रबीउल अव्वल

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पहली रबीउल अव्वल की रात
बेसत के तेरहवें साल इसी रात हज़रत रसूलुल्लाह स.अ के मक्क-ए-मुअज़्ज़मा से मदीना-ए-मुनव्वरा को हिजरत (पलायन) की शुरुआत हुई, इस रात आप सौर नामक गुफ़ा में रहे और हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम अपनी जान आप पर फिदा करने के लिए मुशरिक क़बीलों की तलवारों से बे परवाह हो कर पैग़म्मुबर हम्मद स.अ. के बिस्तर पर सो रहे थे.
इस तरह आपने अपनी फज़ीलत और हज़रत रसूलुल्लाह स.अ. के साथ अपनी वफ़ादारी व हमदर्दी की महानता को सारी दुनिया पर ज़ाहिर कर दिया. तो इसी रात अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की शान में आयत उतरी:
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْرِي نَفْسَهُ ابْتِغَاء مَرْضَاتِ اللّهِ وَاللّهُ رَؤُوفٌ بِالْعِبَادِ (सूरा बक़रा आयत 207)
और लोगों में से कुछ हैं जो अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के लिए जान देते हैं.
पहली रबीउल अव्वल का दिन
उल्मा का कहना है कि इस दिन हज़रत रसूले अकरम स. और अमीरुल अलैहिस्सलाम की जान बच जाने पर शुकराने का रोज़ा रखना मुस्तहब है और आज के दिन उन दोनों हस्तियों की ज़ियारत पढ़ना भी मुनासिब है.
सैयद ने इक़बाल नामक किताब में आज के दिन के दुआ भी लिखी है. शेख कफ़अमी के अनुसार आज ही के दिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की वफ़ात हुई, लेकिन मशहूर कथन है कि आपका निधन इस महीने की आठवीं तारीख़ को हुआ, लेकिन संभव है कि पहली तारीख़ से आपकी बीमारी शुरू हुई हो.
आठवीं रबीउल अव्वल का दिन
मशहूर कथन के अनुसार 260 हिजरी में इसी दिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई और आपके बाद इमाम ज़माना अ.ज. की इमामत की शुरुआत हुई है, इसलिए उचित है कि इस दिन दोनों महान हस्तियों की ज़ियारत पढ़ी जाए.
नवीं रबीउल अव्वल का दिन
आज का दिन बहुत बड़ी ईद है, क्योंकि मशहूर कथन यही है कि आज के दिन उमर बिन साद मर कर जहन्नम मे दाख़िल हुआ, जो मैदाने कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में यज़ीद की फ़ौज का सेनापति था। रिवायत है कि जो इंसान आज के दिन अल्लाह के रास्ते में खर्च करे तो उसके गुनाह माफ कर दिए जाएंगे और यह कि आज के दिन मोमिन को खाने की दावत देना, उसे खुश करना, अपने परिवार के लिये दिल खोल के खर्च करना, अच्छा लिबास पहनना, अल्लाह की इबादत करना और का शुक्र बजा लाना, मुस्तहब है. आज वह दिन है जिस में ग़म दूर हुए और एक दिन पहले इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई इसलिए आज इमाम ज़माना अ.ज. की इमामत का पहला दिन है इसलिए इसका सम्मान व महत्व और भी बढ़ जाता है.
बारहवीं रबीउल अव्वल का दिन
कुलैनी व मसऊदी के कथन और अहले सुन्नत भाईयों की मशहूर रिवायत के अनुसार इस दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की विलादत (जन्म) हुई. इस दिन दो रकअत नमाज़ मुस्तहब है कि जिसमें पहली रकअत में सूरए अलहम्द के बाद तीन बार सूरए काफ़ेरून पढ़े दूसरी रकअत में अल-हम्दो के बाद तीन बार सूरए तौहीद पढ़े. यही वह दिन है, जिसमें हिजरत के समय हज़रत रसूलुल्लाह स.अ. मदीने में दाखिल हुए. शेख ने कहा है कि 130 हिजरी में इसी दिन बनी मरवान की हुकूमत और बादशाहत का अंत हुआ.
चौदहवीं रबीउल अव्वल का दिन
64 हिजरी में इसी दिन, यज़ीद बिन मुआविया मर के जहन्नम में दाखिल हुआ, अखबारुद दुवल में लिखा है कि यज़ीद मलऊन दिल और आमाशय के बीच पर्दे की सूजन का शिकार था, जिससे वह होरान नामक जगह में मरा, वहां से उसकी लाश दमिश्क लाई गई और बाबुस् सग़ीर में गाड़ दिया गया, फिर लोग उस जगह कूड़ा करकट फेकते रहे. वह जहन्नमी 37 साल की उम्र में मौत का शिकार हुआ और उसकी अत्याचारी हुकूमत केवल तीन साल नौ महीने रही.
 सत्रहवीं रबीउल अव्वल की रात
यह हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के विलादत की रात और बड़ी ही बरकतों वाली रात है. सैयद ने रिवायत की है कि हिजरत से एक साल पहले इस रात में हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम को मेराज हुई.
सतरहवीं रबीउल अव्वल का दिन
शिया उल्मा में मशहूर नज़रिया यह है कि यह दिन हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के जन्म का दिन है और उनके बीच यह भी तय बात है कि आपकी विलादत जुमे के दिन सुबह के समय उनके घर में हुई, जबकि आमुल फ़ील का पहला साल नोशेरवान आदिल की हुकूमत का दौर था और 83 हिजरी में इसी दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की विलादत हुई. इसलिए इस दिन की महिमा और महानता में और बढ़ोत्तरी हो गई.
सारांश यह कि इस दिन को बड़ी फज़ीलत, सम्मान और श्रेष्ठता हासिल है, इसमें कुछ आमाल हैं:
1. ग़ुस्ल करें.
2. आज के दिन रोज़ा रखने की बड़ी फज़ीलत है, रिवायत है कि अल्लाह इस दिन रोज़ा रखने वाले को एक साल के रोज़े रखने का सवाब देता है. आज का दिन साल के उन चार दिनों में से एक है, जिसमें रोज़ा रखना ख़ास फज़ीलत और विशेषता रखता है.
3. आज के दिन हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की ज़ियारत पढ़ें.
4. इस दिन हज़रत अमीरुल अली अलैहिस्सलाम की वह ज़ियारत पढ़ें, जो इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने पढ़ी और मुहम्मद मुस्लिम को सिखाई थी.
5. जब सूरज जरा ऊंचा हो, तो दो रकअत नमाज़ पढ़े जिसकी हर रकअत में सूरए अलहम्द के बाद दस बार सूरह क़द्र (इन्ना अनज़लनाहो) और दस बार सूरह तौहीद (क़ुल हुवल्लाह) पढ़ें, नमाज़ का सलाम पढ़ने के बाद मुस्सले पर बैठा रहे और यह दुआ पढ़ें
اللھم انت حی لایموت الخ
ऐ अल्लाह! तू ज़िंदा है जिसे मौत नहीं
यह बहुत लम्बी दुआ है और सनद भी किसी इमाम मासूम तक पहुंचती दिखाई नहीं देती, इसलिए यहां हम इसे बयान नहीं कर रहे हैं, लेकिन जो इंसान पढ़ना चाहे वह “ज़ादुल मआद” में देख ले.
6. आज के दिन मुसलमानों को ख़ास अंदाज़ से खुशी मनानी चाहिए, उन्हें इस दिन का बहुत सम्मान करना चाहिये, सदक़ा और दान देना चाहिये और मोमेनीन को ख़ुशहाल करें और इमामों के रौज़ों की ज़ियारत करें. सैयद ने अपनी किताब “इकबाल” में आज के दिन के आदर, सम्मान को बयान किया है और कहा है कि नसरानी और मुसलमानों का एक ग्रुप हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की विलादत के दिन बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन मुझे उन पर आश्चर्य होता है कि क्यों वह, हज़रत रसूलवे इस्लाम की विलादत के दिन का सम्मान नहीं करते जो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में बहुत बुलंद और श्रेष्ठ हैं और उनका स्थान उनसे बढ़कर है.

साभार इस्लाम14

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