हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह

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हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह 80 हिजरी कूफ़ा में पैदा हुए. नाम नोमान रखा गया. (अलख़ैरात अलहस्सान, अज़ अल्लामा शहाबुद्दीन अहमद बिन हिज्र मक्की रहमतुल्लाह अलैह).
नाम व नस्ब
नोमान बिन साबित बिन नोमान बिन महर ज़बान बिन साबित बिन यज़्द गर्द बिन शहरयार बिन परवेज़ बिन नौशेरवां और ये सिलसिला आगे जाकर हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम के वास्ते से हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से मिल जाता है, जो आपकी शाने-रिफ़अत व अज़मत के लिए काफ़ी है.
तालीम
इमामे-आज़म अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह इब्तेदाई तालीम हासिल करने के बाद तिजारत की तरफ़ मुतवज्जा हो गए थे, मगर उसी दरमियान एक रात आपने ख़्वाब में हुज़ूर नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाल जहांआरा की ज़ियारत फ़रमाई. हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया- ऐ अबु हनीफ़ा ! अल्लाह तअला ने तुम्हें मेरी सुन्नत के इज़हार के लिए पैदा किया है, तो दुनिया की किनाराकशी इख़्तियार ना करो. (तज़किरतुल अवलिया सफ़्हा- 126)
इन्हीं दिनों आप किसी काम से जा रहे थे कि इमाम शाबी रहमतुल्लाह अलैहि से मुलाक़ात हो गई. उन्होंने आपसे दरियाफ़्त फ़रमाया कि तुम किस दर्सगाह में पढ़ते हो? आपने फ़रमाया- मैं कपड़े की तिजारत करता हूं. इस पर इमाम शाबी रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़रमाया- मैं तुम में क़ाबिलियत के जौहर देख रहा हूं. तुम उल्मा की सोहबत में बैठो और इल्म हासिल करो. ( सीरतुल नोमान)
हज़रत हम्माद जिनका सिलसिला तलम्मुज़ हज़रत अबदुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हा से मिलता है, उस वक़्त बिलइत्तेफ़ाक़ कूफ़ा की सबसे बड़ी दर्सगाह उन्हीं की थी. वहीं आपने पढ़ना शुरू कर दिया. (अनवारे इमामे-आज़म, मर्तबा अल्लामा मंशा ताबिश क़ुसूरी, लाहौर)
इमामे आज़म का हुस्ने सुलूक
हज़रत सैय्यदना इमामे आज़म अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह निहायत रहम दिल थे. हर किसी के साथ निहायत ही फ़ैय्याज़ाना सुलूक फ़रमाते. चुनांचे मनक़ूल है कि आपके पड़ौस में एक मोची रहता था, जो निहायत ही आवारा क़िस्म का आदमी था. दिन भर तो मेहनत व मज़दूरी करता. शाम को जब काम से लौटता तो शराब और गोश्त ख़रीद लाता. रात जब कुछ ढल जाती, तो उसी की तरह कुछ और आवारा लोग उसके घर जमा हो जाते और ये अपने हाथों से कबाब बनाता और शराब का दौर चलता. फिर रक़्स व सरोद की महफ़िल गर्म होती, शोर शराबा होता, जिससे हज़रत इमामे -आज़म की इबादत में ख़लल वाक़े होता था. लेकिन यही उस शख़्स के रोज़ाना का मामूल था. हज़रत इमाम कमाल दर्जा का सब्र फ़रमाते और कुछ ना कहते. एक रात मोची और उसके दोस्तों की आवाज़ ना सुनाई दी. फ़ज्र के बाद आपने लोगों से दरयाफ़्त किया कि हमारे पड़ौस में जो मोची रहता है, क्या बात है कि रात उसकी आवाज़ सुनने को नहीं मिली? लोगों ने बताया कि कल रात कोतवाल और उसके कारिंदे जब मोची के घर के पास से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने मोची के घर से काफ़ी शोर व शराबा सुना. इस वजह से उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है. ये सुनकर आप बहुत ग़मगीन हुए और सीधे दारुल एमारः गवर्नर कूफ़ा के पास पहुंचे. गवर्नर ईसा बिन मूसा ने तशरीफ़ आवरी का सबब दरयाफ़्त किया. आपने फ़रमाया- मेरे पड़ौस में एक मोची रहा करता है, जिसे कल रात कोतवाल गिरफ़्तार कर लाया है. मैं उसकी सिफ़ारिश के लिए आया हूं, उसे रिहा कर दिया जाए. उसी वक़्त गवर्नर ने हुक्म दिया और मोची को छोड़ दिया गया. जब आप लौटने लगे, तो मोची भी आप के साथ हो लिया. उसके दिल पर आपके सुलूक का ऐसा असर हुआ कि वो सच्चे दिल से ताएब हो गया और हज़रत की सोहबत में रहने लगा. यहां तक कि लोग उसे फ़कीह के मुअज़्ज़िज़ लक़ब से पुकारने लगे. (अलख़ैरात अलहस्सान)
इमामे-आज़म और तिजारत
हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह कूफ़ा में कपड़े के बड़े ताजिर थे और आप का कारोबार निहायत ही वसी पैमाने पर था. आपका माले तिजारत दूर दराज़ इलाक़ों में भी भेजा करते थे. ज़रूरी अशिया बाहर से मंगवाते भी थे. तिजारत व कारोबार में सच्चाई और दियानतदारी का ऐसा ख़्याल रखते थे कि इसकी मिसाल कम ही इस ज़मीन पर मिल सकती है. एक मर्तबा का वाक़िया है कि आपने दुकान से कहीं जाते वक़्त कपड़ों का थान नौकर के सुपुर्द किया और फ़रमाया- अगर कोई उसे ले, तो उसे कपड़ों का ऐबदार होना बता देना. फिर जब आप दुकान पर वापस आए, तो देखा कि कपड़े बिक चुके हैं. आपने मुलाज़िम से दरयाफ़्त फ़रमाया कि तुमने इन कपड़ों का ऐबदार होना ख़रीदने वाले को बता दिया था. इस पर ख़ादिम ने नेदामत का इज़हार करते हुए कहा कि मैं भूल गया था, मुझे याद ही ना था. इस पर इमाम साहब ने कपड़ों की पूरी क़ीमत जिसकी मालियत तीस हज़ार दिरहम थी, सदक़ा फ़रमा दी. अल्लाहो अकबर क्या इससे बढ़कर भी कोई दियानतदारी का सबूत पेश कर सकता है.
इमामे-आज़म और इबादत
हज़रत इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे-आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने चालीस साल तक इशा के वुज़ू से फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी. रात भर आप क़ुरान शरीफ़ पढ़ा करते थे और ख़ौफ़े-ख़ुदा से इस क़द्रर रोते थे कि आप के हमसायों को आप पर रहम आता था.
हज़रत इमाम के शागिर्द हज़रत क़ाज़ी इमाम अबु यूसुफ़ फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे-आज़म हर रात और दिन में एक ख़त्म क़ुरान पढ़ा करते थे और रमज़ान शरीफ़ में (दिन और रात मिला कर) बासठ क़ुरान ख़त्म फ़रमाया करते थे. (अलख़ैरात अलहस्सान, सफ्हा- 82)
हज़रत मिसअर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे-आज़म फ़ज्र से इशा तक तदरीसी कामों और इफ़्ता वग़ैरह में मसरूफ़ रहते थे. एक मर्तबा मैंने सोचा कि आख़िर आप इबादत कब करते हैं, उसे मालूम किया जाए. इस नीयत से मैं इस खोज में लग गया. जब रात हुई और लोग इशा की नमाज़ से फ़ारिग़ होकर सो गए, तो मैंने देखा कि हज़रत इमामे-आज़म मस्जिद में तशरीफ़ ले गए और पूरी रात फ़ज्र तक इबादत में गुज़ार दी. फिर फ़ज्र की नमाज़ के बाद हसबे-मामूल आप तदरीसी कामों में मसरूफ़ हो गए. यहां तक कि फिर रात आ गई, तो मैंने देखा कि आप मस्जिद आकर इबादत में मसरूफ़ हो गए. फिर सुबह हुई, तो अपने मुआमलात की तरफ़ मुतवज्जा हुए.
मैंने दिल में ख़्याल किया कि दो रातें तो हज़रत इमाम ने निशात के साथ इबादत में गुज़ार दी हैं. अब देखा जाए कि क्या करते हैं. चुनांचे मैंने देखा कि हसबे-मामूल आपने फिर पूरी रात इबादत में गुज़ार दी. इस पर मैंने ये अज़्म किया कि ज़िंदगी भर मैं ऐसे इबादतगुज़ार की सोहबत ना छोड़ूंगा, जो दिनों को रोज़े रखता है और रात को बेदार रहकर अल्लाह की इबादत में गुज़ारता है. (अलख़ैरात अलहस्सान, सफ्हा- 82)
इमामे-आज़म और ख़ुदातरसी
इमामे-आज़म के अंदर ख़शीयते-इलाही का वाफ़र हिस्सा मौजूद था. अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का नाम सुनते ही आप पर लर्ज़ा तारी हो जाता था. चुनांचे हज़रत यज़ीद बिन लैस बयान करते हैं कि एक मर्तबा इशा की जमात में इमाम ने इज़ाज़ुल॒ ज़िलतिल अर्दा पढ़ी. हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा जमात में शरीक थे. जब सारे लोग नमाज़ से फ़ारिग़ होकर चले गए, तो मैंने देखा कि हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा फ़िक्र में डूबे हुए हैं और ठंडी सांस ले रहे हैं. मैंने ख़्याल किया कि मेरी वजह से हज़रत के ज़िक्र व फ़िक्र में कोई ख़लल वाक़े ना हो. चिराग़ जलता हुआ छोड़कर आहिस्तगी के साथ मस्जिद से निकल गया. फ़ज्र के वक़्त जब मैं मस्जिद पहुंचा, तो देखा कि आप अपनी दाढ़ी पकड़े हुए हैं और इज़ाज़ुल॒ ज़िलतिल अर्दा पूरी सूरत की तिलावत फ़रमा रहे हैं और निहायत ही रक्तअंगेज़ और दर्द भरी आवाज़ में कह रहे हैं, ऐ मेरे मालिक व ख़ालिक़ ! जो ज़र्रा भर नेकी का अच्छा बदला देने वाला है और ज़र्रा भर बुराई की सज़ा देने वाला है अपने बंदे-नोमान को आग और उसके अज़ाब से बचाना और अपने जवाज़े-रहमत में दाख़िल फ़रमाना. (अलख़ैरात अलहस्सान, सफ़्हा- 86)
इसी तरह एक दिन मस्जिद के इमाम ने फ़ज्र की नमाज़ में ये आयते-करीमा पढ़ी ( तर्जुमा), तुम हरगिज़ अल्लाह ताला को इससे बेख़बर ना समझना, जो कुछ ज़ालिम करते हैं. ये सुनना था कि हज़रत हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह के जिस्म पर ख़ौफ़े-ख़ुदा की वजह से लर्ज़ा तारी हो गया, जिसे नमाज़ में शरीक लोगों ने भी महसूस किया. (अलख़ैरात अलहस्सान, सफ़्हा- 89)
तारीख़ विसाल
हज़रत इमामे-आज़म अबु हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह का विसाल सत्तर बरस की उम्र में 2 शाबानुल मोअज़्ज़म 150 हिजरी में हुआ. जामा मस्जिद बग़दाद में आपका आस्ताना मुबारका मरज्जा ख़लाइक़ है.
Hazrat imam abu hanifa (R.A.)
साभार

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पांचों नमाज़ों के बाद पढ़ने की तस्बीह

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हुवल हय्युल क़य्यूम
तर्जुमा : अल्लाह ही हमेशा ज़िन्दा और बाक़ी रहने वाला है
ज़ुहर
हुवल अलीयुल अज़ीम
तर्जुमा : अल्लाह ही बुलंद अज़मत वाला है
अस्र
हुवर रहमानुर्रहीम
तर्जुमा : अल्लाह ही निहायत रहम करने वाला और मेहरबान है
मग़रिब
हुवल ग़फ़ूरुर्रहीम
तर्जुमा : अल्लाह ही बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है
इशा
हुवल लतीफ़ुल ख़बीर
तर्जुमा : अल्लाह ही हर छोटी बड़ी चीज़ से बाख़बर है

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
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This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
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