सलाम

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अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और बहुत रहमवाला है.

सब तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं, जो तमाम जहां का पालने वाला है, हम उसी की तारीफ़ करते हैं और उसी का शुक्र अदा करते हैं. अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ (पूजनीय) नहीं है, वह अकेला है और उसका कोई साझी और शरीक (भागीदार) नहीं है. मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह के बंदे (ग़ुलाम) और रसूल (पैग़म्बर / संदेशवाहक) हैं.
अल्लाह की बेशुमार रहमतें और सलामती नाज़िल, जो उनके रसूल (स.अ.व.) पर और उनकी आल-औलाद और उनके साथियों पर.

आमतौर पर यह देखा गया है कि जब एक इंसान दूसरे इंसान से मिलता है, तो सबसे पहले अभिवादन करता है, जिसकी वजह से उन दोनों व्यक्तियों में एक विश्वास पैदा होता है. वो विश्वास की वजह से जिनसे उनके बीच एक गहरा रिश्ता बनता और उनमें मुहब्मबत बढ़ती है.

‘इस्लाम’ एक भाईचारा बढ़ाने वाला धर्म है. ‘इस्लाम’ वह एक अरेबिक शब्द है जिसका का मूल शब्द है ‘सलम’, मतलब ‘सलामती’.इस्लाम में जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मिलता है, तो वह एक दूसरे से अभिवादन के तौर पर ‘अस्सलामु अलैकुम’ या ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’ या फिर पूर्ण रूप से ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातहू’ कहते हैं, जिसका मतलब होता है ‘अल्लाह की आप पर सलामती, दया और कृपा रहे’. यह एक दुआ (प्रार्थना) है, जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शुभकामना और सलामती के लिए अल्लाह (परमेश्वर) से करता है.

सलाम की शुरुआत
अबू हुरैरा (रज़ि) की रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, जब अल्लाह ने आदम (अ.स.) को पैदा किया और उन्हें हुक्म दिया कि “जाओ और फ़रिश्तों  सलाम करो और सुनो वो आपको क्या जवाब देते हैं, वो आपके लिए और आपके आने वाली नस्लों के लिए सलाम के शब्द होंगे. आदम (अ.स.) उनके पास गए और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम’ तो उन्होंने जवाब दिया, ‘वालेकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह’. (सहीह बुख़ारी)

अल्लाह के क़ुरआन में सलाम
क़ुरआन में अल्लाह तअला ने एक दूसरे को सलामती की दुआ करने के लिए कहा है और जब आपको सलाम कहा जाए, तो उसे बेहतरीन शब्दों के साथ जवाब देना चाहिए.

“जब आपको कोई सलामती की दुआ दी जाए, तो तुम भी सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है”. (सूरह निशा 4.86)
“मौत के फ़रिश्ते जब प्राण (रूह) निकलने के लिए आते हैं, तो वो पाक साफ़ (नेक) लोगों को सलाम कहते हैं और फिर जन्नत में प्रवेश होने की शुभ सूचना देते हैं ।” (सूरह नहल 16.32)
सिर्फ़ इतना ही नहीं, बल्कि यह सलामती की दुआ सिर्फ़ इस दुनिया में ही नहीं, मगर जन्नत में भी यही दुआ है, जो जन्नत के चौकीदार और जन्नतवासी एक दूसरे को करेंगे.
“जन्नत के चौकीदार जन्नत में आने वाले को सलाम कहेंगे.” (सूरह अज जुमर 39.73)
“जन्नती जब आपस में मिलेंगे, तो एक दूसरे को सलाम करेंगे.” (सूरह यूनुस 10.10)

रसूल (स.अ.व.) का सलाम के बारे में फ़रमान
जब भी कोई मुसलमान अपने किसी मुसलमान से मिलता है, तो उस का कर्तव्य है कि वो उसको सलाम करे.
अब्दुल्लाह इब्न अम्र से रिवायत है कि एक व्यक्ति ने नबी (स.अ.व.) से पूछा, कौन-सा अमल इस्लाम में सबसे बेहतर है? नबी (स.अ.व.) ने जवाब दिया, “भूखे को खाना खिलाना और परिचित तथा अपरिचित व्यक्ति को सलाम करना”. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

अबू हुरैरा (रदी) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) को कहते सुना है कि एक मुसलमान के दूसरे पर पांच अधिकार हैं, “जब वह मिले, तो उसे सलाम करे, जब वह दावत दे, तो उसे क़ुबूल करे, जब वह राय (सलाह) मांगे, तो उसे बेहतर सलाह दे, जब वह छीकें तो उसका जवाब दे, जब वह बीमार हो, तो उसकी ख़बर पूछे और जब वह मर जाए तो उसके जनाज़े में जाए”. (सहीह बुख़ारी)

अत तुफ़ैल इब्न उबय्य इब्न काब से रिवायत है कि वह अब्दुल्लाह इब्न उमर की मुलाक़ात के लिए जाते थे और उसके साथ बाज़ार के लिए जाना होता था. उन्होंने कहा, जब हम बाज़ार के लिए गए, तो अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कोई भी व्यक्ति को सलाम किए बिना नहीं गुज़रे चाहे वो कचरा उठाने वाला हो या व्यापारी या गरीब व्यक्ति या और कोई”. (सहीह बुख़ारी)

नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “सलाम अल्लाह का एक नाम है, जो अल्लाह ने इस दुनिया में रखा है. उसे लोगो में फैलाओ. जब इंसान लोगों को सलाम करता है और लोग उसे जवाब देते हैं, तो उसका दर्रजा ऊंचा होता है, क्योंकि उसने उनको शांति की याद दिलाई. अगर किसी ने जवाब नहीं दिया, तो उसे वो जवाब देगा, जो अच्छा और बहुत ही शान वाला है”. (सहीह बुख़ारी)

नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, सबसे अच्छा वह है, जो सलाम में पहल करे. (अबू दावूद और तिरमिज़ी)

जाबिर (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया कि सवार पैदल चलने वाले को सलाम करे और पैदल चलने वाला बैठे हुए व्यक्ति को सलाम करे और दो चलने वालों में अच्छा वो है, जो सलाम में पहल करे (सहीह बुख़ारी और सहीह इब्ने-हिब्बान)

एक व्यक्ति नबी (स.अ.व.) के पास आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम’, आपने उसका उत्तर दिया और वह बैठ गया. आपने फ़रमाया, ‘दस’ अर्थात तुझे दस नेकियां मिलीं. एक दूसरा व्यक्ति आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’, आपने उसका उत्तर दिया और वह बैठ गया, आपने फ़रमाया, ‘बीस’ अर्थात तुझे बीस नेकियां मिलीं. एक तीसरा व्यक्ति आया और कहा, ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह’, आपने उसका उत्तर दिया और फ़रमाया, ‘तीस’ अर्थात तुझे तीस नेकियां मिलीं. (अबू दावूद और तिरमिज़ी)

अबू हुरैरह (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “आप में से कोई जब मजलिस में आए,  तो सलाम करे और जब लौटे तो भी सलाम करे”.  (सहीह बुख़ारी)

अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) पर सलाम
अल्लाह ईमान वालों को कहते हैं कि हम, हमारे फ़रिश्ते अपने रसूल (स.अ.व.) पर सलामती की दुआ भेजते हैं और आप भी उन पर बेशुममार सलाम भेजा करो.

“बेशक अल्लाह और इस के फ़रिश्ते नबी (स.अ.व.) पर रहमत भेजते हैं, ऐ ईमान वालो ! तुम भी इन (नबी) पर रहमत और सलामती की ख़ूब दुआ भेजा करो.“  (सुरह अल अहजाब 33.56)

जिब्राईल (अ.स.) का ख़दीजा (रइ) और आयशा (रज़ि) को सलाम कहना
ख़दीजा (रज़ि) नबी (स.अ.व.) की पवित्र पत्नी थी, उनकी बहुत सी श्रेष्ठताएं थीं, जिनमें से एक यह थी कि एक बार जिब्राईल (अ.स.) आए और उन्होंने नबी (स.अ.व.) से कहा, “ऐ मुहम्मद, अगर आपके पास ख़दीजा आए तो उनके रब और मेरी ओर से उनको सलाम पहुंचाना, और उनको यह शुभ समाचार सुना देना कि जन्नत में उनके लिए एक ऐसा घर है, जिसमें न किसी प्रकार का शोरगुल होगा, न कभी उनको उसमें कोई थकान होगी. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

आयशा (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने कहा, “आयशा! यह जिब्राईल हैं, तुम्हे सलाम कह रहे हैं”, तो मैंने कहा, “वालेकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह”, आप उन्हें देख सकते हैं, मगर मैं नहीं देख सकती.” (सहीह बुख़ारी)

सलाम करने के फ़ायदे
इस्लाम के तरीक़े से सलाम करने के बहुत से फ़ायदे हैं, जिनमें से कुछ निम्न दिए गए हैं-
सलाम करने से इंसान विनम्र बनता है और विनम्र इंसान सबको प्यारा होता है.
सलाम में पहल की वजह से अहंकार नष्ट होता है.
अगर आप किसी से सलाम करते हैं, तो इसका मतलब यह होता है की आप उसकी ख़ैर व भलाई चाहते हैं, जिससे आप दोनों के बीच में मुहब्बत बढ़ती है.
किसी अपरिचित व्यक्ति से आप सलाम करते हैं, तो उससे आप दोनों में पहचान बढ़ती है.

 ग़ैर मुस्लिम से सलाम और उनके सलाम का जवाब
अबू हुरैरा (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, “यहूदी और नसारा को सलाम में पहल न करो”. (सहीह मुस्लिम)

“जब आपको कोई सलामती की दुआ दी जाए, तो तुम भी सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है”. (सुरह निसा 4.86)

अनस बिन मालिक (रज़ि) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फ़रमाया, अगर अहले-किताब आपसे सलाम करे, तो आप उनको ‘वालेकुम’ कहो. (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

इब्ने-अल कय्यिम (रह) ने कहा कि अगर यहूदी और नसारा आपको सलाम करें, तो उनको भी सलाम का उसी अंदाज़ में जवाब दो. यही सही तरीक़ा है कि वो आपके लिए सलामती की दुआ करें, तो आप भी करो. (अहकाम अहल अध् धिम्म 1/200)
साभार arifmansuri

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हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का कुंआ

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सऊदी अरब के एक बैंक में ख़लीफ़ा-ए-सोम हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का आज भी चालू बैंक खाता है.
ये जानकर आपको हैरत होगी कि मदीना मुनव्वरा की नगर पालिका में हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर बाक़ायदा जायदाद रजिस्टर्ड है. आज भी हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर बिजली और पानी का बिल आता है.
मस्जिद-ए-नबवी के पास आली शान रिहायशी होटल ज़ेर-ए-तामीर है, जिसका नाम उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होटल है. ये वो अज़ीम सदक़ा जारिया है, जो हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की नीयत का नतीजा है.
जब मुसलमान हिजरत करके मदीना मुनव्वरा पहुंचे, तो वहां पीने के साफ़ पानी की बड़ी क़िल्लत थी. एक यहूदी का कुंआ था, जो मुसलमानों को पानी महंगे दामों में फ़रोख़्त करता था. इस कुंए का नाम बर्र रूमा यानी रूमा कुंआ था. मुसलमानों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से शिकायत की और अपनी परेशानी से आगाह किया. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- "कौन है जो ये कुंआ ख़रीदे और मुसलमानों के लिए वक़्फ़ कर दे? ऐसा करने पर अल्लाह तआला उसे जन्नत में चश्मा अता करेगा.

हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु यहूदी के पास गए और कुंआ ख़रीदने की ख़्वाहिश का इज़हार किया. कुंआ चूंकि मुनाफ़ा बख़्श आमदनी का ज़रिया था, इसलिए यहूदी ने फ़रोख़्त करने से इनकार कर दिया. हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने ये तदबीर की कि यहूदी से कहा पूरा कुंआ न सही, आधा कुंआ मुझे फ़रोख़्त कर दो, आधा कुंआ फ़रोख़्त करने पर एक दिन कुंए का पानी तुम्हारा होगा और दूसरे दिन मेरा होगा. यहूदी लालच में आ गया. उसने सोचा इस तरह ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने का मौक़ा मिल जाएगा. उसने आधा कुंआ हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को फ़रोख़्त कर दिया. हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने दिन मुसलमानों को कुंए से मुफ़्त पानी लेने की इजाज़त दे दी. लोग हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दिन मुफ़्त पानी हासिल करते और अगले दिन के लिए भी ज़ख़ीरा कर लेते.

यहूदी के दिन कोई भी शख़्स पानी ख़रीदने नहीं जाता. यहूदी ने देखा कि उसकी तिजारत मांद पड़ गई है, तो उसने हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से बाक़ी आधा कुंआ भी ख़रीदने की गुज़ारिश की. इस पर हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु राज़ी हो गए और पूरा कुंआ ख़रीद कर मुसलमानों के लिए वक़्फ़ कर दिया. इस दौरान एक आदमी ने हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को कुंआ दोगुनी क़ीमत पर ख़रीदने की पेशकश की. हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि मुझे इससे कहीं ज़्यादा की पेशकश है. उसने कहा मैं तीन गुना दूंगा. उन्होंने फ़रमाया- मुझे इससे कई गुना की पेशकश है. उसने कहा- मैं चार गुना दूंगा. हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया- मुझे इससे कहीं ज़्यादा की पेशकश है. इस तरह वो आदमी रक़म बढ़ाता गया और हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु यही जवाब देते रहे. यहां तक कि उस आदमी ने कहा कि हज़रत आख़िर कौन है, जो आपको दस गुना देने की पेशकश कर रहा है? हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि मेरा रब मुझे एक नेकी पर दस गुना अज्र देने की पेशकश करता है.

वक़्त गुज़रता गया और ये कुंआ मुसलमानों को सैराब करता रहा. यहां तक कि कुंए के आसपास खजूरों का बाग़ बन गया. उस्मानी सल्तनत के दौर में इस बाग़ की देखभाल हुई. बाद अज़ सऊदी के अहद में इस बाग़ में खजूरों के दरख़्तों की तादाद पंद्रह सौ पचास हो गई. ये बाग़ नगरपालिका में हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर रजिस्टर्ड है. वज़ारत-ए-ज़राआत यहां के खजूर बाज़ार में फ़रोख़्त करती और उससे हासिल होने वाली आमदनी हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर बैंक में जमा करती रही. यहां तक कि खाते में इतनी रक़म जमा हो गई कि मर्कज़ी इलाक़े में ज़मीन का एक टुकड़ा लिया गया, जहां हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम पर एक रिहायशी होटल तामीर किया जाने लगा. इस होटल से सालाना पचास मिलियन रियाल आमदनी मुतवक़्क़े है, जिसका आधा हिस्सा ग़रीबों और मिस्कीनों में तक़सीम होगा, बाक़ी आधा हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के बैंक खाते में जमा होगा.

अंदाज़ा कीजिए कि हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के इन्फ़ाक़ को अल्लाह तअला ने कैसे क़बूल फ़रमाया और उसमें ऐसी बरकत अता की कि क़यामत तक उनके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन गया.
अल्लाह हम सबको राहे-हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन

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ईमान जिसे कहते हैं फ़रमान-ए-ख़ुदा है...

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फ़िरदौस ख़ान
हमारी तहरीरें कुल कायनात के लिए हैं... सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नहीं हैं... सब ख़ुदा के बंदे हैं, वो अच्छे हों या बुरे... ख़ुदा न जाने कब, कहां, किसे, कैसे हिदायत दे दे, ये सिर्फ़ वो ही जानता है... वो जिसे चाहता है, उसे नवाज़ता देता है...
अगर हम सिर्फ़ एक बात गांठ बांध लें कि हम किसी का दिल नहीं दुखाएंगे, तो यक़ीन मानें हम बहुत-सी बुराइयों से ख़ुद ब ख़ुद दूर होते चले जाएंगे...
ये हमारी कमी है कि हम बुरी बातों को तो हर तरफ़ फैला देते हैं, लेकिन अच्छी बात जहां सुनते हैं, उसे वहीं छोड़ देते हैं...
हम अपनी दौलत की तो ख़ूब हिफ़ाज़त करते हैं, जो यहीं रह जानी हैं... लेकिन जो ईमान साथ जाना है उसे बचाने के लिए क्या करते हैं...? ज़रा सोचिये...

हमारी इस तहरीर से किसी एक को भी फ़ायदा हुआ, तो हमारा लिखना कामयाब हो जाएगा...

हम सबको नेक राह चलाना मेरे अल्लाह
बंदों को बुराई से बचाना मेरे अल्लाह
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना

इक वाक़िया सुनाती हूं मैं अपनी ज़ुबानी
अपने बड़ों से मैंने सुनी है ये कहानी
रहता था किसी शहर में एक ऐसा भी इंसान
जो नाम का मुस्लिम था, मगर काम का शैतान
ज़ालिम को ज़ोर-ए-बाज़ू पे अपने ग़ुरूर था
यानी के बेख़ुदी में ख़ुदा से वो दूर था
सब लोग उसे कहते थे जल्लाद सितमगर
मासूम की फ़रियाद का उस पे ना था असर
जो वादा उसने कर लिया, वो करके दिखाया
पैसों के लिए क़त्ल किए, ख़ून बहाया
इक दिन वो बहता ख़ून असर उस पे कर गया
इंसान ज़िंदा हो गया, शैतान मार गया
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना

ईमान जिसे कहते हैं फ़रमान-ए-ख़ुदा है
क़ुरान के हर लफ़्ज़ में उसकी ही सदा है
अल्लाह ने बख़्शी है जो ईमान की दौलत
ये सबसे बड़ी चीज़ है इंसान की दौलत
सोये हुए दिलों को जगाता है ये ईमान
भटके हुओं को राह दिखता है ये ईमान
ईमान की गर्मी से पिघल जाते हैं पत्थर
इस नूर से बनते हैं संवरते हैं मुक़द्दर
जो सबसे प्यार करता है इंसान वही है
मुस्लिम है वही, साहिबे-ईमान वही है
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना

जिस काम के करने पे ना हो राज़ी कोई दिल
वो कम भी इस दुनिया में नफ़रत के है क़ाबिल
जो कुछ भी ज़ुबान कह दे वो इक़रार नहीं है
लग़ज़िश है लबों की वो गुनाहगार नहीं है
जो दिल से नहीं करता बुराई का इरादा
अल्लाह से वो तौबा करे, तोड़ दे वादा
जल्दी जो संभाल जाए, वो नादान नहीं है
ईमान जिसमें हो, वो बेईमान नहीं है
दुनिया में हमेशा तो नहीं रहता अंधेरा
इंसान जहां जागे वहीं पे है सवेरा
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना

जो सच्चे दिल से करता है ईमां की आरज़ू
अल्लाह की नज़रों में वो होता है सुर्ख़रू
ईमां में क्या-क्या ना सहा प्यारे नबी ने
क्या ऐसी मुसीबत भी उठाई है किसी ने
करबल के शहीदों ने सबक़ हमको पढ़ाया
सजदे में दे के जान को ईमान बचाया
इस राह में जो सहते हैं तक़लीफ़-ओ-मुसीबत
इक रोज़ उन पे होती है अल्लाह की रहमत
इंसां है वो जो दूसरों का दिल न दुखाये
पड़ जाए अगर जान पे तो जान लुटाये
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना
अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना...

तस्वीर गूगल से साभार

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بسم الله الرحمن الرحيم

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Allah hu Akbar

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

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फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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