हज़रत नूह (अलै) की वसीयत

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हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- क्या मैं तुम्हें वह वसीयत न बताऊं, जो (हज़रत) नूह (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे को की थी ?
सहाबा (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने अर्ज़ किया- ज़रूर बताइये.
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- (हज़रत) नूह (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे को वसीयत में फ़रमाया- मेरे बेटे! तुमको दो काम करने की वसीयत करता हूं और दो कामों से रोकता हूं. एक तो मैं तुम्हें ला इलाहा इल्लल्लाह के कहने का हुक्म देता हूं, क्योंकि अगर ये कलमा एक पलड़े में रख दिया जाए और तमाम आसमान और ज़मीन  को एक पलड़े में रख दिया जाए, तो कलमा वाला पलड़ा झुक जाएगा. और अगर तमाम आसमान और ज़मीन का एक घेरा हो जाए, तो भी यह कलमा इस घेरे को तोड़ कर अल्लाह तआला तक पहुंच जाएगा.  दूसरी चीज़ जिसका हुक्म देता हूं, वह सुबहानल्लाहि अज़ीमि व बिहम्दिह का पढ़ना है, क्योंकि यह तमाम मख़्लूक की इबादत है और इसी की बरकत से मख़्लूक़ात को रोज़ी दी जाती है. और मैं तुमको दो बातों से रोकता हूं, शिर्क से और तकब्बुर से, क्योंकि ये दोनों बुराइयां बन्दे को अल्लाह से दूर कर देती हैं.
(मुन्तख़ब अहादीस) 

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Allah hu Akbar

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