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कटा फटा दरूद मत पढ़ो

Author: फ़िरदौस ख़ान Labels::


डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी  
रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो।
इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे कहते हैं, जिसमें रसूले करीम की आल यानी अहले बैत शामिल न हों, तो वह कटा फटा दरूद है। 
फटा दरूद का मतलब है कि जिसमें आल की आल यानी अहले बैत की औलादे-इमामीन न शामिल हों तो यह फटा दरूद है। 
अब दरूद पढ़ने में यह तरीक़ा अपनायें, बाद में  आप दरूद शरीफ़ में "व आलिही" लफ़्ज़ ज़रूर शामिल करें। ज़हनी तौर से आले रसूल की औलाद भी हज़रते मेहदी अलैहिस्सलाम तक शामिल रहें। तब आपका मुकम्मल दरूद शरीफ़ का पढ़ना ही पढ़ना होगा।

प्रैक्टिकल और थ्योरिकल दरूद का पढ़ना
प्रैक्टिकल और थ्योरिकल दरूद पढ़ने का मतलब है कि दरूद पाक का पढ़ना और अमल करना दोनों ही शामिल हैं, जैसे क़ुरआन पाक की तिलावत करना और उस पर अमल करना। दोनों ही काम अलग हैं, क़ुरआन पाक और दरूद शरीफ़ की रोज़ाना तिलावत तो करते हो और अमल नहीं करते हो, तो क़ुरआन पाक की उस तिलावत का क्या फ़ायदा है। 
जैसे आप पढ़ रहे हैं "इन्नल्लाह मा अस्साबिरीन।" हम जब इस आयत को पढ़ रहे हैं और सब्र बिलकुल नहीं  कर रहे हैं, तो पढ़ने से कुछ हासिल नहीं है। जिस तरह पानी-पानी कहने से प्यास नहीं बुझती है, जब तक पानी पिएंगे नहीं।
ठीक इसी तरह से हम दरूद शरीफ़ तो पढ़ते हैं, मगर अहले बैत को नहीं मानते हैं या अहले के मक़ाबिल दीगर शख़्सियात को पेश करते हो। और हाँ दरूद शरीफ़ भले ही न पढ़ो, मगर अहले बैते अतहार से मुहब्बत करो जैसा कि हक़ और हुक्मे-ख़ुदा है, तो आपने प्रैक्टिकल ही कर के थ्योरी भी कर ली, मगर थ्योरी पढ़ने से प्रैक्टिकल नहीं कर पाओगे।

अहले बैत से पीराने तरीक़त तक
अहले बैत से पीराने तरीक़त तक का मतलब यह है कि हर सिलसिला रूहानी चिश्ती, क़ादरी. सुहरवर्दी और नक़्शबंदी अल्लाह के हबीब और आपकी औलाद के इमामीन से जुड़ा हुआ है, यानी आपके अहले बैत से जुड़ा हुआ है। अब आप अगर किसी भी मुरशिद (इमाम) से रूहानी फ़ायदा पाते हैं, यानी मुरीद होते हैं तो औलादे रसूल की ग़ुलामी में आ जाते हैं। तो अब आप मुरशिदाने-हक़ (इमामीन) से मुहब्बत और हुस्ने-सुलूक करते हो, तो यह अमल अहले बैत तक पहुंचाता है, मगर इस शर्त के साथ के पंजतन पाक की मुहब्बत हमारे लिये मुवद्दत की सूरत में ही होनी चाहिए। लिहाज़ा आप अगर रसूले करीम से मुहब्बत तो करते हो मगर फूल, फल, पत्ती और शाख़ से मुहब्बत नहीं करते हैं, तो तुम्हें यह लाज़मी है कि उस दरख़्त से बे पनाह मुहब्बत के साथ अहले बैत से भी वैसी ही मुहब्बत होनी चाहिए, जैसी रसूले करीम से करते हो, तो आपका दरूद पाक पढ़ना कामियाब है, वरना नहीं। अहले बैत को मानना और मुहब्बत करना वसीले (निस्बत) के ज़रिये पंजतन पाक और अल्लाह तक पहुंचता है। इसके अलावा कोई दूसरा चारा ही नहीं है, जो अहले बैत की मुहब्बत और "अलीयुन वलीउल्लाह" की गवाही का गवाह बन सके।

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दरूद शरीफ़ की ख़ासियत

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दरूद शरीफ़ की फ़ज़ीलत

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दरूद शरीफ़
* अल्ला हुम्म सल्लि अला सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिव व अला आलि सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिव
व बारिक वस्ल्लिम.

अल्लाह हम सबको कसरत से दरुद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन






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ज़ियारत के लिए

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हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत के लिए पढ़ें

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ग़ौसे-आज़म और सलाम

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हज़रत ग़ौसे-आज़म रहमतुल्ला अलैह की जब पैदाइश हुई, तो आपके साथ जितने भी बच्चे पैदा हुए सब कामिल वली गुज़रे. उन्होंने अपनी मां के पेट में ही 11 पारे हिफ़्ज़ कर लिए थे.
आप एक बार घर के बाहर खड़े थे. उस वक़्त वहां से एक बुज़ुर्ग का गुज़र हुआ. बुज़ुर्ग हज़रत ने सुन्नत अदा करते हुए आपसे पहले सलाम किया, तो ग़ौसे-आज़म सैयद मोईनुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी सलाम सुनकर जवाब कुछ इस तरह देते हैं-
वालेकुम अस्सलाम वरहमतुल्लाही वबरकतुहु
वालेकुम अस्सलाम वरहमतुल्लाही वबरकतुहु
इस पर बुज़ुर्ग हज़रत हैरान होकर पूछते हैं- बेटे अब्दुल क़ादिर ! मैंने तो एक बार सलाम किया, फिर आपने दो बार जवाब क्यों दिया ?
इस पर ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- मैंने दो बार जवाब इसलिए दिया, क्योंकि एक बार अभी आपपने सलाम किया. और याद कीजिए जब मैं अपनी मां के पेट में था, तब आप आए थे और आपने सलाम किया था.
बुज़ुर्ग हज़रत हैरान होकर अर्ज़ करते हैं- तो आपने उस वक़्त सलाम का जवाब क्यों नहीं दिया ?
ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- उस वक़्त मैं अपनी मां के पेट में था. अगर उस वक़्त जवाब देता, तो मेरी अम्मी जान घबरा जातीं. इसलिए मैंने आज ये वाजिब अदा किया.
एक बार आप बाहर खेल रहे थे, तो अपनी मां से अर्ज़ करते हैं- अम्मी जान आपको याद है, जब मैं आपके पेट में था, तब आप अंगूर के बागीचे में अंगूर तोड़ रही थीं, तब आपके पेट में ज़ोर से दर्द होना शुरू हो गया था.
फिर दर्द रुक गया और फिर अंगूर तोड़ने लगीं, तो फिर दर्द होने लगा, तो आपने अंगूर तोडना छोड़ कर आप घर आ गईं.
आपकी वालिदा मोहतरमा बड़ी हैरानी के साथ पूछती हैं- हां, बेटे पर तुम्हें कैसे पता ?
ग़ौसे-आज़म मुस्कुराकर इरशाद फ़रमाते हैं- अम्मी जान वो दर्द मैंने ही जब बूझकर आपके पेट में हरकत करके पैदा किया था. इस पर आपकी अम्मी जान कहती हैं- बेटे आपको पता है कि मां को तकलीफ़ पहुंचाना कितना बड़ा गुनाह है.
ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- अम्मी जान ! आपको उस वक़्त अंगूर नज़र आ रहे थे, लेकिन अंगूर के गुच्छे के अंदर छुपा काला स्याह बिच्छू नज़र नहीं आ रहा था. वो बिच्छू मैंने देख लिया था, तभी मैंने हरकत की, ताकि आपको दर्द हो, जिससे आप अंगूर को न तोड़ें और काले बिच्छू से बच जाएं. और ऐसा ही हुआ भी. 

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दरूद शरीफ़ की फ़ज़ीलत

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दरूद शरीफ़
* अल्ला हुम्म सल्लि अला सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिव व अला आलि सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिव
व बारिक वस्ल्लिम.



अल्लाह हम सबको कसरत से दरुद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन

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दरूद-ए- अकसीर-ए-आज़म

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Durood-e-Akseer-e-Azam
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद-ए-अकबर शरीफ़

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Durood-e-Akbar Shareef
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद लखी

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एक बार दरूद लखी पढ़ने का सवाब एक लाख दरूद शरीफ़ के बराबर होता है, इसलिए इसे दरूद लखी कहा जाता है.







Durood-e-Lakhi Shareef
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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या हुसैन

या हुसैन

بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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