हक़

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इंसान सोचता है कि वह दुखी है, परेशान है, तकलीफ़ में है... अगर वो उन लोगों को देख ले, जिनके सर पर छत होना तो दूर की बात है, उनके पास पेटभर खाना तक नहीं है, पीने के लिए साफ़ पानी तक नहीं है... य़क़ीनन उसे लगेगा कि वाक़ई वो बहुत ख़ुशहाल है...
इस दुनिया में जब तक एक भी इंसान भूखा है, बेघर है, हक़ीक़त में तब तक हम इंसान कहलाने के लायक़ नहीं हुए हैं...हमें इंसान बनना है अभी... हमारे खाने में, हमारी चीज़ों में उन लोगों का भी हक़ बनता है, जो बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों से महरूम हैं... हमें उनक़ा हक़ देना ही चाहिए...
फ़िरदौस ख़ान

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بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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