का आधार ख़ुदा पर हो वह कभी नहीं मरता, बल्कि भौतिक जिन्दगी से वास्तविक ज़िन्दगी हासिल कर लेता है. फरमाया अल्लाह की रचना से प्रेरणा हासिल न करने वाली आंख का अंधा होना ही अच्छा है और जो जबान अल्लाह के गुणगान से महरूम हो उसका बंद होना ही बेहतर है. जो कान हक़ की बात सुनने से मजबूर हो उसका बहरा होना अच्छा है और जो जिस्म इबादत से महरूम हो उसका मुर्दा होना ही बेहतर है.

वे भाईचारे और आपसी सद्भाव में विश्वास रखते थे. एक बार किसी ने उनसे कहा कि आज के दौर में दीनी भाइयों की कमी है. इस पर उन्होंने जवाब दिया कि तुम्हारे विचार में दीनी भाई केवल वे हैं जो तुम्हारी परेशानियों को हल कर सकें तब तो निश्चित ही वे कम हैं और अगर तुम वास्तविक दीनी भाइयों की कमी समझते हो तो तुम झूठे हो, क्योंकि दीनी भाई का वास्तविक अर्थ यह है कि जिनकी मुश्किलों का हल तुम्हारे पास हो और सारे मामलों को हल करने में तुम्हारी मदद शामिल हो जाए और ऐसे दीनी भाइयों की कमी नहीं है. जुनैद बग़दादी की यह बात आज भी समाज के लिए बेहद प्रासंगिक है.
(हमारी किताब गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत से)

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क़ब्र के फ़ितने से बचाने वाले आमाल

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हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत है कि नबी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दो क़ब्रों से गुज़रे, तो आपने फ़रमाया – इन दोनों को (क़बों में) अज़ाब हो रहा है और किसी बड़ी बात पर नहें. फ़िर फ़रमाया- इनमें से एक चुग़ली खाता था और दूसरा पेशाब (की छीटों) से एहतियात नहीं करता था. (बुख़ारी)
क़ब्र के फ़ितने से बचाने वाले आमाल
फ़ितना-ए-क़ब्र से बचने के लिए अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बहुत सी अहदीस मौजूद हैं, जिन पर अमल करके कब्र के फ़ितने से बचा जा सकता-
1. शहादत- अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- अल्लाह की राह में जान देना इंसान को क़ब्र के फ़ितने से महफ़ूज़ रखेगा. (निसाई)
2. मरातिब- यानी इस्लामी रियासत की सरहदों लश्करे-इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए पहरा देना. (तिर्मिज़ी)
3. सूरह मुल्क की कसरत से तिलावत करना. (हाकिम) नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़ाना सोने से पहले सूरह मुल्क की तिलावत फ़रमाया करते थे. (अहमद, तिर्मिज़ी, दारमी)
4- हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ि. से रिवायत है कि नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जो मोमिन जुमा के दिन या जुमा की रात मरे, अल्लाह उसे क़ब्र के फ़ितने से बचा लेगा. (अहमद, तिर्मिज़ी)
5. हज़रत अब्दुल्लाह बिन यसार रज़ि. से रिवायत है कि मैं बैठा था. सुलेमान बिन सुरद रज़ि. और ख़ालिद बिन उरफ़ता रज़ि आए. लोगों ने कहा कि फ़ला इंसान पेट की तकलीफ़ से मर गया है. उन दोनों ने ख़्वाहिश की थी कि काश वह उस इंसान के जनाज़े मे शरीक होते फ़िर एक आदमी ने दूसरे आदमी से कहा- क्या नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये बात इरशाद नहीं फ़रमाई कि जिस इंसान को पेट मार डाले, उसे क़ब्र में अज़ाब नहीं दिया जाएगा. दूसरे ने जवाब दिया- क्यों नहीं. (निसाई)
इसके अलावा ताऊन की बीमारी से मरने वाले, पेट की बीमारी से मरने वाले, पानी में डूबकर मरने वाले, दीवार के नीचे आकर मरने वाले (बुख़ारी) जचगी (बच्चे की पैदाइश) की हालत में मरने वाली औरत (इब्ने-माजा) वग़ैराह क़ब्र के फ़ितने से महफ़ूज़ रहेंगे.


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आंखों के लिए दुआ

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 आंखों की रौशनी के लिए दुआ


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नबी सअस का आख़िरी ख़ुतबा

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अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी ख़ुतबा.
आपने फ़रमाया-
प्यारे भाइयो! मैं जो कुछ कहूं, ध्यान से सुनो.
ऐ इंसानों! तुम्हारा रब एक है. अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत को मज़बूती से पकड़े रहना.
लोगों की जान-माल और इज़्ज़त का ख़्याल रखना, न तुम लोगों पर ज़ुल्म करो, न क़यामत में तुम्हारे साथ ज़ुल्म किया जाएगा.
कोई अमानत रखे, तो उसमें ख़यानत न करना.
ब्याज़ के क़रीब न भटकना.

किसी अरबी को किसी अज़मी (ग़ैर अरबी) पर कोई बड़ाई नहीं, न किसी अज़मी को किसी अरबी पर, न गोरे को काले पर, न काले को गोरे पर, प्रमुखता अगर किसी को है, तो सिर्फ़ तक़वा (धर्मपरायणता) व परहेज़गारी से है अर्थात् रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र किसी की श्रेष्ठता का आधार नहीं है. बड़ाई का आधार अगर कोई है, तो ईमान और चरित्र है.

तुम्हारे ग़ुलाम, जो कुछ ख़ुद खाओ, वही उनको खिलाओ और जो ख़ुद पहनो, वही उनको पहनाओ.
अज्ञानता के तमाम विधान और नियम मेरे पांव के नीचे हैं.

इस्लाम आने से पहले के तमाम ख़ून ख़त्म कर दिए गए. (अब किसी को किसी से पुराने ख़ून का बदला लेने का हक़ नहीं) और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान का ख़ून (रबीआ इब्न हारिस का ख़ून)  ख़त्म करता हूं (यानी उनके कातिलों को क्षमा करता हूं).
अज्ञानकाल के सभी ब्याज़ ख़त्म किए जाते हैं और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान में से अब्बास इब्न मुत्तलिब का ब्याज़ ख़त्म करता हूं.

औरतों के मामले में अल्लाह से डरो. तुम्हारा औरतों पर और औरतों का तुम पर हक़ है.
औरतों के मामले में मैं तुम्हें वसीयत करता हूं कि उनके साथ भलाई का रवैया अपनाओ.

लोगो! याद रखो, मेरे बाद कोई नबी नहीं और तुम्हारे बाद कोई उम्मत नहीं. अत: अपने रब की इबादत करना, हर रोज़ पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ना. रमज़ान के रोज़े रखना, ख़ुशी-ख़ुशी अपने माल की ज़कात देना, अपने परवरदिगार के घर का हज करना और अपने हाकिमों के क़ानून को मानना. ऐसा करोगे, तो अपने परवरदिगार की जन्नत में दाख़िल हो सकोगे.
ऐ लोगो! क्या मैंने अल्लाह का पैग़ाम तुम तक पहुंचा दिया.
लोगों की भारी भीड़ एक साथ बोल उठी-
हां, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !
तब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन बार कहा-
ऐ अल्लाह, तू गवाह रहना
उसके बाद क़ुरआन की यह आख़िरी आयत नाज़िल हुई-
आज हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए दीन के तौर पर इस्लाम को पसंद किया है. क़ुरआन: 5-3).

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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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