दोज़ख़ से निजात

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हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- जिस तरह कपड़े के नक़्श और निगार घिस जाते हैं और मांद पड़ जाते हैं, उसी तरह इस्लाम भी एक ज़माने में मांद पड़ जाएगा. यहां तक कि किसी शख़्स को ये इल्म तक न रहेगा कि रोज़ा क्या चीज़ है, और सदक़ा और हज क्या चीज़ ? एक शब आएगी कि क़ुरआन सीनों से उठा लिया जाएगा और ज़मीन पर उसकी एक आयत भी बाक़ी न रहेगी. अलग-अलग तौर पर कुछ बूढ़े मर्द और कुछ बूढ़ी औरतें रह जाएंगी, जो ये कहेंगी कि हमने अपने बुज़ुर्गों से यह कलमा ला इलाहा इल्लल्लाह सुना था, इसलिए हम भी यह कलमा पढ़ लेते हैं.
हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़िअल्लाहु अन्हु) के शागिर्द ने पूछा- जब उन्हें रोज़ा, सदक़ा और हज का भी इल्म न होगा, तो भला सिर्फ़ यह कलमा उन्हें क्या फ़ायदा देगा ?
हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि) ने कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने तीन बार यही सवाल दोहराया. हर बार हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि) एराज़ करते रहे, उनके तीसरी मर्तबा इसरार के बाद उन्होंने फ़रमाया- सिला ! यह कलमा ही उनको दोज़ख़ से निजात दिलाएगा.
(मुस्तदरक हाकिम)

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