मुहब्बत

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इमाम उबैद बिन अमीर मक्की फ़रमाते हैं कि अल्लाह की निगाह में दुनिया बड़ी हक़ीर है.  वह दुनिया उसे भी देता है जिससे मुहब्बत करता है और उसे भी जिससे मुहब्बत नहीं करता, लेकिन ईमान वह सिर्फ़ उसी को अता करता है जो उसे महबूब हो.
(हिल्यतुल औलिया : 270/3)

तस्वीर गूगल से साभार 

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क़ुरआन में कितने सजदे हैं और कहां हैं

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डॉ. फ़िरदौस ख़ान    
क़ुरआन में कुल 15 सजदे हैं. क़ुरआन करीम की तिलावत करते हुए जैसे ही सजदे की आयत आए, तो फ़ौरन सजदा कर लेना चाहिए. सजदे का अफ़ज़ल तरीक़ा यही है. अगर तिलावत करते हुए सजदा न किया हो, तो पारा या क़ुरआन करीम मुकम्मल होने पर भी सजदा किया जा सकता है.     
पहला सजदा- पारा 9 में 7वीं सूरह अल आराफ़ की आयत 206 में है
दूसरा सजदा- पारा 13 में 13वीं सूरह अर रअद की आयत 15 में है 
तीसरा सजदा- पारा 14 में 16वीं सूरह नहल की आयत 50 में है. 
चौथा सजदा- पारा 15 में 17वीं सूरह बनी इस्राईल की आयत 109 में है.
पांचवां सजदा- पारा 16 में 19वीं सूरह मरियम की आयत 58 में है.
छठा सजदा- पारा 17 में 22वीं सूरह अल हज की आयत 18 में है.
सातवां सजदा- पारा 17 में 22वीं सूरह अल हज की आयत 77 में है.
आठवां सजदा- पारा 19 में 25वीं सूरह अल फ़ुरक़ान की आयत 60 में है.
नौवां सजदा- पारा 19 में 27वीं सूरह अन नम्ल की आयत 26 में है. 
दसवां सजदा- पारा 21 में 32वीं सूरह अस सजदा की आयत 15 में है.
ग्यारहवां सजदा- पारा 23 में 38वीं सूरह सुआद की आयत 24 में है.
बारहवां सजदा- पारा 24 में 41वीं सूरह हा मीम की आयत 38 में है.
तेरहवां सजदा- पारा 24 में 53वीं सूरह अन नज्म की आयत 62 में है. 
चौदहवां सजदा- पारा 30 में 84वीं सूरह अल इंशिक़ाक़ की आयत 21 में है. 
पन्द्रहवां सजदा- पारा 30 में 96वीं सूरह अल अलक़ की आयत 19 में है. 

सजदा कैसे करें 
सजदे के लिए सीधे खड़े हो जाएं. फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदे में चले जाएं और तीन बार सुब्हाना रब्बी यल आला पढ़ें और फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सीधे खड़े हो जाएं. 

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आत्मा, भूत-प्रेत

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सबसे पहले हम बात करते हैं अकाल मौत की. हक़ीक़त ये है कि अल्लाह ने हर जानदार की मौत का एक वक़्त मुक़र्रर कर रखा है. जब, जहां, जैसे जिसकी मौत लिखी हुई है, उसी तरह उसे मौत आती है. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “फिर जब उनका वक़्त आ जाता है, तो वे न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं.”
इसीलिए हम कह सकते हैं कि कोई भी अकाल मौत नहीं मरता. सब अपने वक़्त पर ही मरते हैं.

जहां तक किसी की आत्मा द्वारा किसी को परेशान करने का सवाल है, तो ये बात भी बिल्कुल ग़लत है. जब मौत का फ़रिश्ता 'मलक अल-मौत’ किसी की रूह को क़ब्ज़ कर लेता है, तो इसके बाद रूह अपने अंजाम की तरफ़ चली जाती है यानी वह बरज़ख़ में रहती है. बरज़ख़ वह जगह है, जहां क़यामत तक रूहें रहती हैं. जब रूहें बरज़ख़ में पहुंच जाती हैं, तो उनके द्वारा किसी को परेशान करने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

अब सवाल ये है कि कुछ लोगों को जो कथित भूत-प्रेत दिखाई देते हैं, आख़िर वे क्या हैं?
दरअसल जिन्हें लोग किसी की आत्मा, भूत या प्रेत समझते हैं, वे जिन्न होते हैं. जिन्न भी एक मख़लूक़ है. क़ुरआन करीम में जिन्नात का ज़िक्र आता है. ये आग से बने होते हैं. इनका काम ही इंसानों को परेशान करना है. हां, कुछ अच्छे जिन्न भी होते हैं.
जिन्न रूप बदलने में माहिर होते हैं.
हमज़ाद के बारे में भी इंशा अल्लाह कभी लिखेंगे.
-फ़िरदौस ख़ान

तस्वीर गूगल से साभार 

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Thank Allah

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When we are happy in our life, thank us Allah and celebrate. And when we are unhappy in our life, say thank us Allah and grow. Allah's mercy is greater than his wrath. 
Allah said in Holy Quran : "Verily, My mercy prevails over My wrath.”
Dr. Frdaus Khan

Courtesy : Image from google

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पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम

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सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दोनों नवासों हसन अलैहिस्सलाम और हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में यह प्रसिद्ध वाक्य फ़रमायाः
_اَلْحَسَنُ وَ الْحُسَیْنُ سَیِّدا شَبابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ _
हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं। (1)

एक दूसरी हदीस में आया है किः कुछ लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक मेहमानी में गये, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस सारे लोगों से आगे आगे चल रहे थे। आपने रास्ते में हुसैन अलैहिस्सलाम को देखा। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चाहा कि आपकी गोद में उठा लें, लेकिन हुसैन अलैहिस्सलाम एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ भाग जाते थे, पैग़म्बर यह देखकर मुस्कुराए, और आपको गोद में उठा लिया, एक हाथ को आपके सर के पीछे और दूसरे हाथ को ठुड्डी के नीचे लगाया और अपने पवित्र होठों को हुसैन के होठों पर रखा और चूमा फिर फ़रमायाः
«حُسَینٌ مِنّی وَ أَنَا مِنْ حُسَین أَحَبَّ اللهُ مَنْ أَحَبَّ حُسَیناً»؛
हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूँ जो भी हुसैन को दोस्त रखता है, ईश्वर उसको दोस्त रखता है। (2)

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
शिया और सुन्नी रिवायतों में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी श्रीमती उम्मे सलमा कहती हैं:
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आराम कर रहे थे कि मैंने देखा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने प्रवेश किया, और पैग़म्बर के सीने पर बैठ गये, पैगम़्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः शाबाश मेरी आखों के नूर, शाबाश मेरे दिल के टुकड़े, जब हुसैन अलैहिस्सलाम को पैग़म्बर के सीने पर बैठे बहुत देर हो गई तो मैंने स्वंय से कहा कि शायद पैगम़्बर को परेशानी हो रही हो, और मैं आगे बढ़ी ताकि हुसैन को आपके सीने से उतार दूँ।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः उम्मे सलमा जब तक मेरा हुसैन स्वंय जब तक चाहता है उसे मेरे सीने पर बैठने दो और जान लो कि जो भी एक बाल के बराबर भी मेरे हुसैन को दुख दे वह ऐसा ही है जैसे उसने मुझे दुख दिया हो।
उम्मे सलमा कहती है: मैं घर से बाहर चली गई, और जब वापस आई और पैग़म्बर के कमरे में पहुँची मैंने देखा कि पैग़म्बर रो रहे हैं, मुझे बहुत आश्चर्य हुआ! और मैंने कहा हे अल्लाह के रसूल ईश्वर कभी आपको न रुलाए, आप क्यों दुखी हैं? मैंने देखा कि पैग़म्बर के हाथ में कोई चीज़ है, और उसको देख रहें हैं और रो रहे हैं। मैं आगे गईं तो देखा एक मुट्ठी ख़ाक़ आपके हाथ में है।
मैंने प्रश्न किया हे अल्लाह के रसूल यह कौन सी ख़ाक है जिसने आपको इतना दुखी कर दिया। पैग़म्बर ने फ़रमायाः
हे उम्मे सलमा, अभी जिब्रईल मुझ पर उतरे और कहा कि यह कर्बला की मिट्टी है, और यह मिट्टी वहां की है जहां आपका बेटा हुसैन दफ़्न होगा।
हे उम्मे सलमा, इस मिट्टी को लो और एक शीशी में रख दो, जब भी देखों कि इस ख़ाक का रंग ख़ून हो गया है, तब समझ जाना कि मेरा बेटा हुसैन शहीद कर दिया गया है।
उम्मे सलमा कहती हैं: मैंने उस ख़ाक को पैग़म्बर से ले लिया जिसमें से एक अजीब तरह की सुगंध आ रही थी, जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की तरफ़ यात्रा आरम्भ की तो मैं बहुत परेशान थी, और हर दिन उस ख़ाक को देखती थी, यहां तक कि एक दिन मैंने देखा कि पूरी ख़ाक ख़ून में बदल गई है, और मैं समझ गई इमाम हुसैन शहीद कर दिये गये हैं। इसलिये मैंने रोना शुरू कर दिया और उस दिन रात तक हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोती रही, उस दिन मैंने खाना नहीं खाया, यहां तक की रात हो गई और मैं दुख के साथ सो गई।
मैंने स्वप्न में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख कि वह आये हैं लेकिन आपका सर और चेहरा मिट्टी से अटा है! मैंने आपके चेहरे से मिट्टी और ख़ाक को साफ करना आरम्भ कर दिया और कहने लगी, हे अल्लाह के रसूल मैं आप पर क़ुरबान, यह मिट्टी और ख़ाक कहा की ह जो आप पर लगी है?
पैग़म्बर ने फ़रमायाः हे उम्मे सलमा अभी अभी में ने अपने हुसैन को दफ़्न किया है। (3)

हज़रते फ़ातेमा ज़हरा सलाम उल्लाह अलैहा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि क़यामत के दिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्रकाश के एक गुंबद में बैठी होंगी। उसी समय, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम महशर में आएंगे, इस हालत में कि उनका कटा सर उनके हाथ में होगा, फ़ातेमा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दृश्य को देखकर चीख़ कर रोती हैं और गिर जाती है, और सारे नबी और दूसरे लोग इस दृश्य को देख कर रोने लगते हैं फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हत्यारों आएंगे और उन पर मुक़द्दमा चलेगा और फिर उनको भयानक अज़ाब दिया जाएगा.... (4)

हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम कर्बला की तरफ़ से गुज़रे और फ़रमायाः
قال على (عليه السلام): هذا... مصارع عشاق شهداء لا يسبقهم من كان قبلهم و لا يلحقهم من كان بعدهم.
यह आशिक़ों की क़त्लगाह और शहीदों के शहीद होने का स्थान पर वह शहीद जिनके बराबर ना पिछले शहीद हो सकते हैं और ना आने वाले शहीद हो सकेंगे। (5)

इमाम हुसैन और रोना
امام حسين عليه السلام: أنَا قَتيلُ العَبَرَةِ لايَذكُرُني مُؤمِنٌ إلاّ استَعبَرَ؛
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैं आँसुओं का मारा हूँ, जो भी मोमिन मुझे याद करे, उसके आँसू जारी हो जाएंगे। (6)

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर गिरया
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम जिन्होंने स्वंय कर्बला के मैदान में हुसैन और उनके वफ़ादार साधियों पर होने वाले भयानक अत्याचारों और मसाएब को देखा था, आशूरा की घटना के बाद आप जब तक जीवित रहे आपने कभी भी इस दिल दहला देने वाली घटना को नहीं भुलाया, और सदैव इन शहीदों पर रोते रहते थे और जब भी आप पानी पीने चलते तो पानी को देखते ही आपकी आँखों से आँसू जारी हो जाते, जब लोगों ने आपसे इसका कारण पूछा तो आप फ़रमाते थे मैं कैसे न रोऊँ जब कि यज़ीदियों ने पानी के जानवरों और दरिंदों पर तो खोल रखा था लेकिन मेरे पिता पर बंद कर दिया और उनको प्यासा शहीद कर दिया। इमाम कहते हैं जब भी में फ़ातेमा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे की शहादत को याद करता हूँ मुझे रोना आ जाता है। जब लोग आपको सात्वना देते थे तो आप फ़रमाते थे-
«كيف لا أبكي؟ و قد منع أبى من الماء الذى كان مطلقا للسباع والوحوش».
मैं केसे न रोऊँ जब कि मेरे पिता पर पानी बंद किया गया जब कि जानवर और दरिंदे वही पानी पी रहे थे।(7)
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपने पिता पर इतना रोए कि उनको इतिहास के पाँच रोने वालों में रखा गया और जब भी आप से इतना अधिक रोने के बारे में पूछ जाता तो आप कर्बला के मसाएब को याद करते और फ़रमातेः मुझे ग़ल्त न कहो, याक़ूब ने अपना एक बेटा खोया था इतना रोए थे कि ग़म से उनकी आखें सफेद हो गईं थी, जब कि उनको विश्वास था कि उनका बेटे जीवित है जब कि मैंने अपनी आँखों से देखा कि आधे दिन में मेरे परिवार के चौदह लोगों का गला काट दिया गया, फिर भी तुम कहते हो कि मैं उनके ग़म को दिल से निकाल दूँ?! (8)

आप न केवल यह कि स्वयं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ग़म में आँसू बहाया करते थे बल्कि मोमिनों को भी आप पर रोने और अज़ादारी करने के लिये कहा करते थे-
«ايما مؤمن دمعت عيناه لقتل الحسين حتى تسيل على خده بواه الله بها فى الجنة غرفا يسكنها احقابا».
हर मोमिन जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत पर इतना रोए कि आँसू उसके गाल पर बहने लगें तो ईश्वस उसके लिये स्वर्ग में कमरे बनाता है जिसमें वह सदैव रहेगा।(9)

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
أنَا ابنُ مَنَ بَكَت عَلَيهِ مَلائِكَةُ السَّماءِ أنَا ابنُ مَن ناحَتْ عَلَيهِ الجِنُّ فِي الأرضِ و الطِّيرُ فِي الهَواءِ؛
मैं उसका बेटा हूँ जिस पर आसमान के फ़रिश्तों ने आँसू बहाए। मैं उसका बेटा हूँ जिस पर जिन्नातों ने ज़मीन पर और पक्षियों ने हवा में आँसू बहाए। (10)

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर आँसू बहाते थे और जो भी घर में होता था उसको भी रोने का आदेश दिया करते थे। (11)

और आपके घर में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मजलिस और अज़ादारी हुआ करती थी और उपस्थित होने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मुसीबतों पर एक दूसरे के सामने शोक प्रकट किया करते थे।

इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
كان ابى اذا دخل شهر المحرم لا يرى ضاحكا و كانت الكابة تغلب عليه حتى يمضى منه عشرة ايام، فاذا كان اليوم العاشر كان ذلك اليوم يوم مصيبته و حزنه و بكائه...
मेरे पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की रीत यह थी कि जब भी मोहर्रम आता था हमेशा दुखी रहते थे यहां तक कि आशूरा के दस दिन पूरे हो जाए, आशूरा का दिन उनके रोने और मातम का दिन था... और आप फ़रमाते थे-
 «هو اليوم الذى قتل فيه الحسين. (12)

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः
إن بَكَيتَ عَلَى الحُسَينِ حَتّى تَصيرَ دُموعُكَ عَلى خدَّيكَ غَفَرَاللّه ُ لَكَ كُلَّ ذَنبٍ أذنَبتَهُ
अगर तुम हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोओ, इस प्रकार कि तुम्हारे आँसू तुम्हारे गालों पर जारी हो जाएं, तो ईश्वर तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर देता है। (13)

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मोहर्रम वह महीना है कि जिसमें जाहेलीयत के ज़माने में लोग युद्ध को वर्जित समझते थे, लेकिन शत्रुओं ने इस महीने में हमारा रक्त बहाया और हमारे सम्मान को ठेस पहुँचाई, और हमारी संतान को बंदी बनाया और हमारे ख़ैमों में आग लगाई, हमारी सम्पत्ति लूटी और हमारे हक़ में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सम्मान का ख़याल नहीं किया। (14)

«ان يوم الحسين اقرح جفوننا و أسبل دموعنا و أذل عزيزنا بأرض كربلا.... على مثل الحسين (عليه السلام) فليبك الباكون، فان البكاء عليه يحط الذنوب العظام.»
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की हत्या ने हमारे आँसुओं को जारी कर दिया और हमारी आँखों की पलकों को घायल कर दिया और कर्बला में हमारे सम्मानित का अपमान किया.... रोने वालों को हुसैन पर रोना चाहिये, उन पर रोना बड़े पापों को समाप्त कर देता है। (15)

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने रय्यान बिन शबीब से फ़रमायाः
«ان كنت باكيا لشى‏ ء فابك للحسين بن على فانه ذبح كما يذبح الكبش و قتل معه من أهل بيته ثمانية عشر رجلا ما لهم فى الارض شبيهون...».
अगर किसी चीज़ पर रोना चाहो तो हुसैन अलैहिस्सलाम पर गिरया करो क्योंकि उनकी गर्दन को भेड़ की गर्दन की तरह काट दिया और उनके साथ उनके अहलेबैत (परिवार वाले) के अट्ठारह मर्द शहीद हुए जिनके जैसा दुनिया में कोई नहीं था।
फिर इबने शबीब से फ़रमायाः अगर चाहते हो कि स्वर्ग में हमारे साथ ऊँटे दर्जे पर रहो, तो दुखी रहो हमारे दुख में और प्रसन्न रहों हमारी ख़ुशी में। (16)

इमाम महदी अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
इमाम महदी अलैहिस्सलाम पवित्र ज़ियारते नाहिया में फ़रमाते हैं:
 لأَندُبَنَّكَ صَباحا و مَساءً و لأَبكِيَنَّ عَلَيكَ بَدَلَ الدُّمُوعِ دَما؛
मैं हर सुबह शाम आप पर रोता हूँ और आपकी मुसीबत पर आँसू की जगह ख़ून रोता हूँ। (17)

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोने के बारे में आने वाली बहुत सी रिवायतों से पता चलता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर इस संसार की सारी चीज़ें रोती हैं
ज़मीन रोती है आसमान रोता है
ग़मे हुसैन में सारा जहान रोता है।

स्रोत  
(1)    सुनने तिरमिज़ी, जिल्द 5, पेज 426
(2)    सुनने तिरमिज़ी, जिल्द 5, पेज 424, अलइरशाद शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 127
(3)    तोहफ़तुज़्ज़ाएर, मरहूम मजलिसी, पेज 168
(4)    सवाबुल आमाल, जलाउल उयून के हवाले से जिल्द 1, पेज 227
(5)    अबसारुल ऐन फ़ी अनसारिल हुसैन, पेज 22, बिहरुल अनवार जिल्द 44, पेज 298
(6)    बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 284
(7)    बिहारुल अनवार जिल्द 46, पेज 108
(8)    अमाली शेख़ सदूक़, मजलिस 29, पेज 121
(9)    तफ़्सीरे क़ुम्मी पेज 616
(10)    मनाक़िबे आले अबी तालिब, जिल्द 3 पेज 305
(11)    वसाएलुश्शिया जिल्द 10, पेज 398
(12)    बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 293
(13)    बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 286
(14)    बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 283
(15)    अमाली शेख़ सदूक़, जिल्द 1, पेज 225
(16)    वसाएलुश्शिया जिल्द 14, पेज 502
(17)    बिहारुल अनवार जिल्द 101, पेज 238


साभार 

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दरूद शरीफ़ की ख़ासियत

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रात में अल्लाह से मांगो

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हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ातिलों पर लानत हो

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لعن الله من قتل الإمام الحسين علیہ السلام وأصحابه في كربلاء، ولعن الله كل لاعن من بغض و العداوت لی الإمام الحسين علیہ السلام وأهل بيت النبي صلی اللہ علیہ وسلم .

***

 ترجمہ :- خدا ان پر لعنت کرے ان پر، جنہوں نے کربلا میں امام حسین علیہ السلام اور ان کے ساتھیوں کو قتل کیا، اور خدا کی لعنت ہو ان پر اور  تمام لعنت کرنے والوں کی لعنت، جو لوگ امام حسین علیہ السلام  اور آل اے پاک اے رسول صلی اللہ علیہ وسلم کے لیے دل میں بغض اور عداوت رکھتے ہیں اور ان کی مخالفت کرتے ہیں۔

***

तर्जुमा : अल्लाह की लानत हो उन पर, जिन्होंने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों को कर्बला में क़त्ल किया था. और अल्लाह की लानत हो उन पर, और तमाम लानत करने वालों की लानत हो उन पर, जो लोग हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और तमाम आले पाक-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बुग़्ज़ रखते हैं और उनकी मुख़ालिेफ़त करते हैं.

-अयूब अली ख़ान 

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इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में किसने क्या कहा

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फ़िरदौस ख़ान 
अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आज भी लोगों के ज़ेहन में बसे हैं और उनके दिलों में हमेशा ज़िन्दा रहेंगे. 
किसी ने क्या ख़ूब कहा है- 
नबियों में मर्तबा है निराला रसूल ﷺ का 
सानी रसूल का है न साया रसूल ﷺ का 
बिक जाती कायनात ये हाथों यज़ीद के 
कर्बला में गर न होता नवासा रसूल ﷺ का  
  
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को सदियां गुज़र गईं, लेकिन उसकी याद आज भी तारोताज़ा है. दुनिया के जाने-माने लोगों ने उनकी उनके बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं.  
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा- “मैंने हुसैन से सीखा कि मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है. इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है, जो एक महान संत थे.”
कवि और साहित्यकार रबिन्द्र नाथ टेगौर ने कहा- “इंसाफ़ और सच्चाई को ज़िन्दा रखने के लिए फ़ौजों या हथियारों की ज़रूरत नहीं होती है. क़ुर्बानियां देकर भी फ़तेह हासिल की जा सकती है, जैसे इमाम हुसैन ने कर्बला में हासिल की.”
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा- “इमाम हुसैन की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है. और यह क़ुर्बानी इंसानियत और भलाई की एक अनोखी मिसाल है.”
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा- “इमाम हुसैन की क़ुर्बानी किसी एक मुल्क या क़ौम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह असीमित है.” 
देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने कहा- “अगरचे इमाम हुसैन ने सदियों पहले अपनी शहादत दी, लेकिन उनकी पाक रूह आज भी लोगों के दिलों पर राज करती है.”
कवयित्री सरोजिनी नायडू ने कहा- “मैं मुसलमानों को इसलिए मुबारकबाद पेश करना चाहती हूं कि यह उनकी ख़ुशक़िस्मती है कि उनके बीच दुनिया की बड़ी हस्ती इमाम हुसैन पैदा हुए, जो सम्पूर्ण रूप से दुनियाभर की तमाम जातियों और समूहों के दिलों पर राज करते हैं.” 
एडवर्ड ब्राउन ने कहा- “कर्बला ख़ूनी सहरा की याद है, जहां अल्लाह के रसूल के नवासे के चारों तरफ़ सगे-संबंधियों की लाशें थीं. यह इस बात को समझने के लिए काफ़ी है कि दुश्मनों की वहशत अपने चरम पर थी और यह सबसे बड़ा ग़म था. भावनाओं पर इस तरह नियंत्रण था कि किसी भी प्रिय की मौत से इमाम हुसैन के क़दम नहीं डगमगाये.”
लेखक एंटोनी बारा ने कहा- “मानवता के वर्तमान और अतीत के इतिहास में कोई भी युद्ध ऐसा नहीं है, जिसने इतनी मात्रा में सहानूभूति और प्रशंसा हासिल की है जितनी इमाम हुसैन की शहादत ने कर्बला के युद्ध में हासिल की है. 
एक स्कॉटिश निबंधकार, इतिहासकार और दार्शनिक थॉमस कार्लाइल ने कहा- “कर्बला की दुखद घटना से हमें जो सबसे बड़ी सीख मिलती है वह ये है कि इमाम हुसैन और उनके साथियों का ख़ुदा पर अटूट विश्वास था और वे सब मोमिन थे. इमाम हुसैन ने यह दिखा दिया कि सैन्य विशालता ताक़त नहीं बन सकती.

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خطبہ حجۃ الوداع

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” سب تعریف اللہ ہی کے لیے ہم اسی کی حمد کرتے ہیں۔ اسی سے مدد چاہتے ہیں۔ اس سے معافی مانگتے ہیں۔ اسی کے پاس توبہ کرتے ہیں اور ہم اللہ ہی کے ہاں اپنے نفسوں کی برائیوں اور اپنے اعمال کی خرابیوں سے پناہ مانگتے ہیں۔ جسے اللہ ہدایت دے تو پھر کوئی اسے بھٹکا نہیں سکتا اور جسے اللہ گمراہ کر دے اس کو کوئی راہ ہدایت نہیں دکھا سکتا۔ میں شہادت دیتا ہوں کہ اللہ کے سوا کوئی معبود نہیں وہ ایک ہے۔ اس کا کوئی شریک نہیں اور میں شہادت دیتا ہوں کہ محمد اس کا بندہ اور رسول ہے۔
اللہ کے بندو! میں تمھیں اللہ سے ڈرنے کی تاکید اور اس کی اطاعت پر پر زور طور پر آمادہ کرتا ہوں اور میں اسی سے ابتدا کرتا ہوں جو بھلائی ہے۔
لوگو! میری باتیں سن لو مجھے کچھ خبر نہیں کہ میں تم سے اس قیام گاہ میں اس سال کے بعد پھر کبھی ملاقات کر سکوں۔
ہاں جاہلیت کے تمام دستور آج میرے پاؤں کے نیچے ہیں؛ عربی کو عجمی پر اور عجمی کو عربی پر، سرخ کو سیاہ پر اور سیاہ کو سرخ پر کوئی فضیلت نہیں مگر تقویٰ کے سبب سے ۔
خدا سے ڈرنے والا انسان مومن ہوتا ہے اور اس کا نافرمان شقی۔ تم سب کے سب آدم کی اولاد میں سے ہو اور آدم مٹی سے بنے تھے۔
لوگو! تمھارے خون تمھارے مال اور تمھاری عزتیں ایک دوسرے پر ایسی حرام ہیں جیسا کہ تم آج کے دن کی اس شہر کی اور اس مہینہ کی حرمت کرتے ہو۔ دیکھو عنقریب تمھیں خدا کے سامنے حاضر ہونا ہے اور وہ تم سے تمھارے اعمال کی بابت سوال فرمائے گا۔ خبردار میرے بعد گمراہ نہ بن جانا کہ ایک دوسرے کی گردنیں کاٹتے رہو۔
جاہلیت کے قتلوں کے تمام جھگڑے میں ملیامیٹ کرتا ہوں۔ پہلا خون جو باطل کیا جاتا ہے وہ ربیعہ بن حارث عبدالمطلب کے بیٹے کا ہے۔ (ربیعہ بن حارث آپ کا چچیرا بھائی تھا جس کے بیٹے عامر کو بنو ہذیل نے قتل کر دیا تھا)
اگر کسی کے پاس امانت ہو تو وہ اسے اس کے مالک کو ادا کر دے اور اگر سود ہو تو وہ موقوف کر دیا گیا ہے۔ ہاں تمھارا سرمایہ مل جائے گا۔ نہ تم ظلم کرو اور نہ تم پر ظلم کیا جائے۔ اللہ نے فیصلہ فرما دیا ہے کہ سود ختم کر دیا گیا اور سب سے پہلے میں عباس بن عبدالمطلب کا سود باطل کرتا ہوں۔
لوگو! تمھاری اس سرزمین میں شیطان اپنے پوجے جانے سے مایوس ہو گیا ہے لیکن دیگر چھوٹے گناہوں میں اپنی اطاعت کیے جانے پر خوش ہے اس لیے اپنا دین اس سے محفوظ رکھو۔
اللہ کی کتاب میں مہینوں کی تعداد اسی دن سے بارہ ہے جب اللہ نے زمین و آسمان پیدا کیے تھے ان میں سے چار حرمت والے ہیں۔ تین (ذیقعد ذوالحجہ اور محرم) لگا تار ہیں اور رجب تنہا ہے۔
لوگو! اپنی بیویوں کے متعلق اللہ سے ڈرتے رہو۔ خدا کے نام کی ذمہ داری سے تم نے ان کو بیوی بنایا اور خدا کے کلام سے تم نے ان کا جسم اپنے لیے حلال بنایا ہے۔ تمھارا حق عورتوں پر اتنا ہے کہ وہ تمھارے بستر پر کسی غیر کو نہ آنے دیں لیکن اگر وہ ایسا کریں تو ان کو ایسی مار مارو جو نمودار نہ ہو اور عورتوں کا حق تم پر یہ ہے کہ تم ان کو اچھی طرح کھلاؤ ، اچھی طرح پہناؤ۔
تمھارے غلام تمھارے ہیں جو خود کھاؤ ان کو کھلاؤ اور جو خود پہنو وہی ان کو پہناؤ۔
خدا نے وراثت میں ہر حقدار کو اس کا حق دیا ہے۔ اب کسی وارث کے لیے وصیت جائز نہیں۔ لڑکا اس کا وارث جس کے بستر پر پیدا ہو، زناکار کے لیے پتھر اوران کے حساب خدا کے ذمہ ہے۔
عورت کو اپنے شوہر کے مال میں سے اس کی اجازت کے بغیر لینا جائز نہیں۔ قرض ادا کیا جائے۔ عاریت واپس کی جائے۔ عطیہ لوٹا دیا جائے۔ ضامن تاوان کا ذمہ دار ہے۔
مجرم اپنے جرم کا آپ ذمہ دار ہے۔ باپ کے جرم کا بیٹا ذمہ دار نہیں اور بیٹے کے جرم کا باپ ذمہ دار نہیں۔
اگر کٹی ہوئی ناک کا کوئی حبشی بھی تمھارا امیر ہو اور وہ تم کو خدا کی کتاب کے مطابق لے چلے تو اس کی اطاعت اور فرماں برداری کرو۔
لوگو! نہ تو میرے بعد کوئی نبی ہے اور نہ کوئی جدید امت پیدا ہونے والی ہے۔ خوب سن لو کہ اپنے پروردگار کی عبادت کرو اور پنجگانہ نماز ادا کرو۔ سال بھر میں ایک مہینہ رمضان کے روزے رکھو۔ خانہ خدا کا حج بجا لاؤ۔
میں تم میں ایک چیز چھوڑتا ہوں۔ اگر تم نے اس کو مضبوط پکڑ لیا تو گمراہ نہ ہوگے وہ کیا چیز ہے؟ کتاب اللہ اور سنت رسول اللہ۔

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या हुसैन

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بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

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