रमज़ान की फ़ज़ीलत

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इस्लाम के स्तंभ

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हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।
इस्लाम पाँच स्तंभों पर आधारित है जिन्हें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस फरमान के द्वारा स्पष्ट किया है :"इस्लाम की नीव पाँच चीज़ों पर आधारित है: इस बात की शहादत देना कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य (मा’बूद) नहीं, और यह कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के पैगंबर हैं, नमाज़ स्थापित करना, ज़कात देना, हज्ज करना और रमज़ान के महीने के रोज़े रखना।" (बुखारी हदीस संख्याः 8)
इस्लाम अक़ीदा (आस्था, विश्वास) और शरीअत (नियम, क़ानून, शास्त्र) का नाम है जिस में अल्लाह और उसके रसूल ने हलाल और हराम (वैध और अवैद्ध), नैतिकता, शिष्टाचार, उपासना के कार्य, मामलात, अधिकारों और कर्तव्यों और क़ियामत के दृश्यों को स्पष्ट किया है। जब अल्लाह तआला ने इस धर्म को अपने पैग़म्बर के हाथ पर परिपूर्ण कर दिया, तो इसे इस बात के लिए पसंद कर लिया कि यह क़ियामत आने तक सर्व मानव जाति के लिए जीवन का दस्तूर बन जाये : "आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमतें सम्पूर्ण कर दीं और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसन्द कर लिया।" (सूरतुल-माईदा:3)
यह इस्लाम के स्तंभ और उसके सिद्धांत हैं जिन पर वह आधारित है :
पहला स्तंभ : शहादतैन (दो गवाहियाँ अर्थात "ला-इलाहा इल्लल्लाह" और "मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" की गवाही) :
इस का मतलब यह है कि मनुष्य यह विश्वास रखे कि अकेला अल्लाह ही परमेश्वर (पालनकर्ता) स्वामी, नियंत्रक, उत्पत्तिकर्ता और प्रदाता है, और उसके उन सभी सुंदर नामों और सर्वोच्च गुणों को साबित करे जिन्हें अल्लाह ने अपने लिए साबित किया है, या उन्हें उसके लिए उसके रसूल ने साबित किया है, और यह आस्था और विश्वास रखे कि केवल अल्लाह ही इबादत का हक़दार है उसके सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है :"वह (अल्लाह) आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है, उसके औलाद कहाँ हो सकती है? जब कि उसकी कोई बीवी नहीं है वह हर चीज़ का बनाने वाला और जानने वाला है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है, उस के सिवाय कोई माबूद नहीं, हर चीज़ का बनाने वाला है, इसलिए उसी की इबादत करो और वह हर चीज़ का निगराँ है।" (सूरतुल अंआम : 101-102)
तथा मनुष्य यह आस्था रखे कि अल्लाह तआला ने अपने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपना रसूल बनाकर भेजा है, और आप पर क़ुर्आन अवतरित किया है और आप को तमाम लोगों तक इस दीन को पहुँचाने का आदेश दिया है, तथा यह आस्था रखे कि अल्लाह और उसके रसूल से महब्बत करना और उनका आज्ञापालन करना हर एक पर वाजिब है, और अल्लाह से महब्बत करना रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी और ताबेदारी के बिना परिपूर्ण नहीं हो सकता: "कह दीजिए अगर तुम अल्लाह तआला से महब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, स्वयं अल्लाह तआला तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा माफ करने वाला और बहुत मेहरबान (दयालू) है।" (सुरत-आल इम्रान: 31)
दूसरा स्तंभ : नमाज़
इसका मतलब यह है कि आदमी यह अक़ीदा रखे कि अल्लाह ने हर बालिग बुद्धिमान मुसलमान पर दिन और रात में पाँच वक्त की नमाज़ें अनिवार्य की हैं जिसे वह पवित्रता की हालत में अदा करेगा, चुनाँचि वह अपने रब के सामने हर दिन पाकी हासिल करके नम्रता और खुशू के साथ खड़ा होता है, अल्लाह का उसकी नेमतों पर शुक्र अदा करता है, उसके फज्ल़ (अनुकम्पा) का सवाल करता है, उस से अपने गुनाहों की माफी माँगता है, उस से जन्नत का प्रश्न करता है और जहन्नम से पनाह मांगता है।
दिन और रात में अनिवार्य नमाज़ें पाँच हैं : फज्र, ज़ुह्र, अस्र, मग्रिब और इशा। इसी तरह कुछ मस्नून (ऐच्छिक) नमाज़ें भी हैं जैसे क़ियामुल्लैल, तरावीह की नमाज़, चाश्त के वक्त की दो रक्अतें और इनके अलावा दूसरी सुन्नत नमाज़ें।
नमाज़, चाहे फज़Z हो या नफ्ल, सभी मामलों में केवल अकेले अल्लाह की ओर वास्तविक रूप से ध्यानगम्न (मुतवज्जिह) होने का प्रतिनिधित्व करता है, अल्लाह तआला ने अपने इस कथन के द्वारा समस्त मुसलमानों को जमाअत के साथ उसकी पाबन्दी करने का आदेश दिया है : "नमाज़ों की हिफाज़त करो विशेषकर बीच वाली नमाज़ की, और अल्लाह तआला के लिए विनम्रता के साथ (बा-अदब) खड़े रहा करो।" (सूरतुल बक़रा : 238)
पाँच समय की नमाज़ें दिन और रात में प्रत्येक पुरूष और स्त्री पर अनिवार्य हैं : "नि:सन्देह नमाज़ मुसलमानों पर निश्चित और नियत समय पर अनिवार्य की गई हैं।" (सूरतुन्निसा :103)
और जिस ने नमाज़ छोड़ दिया, उस आदमी का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं, अत: जिस ने जान बूझ कर उसे छोड़ दिया उस ने कुक्र किया जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "(लोगो !) अल्लाह की ओर ध्यान करते हुए उस से डरते रहो और नमाज़ को कायम रखो और मुश्रिकों (मूर्तिपूजकों) में से न हो जाओ।" (सूरतुर्रूम :31)
इस्लाम धर्म आपसी सहयोग, भाईचारे और प्यार पर आधारित है, इस्लाम ने इन नमाज़ों और इनके अलावा अन्य नमाज़ों के लिए एकत्र होने को इन्हीं प्रतिष्ठाओं (उद्देश्यों) को प्राप्त करने के लिए वैध किया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :"जमाअत की नमाज़ अकेले नमाज़ पढ़ने से सत्ताईस दर्जा श्रेष्ठ है।" (मुस्लिम हदीस नं.:650)
कठिनाई और आपदा के समय नमाज़ बन्दे के लिए सहायक है, अल्लाह तआला का फरमान है : "और सब्र और नमाज़ के द्वारा मदद हासिल करो। और वास्तव में यह बहुत भारी है, लेकिन अल्लाह से डरने वालों के लिए नहीं।" (सूरतुल बक़रा :45)
पाँच दैनिक नमाज़ें गुनाहों को मिटा देती हैं, जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है :"तुम्हारा क्या विचार है अगर तुम में से किसी के दरवाजे़ पर नदी हो जिस में वह प्रति दिन पाँच बार स्नान करता हो, तो क्या उसके शरीर पर कुछ गंदगी (मैल) बाक़ी रहे गी? लोगों ने उत्तर दिया : उसकी गंदगी (मैल-कुचैल) बाकी नहीं रह जाये गी। आप ने फरमाया : तो इसी के समान पाँच दैनिक नमाज़ें भी हैं इनके द्वारा अल्लाह तआला गुनाहों को मिटा देता है।" (मुस्लिम हदीस नं.: 677)
मिस्जद में नमाज़ पढ़ना स्वर्ग में प्रवेश करने का कारण है, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :"जो आदमी सुबह या शाम को मिस्जद में आता है तो अल्लाह तआला उसके लिए स्वर्ग में मेहमानी की व्यवस्था करता है जब भी वह सुबह या शाम के समय आता है।" (मुस्लिम हदीस नं. :669)
नमाज़ बन्दे को उसके उत्पत्तिकर्ता (खालिक़) से जोड़ती और मिलाती है, तथा वह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आँख की ठंढक थी। जब भी आप को कोई गंभीर मामला पेश आता था तो नमाज़ की तरफ भागते थे, अपने रब (प्रभु) से चुपके चुपके बातें करते, उस से विनती करते, उस से क्षमा मांगते और उसके फज्ल़ व मेहरबानी (दया और अनुकंपा) का प्रश्न करते।
विनम्रता और भय के साथ पढ़ी जाने वाली नमाज़ मुसलमान को उसके पालनहार (प्रभु) से क़रीब कर देती है, बेहयाई (अश्लीलता) और बुरे कामों से रोकती है जैसा कि अल्लाह सुब्हानहु का फरमान है :"आप पर जिस किताब की वह्य (प्रकाशना, ईश्वाणी) की गई है उसकी तिलावत कीजिये और नमाज़ स्थापित कीजिये, नि:सन्देह नमाज़ बेहयाई (अश्लीलता) और बुरी बातों से रोकती है।" (सूरतुल अंकबूत : 46)
तीसरा स्तंभ : ज़कात :
अल्लाह तआला ने लोगों को रंग, नैतिकता, व्यवहार, ज्ञान, कर्मों और जीविकाओं में भिन्न-भिन्न पैदा किया है, चुनाँचि उन्हीं में से कुछ को धन्वान और कुछ को निर्धन बनाया है, ताकि धन्वान की कृतज्ञता के द्वारा और निर्धन की धैर्य के द्वारा परीक्षा करे।
जब मोमिन लोग आपस में भाई-भाई हैं और यह भाईचारा, करूणा, हमदर्दी, स्नेह, दया, प्यार और मेहरबानी पर आधारित है, इसीलिए अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर ज़कात को अनिवार्य किया है जो उनके मालदार लोगों से लेकर उनके निर्धन और दरिद्र लोगों में बांट दिया जायेगा, अल्लाह तआला का फरमान है : "आप उनके मालों में से सद्क़ा ले लीजिए जिस के द्वारा आप उन्हें पाक व साफ कर दीजिए, और उनके लिए दुआ कीजिए, बेशक आप की दुआ उनके लिए इत्मेनान का कारण है।" (सूरतुत्तौबा : 103)
ज़कात, धन को पवित्र करता और उस में बढ़ोतरी करता है, आत्मा को कंजूसी और लोभ (लालच) से पाक करता है, गरीबों और मालदारों के बीच प्यार को मज़बूत बनाता है, जिस के कारण कीना-कपट (द्वेष) समाप्त हो जाता है, शान्ति फैलती है और उम्मत को सौभाग्य प्राप्त होता है।
जो भी आदमी सोना, चाँदी या अन्य धातुओं और व्यापार के सामान में से निसाब भर (वह न्यूनतम राशि जिस पर ज़कात अनिवार्य होती है) का मालिक हो और उस पर एक साल बीत जाये, तो उस पर अल्लाह तआला ने चालीसवाँ हिस्सा (2.5%) ज़कात निकालना अनिवार्य किया है, जहाँ तक कृषि उपज और फलों का संबंध है तो यदि उसकी सिंचाई बिना खर्च के हुई है तो उस में दसवाँ भाग और अगर खर्च के द्वारा उसकी सिंचाई हुई है तो उस में बीसवाँ भाग उसकी कटाई के समय ज़कात निकालना अनिवार्य है, और पशुओं के ज़कात की मात्रा का विवरण किक्ह की किताबों में है। अत: जो इसे निकाले गा अल्लाह तआला उसके गुनाहों को मिटा देगा, उसके धन में बरकत देगा और उसके लिए बहुत बड़ा अज्र (पुण्य) संग्रहित करके रखे गा, अल्लाह तआला का फरमान है : "तुम नमाज़ की अदायगी करो और ज़कात (धर्मदान) देते रहो, और जो भलाई तुम अपने लिये आगे भेजो गे सब कुछ अल्लाह के पास पा लोगे, बेशक अल्लाह तआला तुम्हारे अमल को देख रहा है।" (सूरतुल बक़रा : 110)
ज़कात को रोक लेना और उसकी अदायगी न करना उम्मत के लिए आपदाओं, मुसीबतों और बुराईयों को न्योता देता है, ज़कात रोकने वालों को अल्लाह तआला ने क़ियामत के दिन कष्टदायक अज़ाब की धमकी दी है, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है : "और जो लोग सोने चाँदी का खज़ाना रखते हैं और उसे अल्लाह के मार्ग में खर्च नहीं करते उन्हें कष्टदायक सज़ा की सूचना पहुँचा दीजिए। जिस दिन उस खज़ाना को जहन्नम की आग में तपाया जायेगा, फिर उस से उन के माथे और पहलू और पीठें दागी जायेंगी (उन से कहा जायेगा) यह है जिसे तुम ने अपने लिए खज़ाना बना कर रखा था, तो अपने खज़ानों का मज़ा चखो।" (सूरतुत्तौबा : 34)
ज़कात को गुप्त रखना उसे लोगों के सामने ज़ाहिर करने से बेहतर है जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "अगर तुम सदक़ात (दान-पुण्य) को ज़ाहिर करो, तो वह अच्छा है, और अगर तुम उसे छिपा कर गरीबों को दे दो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है, और अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को मिटा देगा, और तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उस से अवगत है।" (सूरतुल बक़रा : 27)
जब मुसलमान ज़कात निकाले तो उसके लिए उसे केवल उन्हीं चीज़ों में खर्च करना जाईज़ है जिनका अल्लाह तआला ने अपने इस कथन के द्वारा उल्लेख किया है : "ख़ैरात (ज़कात) तो बस फकीरों का हक़ है और मिसकीनों का और उस (ज़कात) के कर्मचारियों का और जिनके दिल परचाये जा रहे हों और गुलाम के आज़ाद करने में और क़र्ज़दारों के लिए और अल्लाह की राह (जिहाद) में और मुसाफिरों के लिए, ये हुकूक़ अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और अल्लाह तआला बड़ा जानकार हिकमत वाला है।" (सूरतुत्तौबा : 60)
चौथा स्तंभ : रमज़ान का रोज़ा रखना
रोज़ा रखने की नीयत (इच्छा) से फज्र के उदय होने से लेकर सूर्यास्त तक रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों जैसे खाना पीना और संभोग से रूका रहना रोज़ा या 'सौम' कहलाता है।
ईमान के अंदर सब्र (धैर्य) का स्थान शरीर में सिर के समान है। अल्लाह तआला ने इस उम्मत पर साल भर में एक महीना रोज़ा रखना अनिवार्य किया है ताकि वह अल्लाह से डरे, अल्लाह की हराम की हुई चीज़ से बचाव करे और सब्र करने और अपने नफ्स को नियंत्रण में करने का आदी बने, दानशीलता, उदारता, आपसी सहयोग, हमदर्दी और दया में एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयास करे। अल्लाह तआला का फरमान है : "ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े रखना अनिवार्य किया गया है जिस प्रकार तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किया गया था, ताकि तुम संयम और भय अनुभव करो।" (सूरतुल बक़रा: 183)
रमज़ान का महीना एक महान महीना है जिस में अल्लाह तआला ने क़ुर्आन अवतरित किया, और इस में अच्छे कर्म, दान (खैरात) और उपासनाओं के अज्र व सवाब (बदले) कई गुना बढ़ा दिये जाते हैं, इस महीने में लैलतुल-क़द्र भी है, जो एक हज़ार महीने से बेहतर है, इस महीने में आकाश (स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं और नरक के द्वार बंद कर दिये जाते हैं, और शैतानों को जकड़ दिया जाता है।
अल्लाह तआला ने रमज़ान के महीना का रोज़ा रखना हर बुद्धिमान व्यस्क मुसलमान पुरूष एंव स्त्री पर अनिवार्य किया है, जैसाकि अल्लाह ताअला का फरमान है : "रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन उतारा गया जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है और जिसमें मार्गदर्शन की और सत्य तथा असत्य के बीच अन्तर की निशानियाँ हैं, तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे रोज़ा रखना चाहिए। और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे, अल्लाह तआला तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता है, वह चाहता है कि तुम गिनती पूरी कर लो और अल्लाह के प्रदान किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार उसकी बड़ाई बयान करो और उसके शुक्रगुज़ार (कृतज्ञ) रहो।" (सूरतुल बक़रा: 185)
अल्लाह के पास रोज़े का सवाब (बदला) बहुत महान है, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "आदम के बेटे का हर कर्म कई गुना कर दिया जाता है, नेकी को दस गुना से सात सौ गुना तक बढ़ा दिया जाता है, अल्लाह अज्ज़ा व जल्ल का फरमान है कि सिवाय रोज़े के, क्योंकि वह मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला दूँगा, वह (रोज़ादार) अपनी शह्वत और अपने खाने को मेरे कारण त्याग देता है।" (मुस्लिम)
पाँचवाँ स्तंभ : हज :
अल्लाह तआला ने मुसलमानों के लिए एक क़िब्ला नियुक्त कर दिया है जिसकी ओर वे अपनी नमाज़ों और प्रार्थनाओं में चेहरा करते हैं चाहे वे कहीं भी हों, और वह मक्का मुकर्रमा में अल्लाह का प्राचीन घर है : "आप अपना मुँह मिस्जदे हराम की तरफ फेर लें और आप जहाँ कहीं भी हों आप अपना मुँह उसी ओर फेरा करें।" (सूरतुल बक़रा : 144)
जब मुसलमानों के घर एक दूसरे से दूर हैं और इस्लाम उन्हें एकजुट होने और एक दूसरे का परिचय प्राप्त करने का आह्वान करता है, जिस प्रकार कि नेकी और संयम के काम पर एक दूसरे का सहयोग करने, हक़ की वसीयत करने, अल्लाह की ओर बुलाने और अल्लाह के शआइर की ता'ज़ीम (सम्मान) करने की ओर बुलाता है, इसी कारण अल्लाह तआला ने हर बुद्धि वाले सामर्थी व्यस्क मुसलमान पर अपने प्राचीन घर की ज़ियारत करना, उसका तवाफ करना (परिक्रमा करना) अनिवार्य किया है, तथा हज्ज के मनासिक (कार्यकर्म) को उसी प्रकार अदा किया जायेगा जैसाकि अल्लाह और उसके रसूल ने बयान किया है। अल्लाह तआला ने फरमाया : "अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान : 97)
हज्ज एक ऐसा मौसम है जिस में मुसलमानों की एकजुटता, ताक़त और गौरव स्पष्ट होकर सामने आता है, चुनाँचि उनका रब (पालनहार) एक ही है, किताब एक है, पैगंबर एक है, उम्मत एक है, इबादत एक है और पोशाक एक ही है।
हज्ज के कुछ आदाब (शिष्टाचार) और शर्तें हैं जिन पर मुसलमान के लिए अमल करना अनिवार्य है, जैसे कि ज़ुबान, कान और आँख की अल्लाह की हराम की हुई चीज़ों से सुरक्षा करना, नीयत का खालिस होना, खर्च का पाक (हलाल) होना, अच्छी नैतिकता से सुसज्जित होना, और हज्ज को खराब करने वाली सभी चीज़ों से दूर रहना जैसे कि कामुक बातें, नाफरमानी और लड़ाई झगड़ा, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु का फरमान है : "हज्ज के कुछ जाने पहचाने महीने हैं, अत: जिस ने इन महीनों में हज्ज को फर्ज़ कर लिया, तो हज्ज में कामुकता की बातें, फिस्क़ व फुजूर (अवहेलना) और लड़ाई-झगड़ा नहीं है, तुम जो भलाई (सवाब) का काम करोगे अल्लाह उसे जानने वाला है, और अपने साथ रास्ता का खर्च ले लिया करो, सब से बेहतर रास्ता का खर्च तो अल्लाह का डर है, और ऐ बुद्धिमानों! मुझ से डरते रहा करो।" (सूरतुल बक़रा :197)
जब मुसलमान हज्ज को शुद्ध धार्मिक तरीक़े पर अदा करता है, और वह अल्लाह के लिए खालिस होता है, तो वह उसके गुनाहों का कफ्फारा (प्रायश्चित) बन जाता है, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस आदमी ने हज्ज किया और उसमें संभोग और उस से संबंधित कामुक चीज़ों और अवज्ञा से बचा रहा, तो वह उस दिन के समान वापस लौटा जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था।" (बुखारी हदीस नं.: 15210)
Courtesy islamqa

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अल्लाह और रोज़ेदार

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एक बार मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से पूछा कि मैं जितना आपके क़रीब रहता हूं, आप से बात कर सकता हूं, उतना और भी कोई क़रीब है ?
अल्लाह तआला ने फ़रमाया- ऐ मूसा ! आख़िरी वक़्त में एक उम्मत आएगी, वह उम्मत मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहिवसल्लम) की उम्मत होगी. उस उम्मत को एक महीना ऐसा मिलेगा, जिसमें लोग सूखे होंठ, प्यासी ज़ुबान, सूखी आंख़ें , भूखे पेट,  इफ़्तार करने बैठेंगे, तब मैं उनके बहुत क़रीब रहूंगा.
मूसा हमारे और तुम्हारे बीच में 70 पर्दों  का फ़ासला है, लेकिन इफ़्तार के वक़्त उस उम्मती और मेरे बीच में एक पर्दे का भी फ़ासला नहीं होगा और वो जो दुआ मागेंगे, उनकी दुआ क़ुबूल करना मेरी ज़िम्मेदारी है.
एक बार मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से पूछा कि मैं जितना आपके क़रीब रहता हूं, आप से बात कर सकता हूं, उतना और भी कोई क़रीब है ?
अल्लाह तआला ने फ़रमाया- ऐ मूसा ! आख़िरी वक़्त में एक उम्मत आएगी, वह उम्मत मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहिवसल्लम) की उम्मत होगी. उस उम्मत को एक महीना ऐसा मिलेगा, जिसमें लोग सूखे होंठ, प्यासी ज़ुबान, सूखी आंख़ें , भूखे पेट, इफ़्तार करने बैठेंगे, तब मैं उनके बहुत क़रीब रहूंगा.
मूसा हमारे और तुम्हारे बीच में 70 पर्दों का फ़ासला है, लेकिन इफ़्तार के वक़्त उस उम्मती और मेरे बीच में एक पर्दे का भी फ़ासला नहीं होगा और वो जो दुआ मागेंगे, उनकी दुआ क़ुबूल करना मेरी ज़िम्मेदारी है.

नोट : ये तहरीर राहे-हक़ के लिए भाई  Sahil Khan​  ने भेजी है. जज़ाक अल्लाह.
तस्वीर गूगल से साभार

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रमज़ान और ईद का चांद

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1. अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) से रिवायत है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- महीना 29 दिन का हो सकता है, जब तक चांद ना देख लो रोज़ा न रखो, और अगर आसमान में बादल हों, तो शाबान के 30 दिन पूरे करो. (मतलब शाबान के महीने के 30 दिन पूरे हो जाने के बाद रमज़ान शुरू करो. (सहीह बुख़ारी, जिल्द 3, किताब 31, हदीद # 131).

2. अबू हुरैरह (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) से रिवायत है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- चांद देखकर रोज़ा रखो और चांद देखकर रोज़ा ख़त्म करो. और जब आसमान में बादल हों (चांद के देखने की कोई शरई गवाही ना मिले) तो 30 दिन के रोज़े पूरे करो (सहीह मुस्लिम, हदीस # 2378).

चांद ना देखे जाने पर शरई गवाही
3. इकरिमा (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) से रिवायत है कि एक बार लोगों में रमज़ान के चांद में मुताल्लिक़ संदेह हुआ और इरादा किया कि ना ही तरावीह पढ़ी जाए और ना ही रोज़ा रखा जाए. एक बद्दू “अल हर्राह” से आया और चांद देखने की गवाही दी. उसको अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास लाया गया. अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- क्या तुम गवाही देते हो कि अल्लाह एक है और मैं अल्लाह का रसूल हूं? उसने (बद्दू) कहा कि “हां” मैं गवाही देता हूं. और गवाही देता हूं कि मैंने चांद देखा. अल्लाह के नबी ने बिलाल (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) को हुक्म दिया कि तरावीह और रोज़े की ऐलान कर दिया जाए.
4. अबू उमैर इब्न अनस (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास कुछ सुवार (लोग) आए और अर्ज़ किया कि या रसूलुल्लाह हमने चांद एक दिन पहले देखा. इस पर रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लोगों को रोज़ा तोड़ने का हुक्म दिया. (अबू दाऊद हदीस # 1153).

चांद ना देखे जाने पर ईद
5. अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) से रिवायत है कि कुरय्ब ने कहा- उम्म फद्ल ने अपने बेटे को हज़रते-मुआविया (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) के पास सीरिया भेजा.
मैं (फद्ल) सीरिया में था कि रमज़ान के महीने की आमद हो गई. मैंने (फद्ल ने) रमज़ान का चांद जुमे की रात को देखा. और मैं मदीने वापस रमज़ान के आख़िर में आया.
अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) ने मुझसे रमज़ान का चांद देखे जाने के बारे में दरयाफ़्त किया कि तुमने रमज़ान का चांद कब देखा? मैंने कहा कि हमने चांद जुमे की रात को देखा. फ़रमाया कि क्या आपने खुद से चांद देखा? मैंने जवाब दिया कि हां मैंने ख़ुद देखा और लोगों ने भी देखा और रोज़ा रखा. मुआविया (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) ने भी रखा.
इस पर अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि अल्लाहु तअला अन्ह) ने कहा, लेकिन हमने तो चांद हफ़्ते (Saturday) की रात को देखा, इसलिए हम 30 पूरे करेंगे या जब तक हम शव्वाल का चांद ना देख लें. मैंने कहा कि क्या मुआविया का चांद देखना आपके लिए काफ़ी नहीं? इस पर उन्होंने (इब्न अब्बास) कहा, नहीं, ये वो तरीक़ा है जो हमें रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बताया. (सहीह मुस्लिम, हदीस # 2391)

तस्वीर गूगल से साभार

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بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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  • पैग़ाम-ए-मादर-ए-वतन का लोकार्पण - मेरठ में 14 मई 2008 को मासिक पैग़ाम-ए-मादर-ए-वतन का लोकार्पण करते राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिज्ञ ग...
  • شوگر کا گھریلو علاج - * فردوس خان* شوگر ایک ایسی بیماری ہے جس کی وجہ سے انسان کی زندگی بہت بری طرح متاثر ہوتی ہے۔ وہ مٹھائیاں، پھل، آلو، کولکاشیا اور اپنی پسند کی بہت سی د...
  • भाजपा का विकल्प - *फ़िरदौस ख़ान* दिल्ली में नगर निगम चुनाव से पहले हमने बहुत से लोगों ख़ासकर मुस्लिम कांग्रेसियों से बात की थी. कांग्रेसी इसलिए कि कभी ये सब कांग्रेस के कट्टर ...
  • 27 सूरह अन नम्ल - सूरह अन नम्ल मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 93 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. ता सीन. ये क़ुरआन और रौशन किताब की आयतें...
  • Rahul Gandhi in New York - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Times Square: Rahul Gandhi on September 20 addressed Non-Resident Indians (N...
  • ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਕਾ ਸ਼ਹਜ਼ਾਦਾ - *ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਕਾ ਸ਼ਹਜ਼ਾਦਾ *

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इस बलॊग में इस्तेमाल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं
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