ग़ौसे-आज़म और सलाम

Author: Admin Labels:: , , , ,



हज़रत ग़ौसे-आज़म रहमतुल्ला अलैह की जब पैदाइश हुई, तो आपके साथ जितने भी बच्चे पैदा हुए सब कामिल वली गुज़रे. उन्होंने अपनी मां के पेट में ही 11 पारे हिफ़्ज़ कर लिए थे.
आप एक बार घर के बाहर खड़े थे. उस वक़्त वहां से एक बुज़ुर्ग का गुज़र हुआ. बुज़ुर्ग हज़रत ने सुन्नत अदा करते हुए आपसे पहले सलाम किया, तो ग़ौसे-आज़म सैयद मोईनुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी सलाम सुनकर जवाब कुछ इस तरह देते हैं-
वालेकुम अस्सलाम वरहमतुल्लाही वबरकतुहु
वालेकुम अस्सलाम वरहमतुल्लाही वबरकतुहु
इस पर बुज़ुर्ग हज़रत हैरान होकर पूछते हैं- बेटे अब्दुल क़ादिर ! मैंने तो एक बार सलाम किया, फिर आपने दो बार जवाब क्यों दिया ?
इस पर ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- मैंने दो बार जवाब इसलिए दिया, क्योंकि एक बार अभी आपपने सलाम किया. और याद कीजिए जब मैं अपनी मां के पेट में था, तब आप आए थे और आपने सलाम किया था.
बुज़ुर्ग हज़रत हैरान होकर अर्ज़ करते हैं- तो आपने उस वक़्त सलाम का जवाब क्यों नहीं दिया ?
ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- उस वक़्त मैं अपनी मां के पेट में था. अगर उस वक़्त जवाब देता, तो मेरी अम्मी जान घबरा जातीं. इसलिए मैंने आज ये वाजिब अदा किया.
एक बार आप बाहर खेल रहे थे, तो अपनी मां से अर्ज़ करते हैं- अम्मी जान आपको याद है, जब मैं आपके पेट में था, तब आप अंगूर के बागीचे में अंगूर तोड़ रही थीं, तब आपके पेट में ज़ोर से दर्द होना शुरू हो गया था.
फिर दर्द रुक गया और फिर अंगूर तोड़ने लगीं, तो फिर दर्द होने लगा, तो आपने अंगूर तोडना छोड़ कर आप घर आ गईं.
आपकी वालिदा मोहतरमा बड़ी हैरानी के साथ पूछती हैं- हां, बेटे पर तुम्हें कैसे पता ?
ग़ौसे-आज़म मुस्कुराकर इरशाद फ़रमाते हैं- अम्मी जान वो दर्द मैंने ही जब बूझकर आपके पेट में हरकत करके पैदा किया था. इस पर आपकी अम्मी जान कहती हैं- बेटे आपको पता है कि मां को तकलीफ़ पहुंचाना कितना बड़ा गुनाह है.
ग़ौसे-आज़म इरशाद फ़रमाते हैं- अम्मी जान ! आपको उस वक़्त अंगूर नज़र आ रहे थे, लेकिन अंगूर के गुच्छे के अंदर छुपा काला स्याह बिच्छू नज़र नहीं आ रहा था. वो बिच्छू मैंने देख लिया था, तभी मैंने हरकत की, ताकि आपको दर्द हो, जिससे आप अंगूर को न तोड़ें और काले बिच्छू से बच जाएं. और ऐसा ही हुआ भी. 

0 comments |

Post a Comment

بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

List

My Blog List

Popular Posts

Followers

Translate

Powered by Blogger.

Search This Blog

इस बलॊग में इस्तेमाल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं
banner 1 banner 2