मुआफ़ करना सीखो

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ज़बान का एक बोल सब कुछ बर्बाद कर देता है या आबाद कर देता है. माफ़ करना सीखो. हमारे नबी को सब ज़्यादा दुख- तकलीफ़ ताएफ़ वालों ने दी. आप (सअस) को  पत्थरों से मार कर लहूलुहान कर दिया. आप (सअस) बेहोश हो गए. ख़ुद नबी (सअस) फ़रमाते- सारी ज़िन्दगी में जितनी तकलीफ़ ताएफ़ ने पहुंचाई और किसी ने नहीं पहुंचाई. मगर जब वे लोग ईमान लाने आए, तो आपने (सअस) ने उन्हें भी गले से लगाया. उनके साथ रोज़ रात का खाना खाते. एक रोज़ तिलावत की वजह से खाना नहीं खा सके, तो उनसे माफ़ी मांगी. ये वे लोग थे, जिन्होंने आपको (सअस)जिस्मानी तकलीफ़ दी थी.
अब दो लोग और आए, वे भी ईमान लाए. एक आप (सअस) के चाचा का बेटा अबु सुफ़यान बिन हारिस, दूसरा आप (सअस) की फुफी का बेटा अबदुल्लाह बिन अबी उमय्या. जब ये दोनों ईमान लाए आए, तो आप (सअस) ने मना कर दिया और कहा- मुझे नहीं मिलना इनसे. इन्होंने मुझे बहुत बुरा-भला कहा है. अबु सुफ़यान मेरे बारे में बुरे बुरे शेअर कहता था.
और अबी उमय्या ये वह है, जिसने हरम में खड़े होकर कहा था- तुम अल्लाह से क़ाग़ज़ पर लिख कर लाओ, साथ में चार फ़रिश्ते लाओ, तब भी मैं तुमको नबी नहीं मानूंगा. इन्होंने मेरा दिल दुखाया है. उम्मे-सलमा ने कहा या रसूल अल्लाह आपने तो ग़ैरों को भी माफ़ किया है. इन्हें भी माफ़ कर दें. आपने कहा- ठीक है.
ज़बान का निकला एक बोल बहुत गहरा ज़ख़्म देता है. बर्दाश्त करना सिखो, माफ़ करना सीखो. नबी (सअस) का हुकुम है. अमल करना सीखो.
कबीर अली

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