रोज़ेदार

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फ़िरदौस खान
अमूमन तीन तरह के रोज़ेदार हुआ करते हैं... पहली तरह के रोज़ेदारों के पास एसी हैं... ये लोग सहरी करते हैं. फ़ज्र की नमाज़ पढ़कर एसी रूम में सो जाते हैं और तीन-चार बजे उठते हैं. ज़ुहर पढ़ते हैं, असर पढ़ते हैं और फिर इफ़्तारी की तैयारी में लग जाते हैं... इनके पास इफ़्तारी में दुनिया की हर शय होती है...

दूसरी तरह के रोज़ेदारों के पास एसी तो दूर कूलर तक नहीं हैं... ये लोग रोज़े की हालत में सुबह से शाम तक काम करते हैं और शाम को थोड़ा-बहुत इफ़्तारी और सहरी का सामान लेकर घर आते हैं... इनकी औरतें रोज़े की हालत में गर्मी से बचने के लिए पानी में भीगे दुपट्टे लपेटती हैं...

तीसरी तरह के रोज़ेदारों के पास पंखे तक नहीं है... ये लोग दिनभर मेहनत करते हैं, जब कहीं जाकर इनके घरों में चूल्हे जलते हैं... इन्हें सहरी और इफ़्तारी में रोटी भी मिल जाए, तो ग़नीमत है...

अल्लाह सबके रोज़े क़ुबूल फ़रमाए, आमीन



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सोने और चांदी के गहने की ज़कात

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विद्वान इस बात पर सहमत हैं सोने और चाँदी के आभूषणों पर ज़कात अनिवार्य है यदि वह गहना हराम इस्तेमाल के लिए है, या वह व्यापार इत्यादि के लिए तैयार किया गया है। किन्तु अगर वह वैध आभूषण है जो इस्तेमाल के लिए, या उधार देने के लिए तैयार किया गया है जैसे कि चाँदी की अंगूठी, महिलाओं का आभूषण तथा जो हथियार के दस्तें के लिए वैध किया गया है, तो इस में ज़कात के अनिवार्य होने के बारे में विद्वानों का मतभेद है। कुछ विद्वान इस बात की ओर गये हैं कि उस में ज़कात अनिवार्य है क्योंकि वह अल्लाह तआला के इस कथन के सामान्य अर्थ के अंतर्गत आता है : “और जो लोग सोने चाँदी का कोष (खज़ाना) रखते हैं और उसे अल्लाह के मार्ग में खर्च नहीं करते उन्हें कष्टदायक सज़ा की सूचना पहुँचा दीजिए।” (सूरतुत्तौबा :34)

क़ुर्तुबी अपनी तफसीर में कहते हैं : इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने सहीह बुखारी में इस अर्थ का वर्णन किया है, एक दीहाती ने उन से कहा : मुझे अल्लाह तआला के फरमान : “और जो लोग सोना और चाँदी इकट्ठा कर के रखते हैं।” के बारे में बतायें। इब्ने उमर ने कहा : “जिस ने उसे इकट्ठा कर के रखा और उस का ज़कात नहीं दिया तो उस के लिए बर्बादी है, यह ज़कात का आदेश उतरने से पहले था, जब ज़कात का आदेश आ गया तो अल्लाह तआला ने उसे धन के शुद्धिकरण का साधन बना दिया।” (बुखारी 2/111 (तालीक़न), 5/204 (तालीक़न), इब्ने माजा 1/569 – 570 (हदीस संख्या : 1787), बैहक़ी 4/82)

तथा इसलिए भी कि ऐसी हदीसें आई हैं जो इस बात की अपेक्षा करती हैं, उन्हीं में से वह हदीस है जिसे अबू दाऊद, नसाई और तिर्मिज़ी ने अम्र बिन शुऐब से और उन्हों ने अपने बाप और दादा के द्वारा रिवायत किया है कि : एक महिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई जिस के साथ उस की एक लड़की भी थी, और उसकी लड़की के हाथ में दो सोने के मोटे कंगन थे। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस से कहा : “क्या तुम इस की ज़कात देती हो ?” उस ने कहा : नहीं। आप ने फरमाया : “क्या तुम्हें यह बात पसंद है कि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन तुझे इन के बदले आग के दो कंगन पहनाये ?” इस पर उस महिला ने उन दोनों को निकाल कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर फेंक दिया और कहा कि : वे दोनों अल्लाह और उस के रसूल के लिए हैं।

(अहमद 2/178, 204, 208, अबू दाऊद 2/212 (हदीस संख्या : 1563), तिर्मिज़ी 3/29-30 (हदीस संख्या :637), नसाई 5/38 (हदीस संख्या : 2479, 2480), दारक़ुतनी 2/112, इब्ने अबी शैबा 3/153, अबू उबैद (किताबुल अमवाल पृ0 537 हदीस संख्या : 1260, संस्करण हर्रास), बैहक़ी 4/140)

तथा अबू दाऊद ने अपनी सुनन में, हाकिम ने अपनी मुसतदरक में और दारक़ुतनी और बैहक़ी ने अपनी अपनी सुनन में आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे पास आये तो आप ने मेरे हाथ में चाँदी के छल्ले देख कर फरमाया : “ऐ आइशा, यह क्या है ?” मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, मैं ने इन्हें इस लिए तैयार किया है ताकि आप के लिए बनवा-सिंघार करूँ। आप ने फरमाया : “क्या तुम इन की ज़कात देती हो ?” मैं ने कहा : नहीं या जो अल्लाह ने चाहा, आप ने फरमाया : “यह तुम्हारे नरक के लिए काफी है।” (अबू दाऊद 2/312 हदीस संख्या : 1565, और शब्द अबू दाऊद के ही हैं, दारक़ुतनी 2/105-106, हाकिम 1/389-390, बैहक़ी 4/139)

तथा वह हदीस भी आधार है जिसे उन्हों ने उम्मे सलमह से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं सोने के आभूषण पहनती थी तो मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, क्या यह खज़ाना है ? तो आप ने फरमाया : “जो ज़कात अदा किये जाने की राशि को पहुँच गया और उस का ज़कात निकाल दिया गया तो वह खज़ाना नहीं है।” (अबू दाऊद 2/212-213 हदीस संख्या : 1564, दारक़ुतनी 2/105, हाकिम 1/390, बैहक़ी 4/83, 140)

तथा कुछ लोग इस बात की ओर गये हैं कि उस में ज़कात अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि वह जाइज़ इस्तेमाल के द्वारा कपड़े और अन्य वस्तुओं की तरह बन गया, वह मूल्यों के वर्ग से नहीं रह गया। तथा उन्हों ने आयत के सामान्य अर्थ का उत्तर यह दिया है कि वह सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के अमल से विशिष्ट हो जाता है, क्योंकि सहीह (शुद्ध) इसनाद के द्वारा आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से प्रमाणित है कि वह अपने भाई की अनाथ बेटियों की देखभाल करती थीं जिन के पास आभूषण थे, तो वे उन की ज़क़ात नहीं निकालती थीं।

तथा दारक़ुतनी ने अपनी इसनाद के साथ अस्मा बिन्त अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि वह अपनी बेटियों को सोने के आभूषण पहनाती थीं और उन की ज़कात नहीं निकालती थीं, जिन का मूल्य लगभग पचास हज़ार था। (सुनन दारक़ुतनी 2/109)

अबू उबैद अपनी किताब “अल-अमवाल” में कहते हैं : हम से हदीस बयान किया इसमाईल बिन इब्राहीम ने, उन्हों ने रिवायत किया नाफिअ़ से और उन्हों ने रिवायत किया इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से कि वह अपनी बेटियों में से एक औरत की शादी दस हज़ार पर करते थे और वह उन में से चार हज़ार का उस के लिए आभूषण तैयार करते थे। उन्हों ने कहा कि तो वे उस की ज़कात नहीं देते थे। (दारकु़तनी ने इसी के समान रिवायत किया है 2/109, अबू उबैद ने अल-अमवाल में रिवायत किया है, पृ0 540 हदीस संख्या : 1276, (हर्रास संस्करण), बैहक़ी 4/138).

तथा उन्हों ने कहा : इसमाईल बिन इब्राहीम ने हम से हदीस बयान किया अय्यूब से, और उन्हों ने अम्र बिन दीनार से कि उन्हों ने कहा कि : जाबिर बिन अब्दुल्लाह से पूछा गया कि : क्या आभूषण में ज़कात है ? उन्हों ने उत्तर दिया : नहीं, कहा गया: यदि वह दस हज़ार को पहुँच जाये ? कहा : यह बहुत है। (इसे शाफेई ने अपनी मुसनद (सिंदी के क्रम के साथ) 1/228 हदीस संख्या : 629 में और अल-उम्म 2/41 में रिवायत किया है, अबू उबैद किताबुल अमवाल पृ0 540 हदीस संख्या : 1275 (हर्रास संस्करण), बैहक़ी 4/138).

इन दोनों कथनों में सब से उच्च कथन उन लोगों का है जिन्हों ने आभूषण में ज़कात के अनिवार्य होने की बात कही है, जबकि वह निसाब (ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम राशि) को पहुँच जाये, या उस के मालिक के पास सोने और चाँदी, या व्यापार के सामान में से इतनी राशि हो जिस से निसाब पूरा हो जाये ; क्योकि सोने और चाँदी में ज़कात के अनिवार्य होने की हदीस सामान्य है, और हमारे ज्ञान के अनुसार उस को विशिष्ट करने वाला कोई प्रमाण नहीं है, तथा अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस, आइशा और उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु अन्हुम की पीछे उल्लिखित हदीसों के आधार पर, और उन हदीसों की सनदें जैयिद हैं, उन में कोई प्रभावकारी आपत्ति नहीं है, अत: उन पर अमल करना अनिवार्य है। जहाँ तक तिर्मिज़ी और इब्ने हज़्म और मौसिली के उन को ज़ईफ क़रार देने का संबंध है तो हमारे ज्ञान के अनुसार उसका कोई अधार नहीं है, जबकि ज्ञात होना चाहिए कि तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने जो कुछ उल्लेख किया है उस में वह माज़ूर हैं, क्योंकि उन्हों ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस की हदीस को ज़ईफ तरीक़ों से रिवायत किया है, जबकि अबू दाऊद, नसाई और इब्ने माजा ने उसे दूसरे शुद्ध तरीक़ों से रिवायत किया है, शायद कि तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह को इस का पता नहीं चला।

और अल्लाह ही के हाथ में तौफीक़ (शक्ति का स्रोत) है, तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप की संतान तथा आप के साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

Courtesy islamqa

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नमाज़ का तर्जुमा

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सूरह हम्द का तर्जुमा

بِسْمِ اللّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ«1»     शुरु करता हूँ, उस अल्लाह के नाम से जो दुनिया में मोमिनों व काफ़िरों सब पर रहम करता है और आख़ेरत में मोमिनों पर रहम करेगा।
الْحَمْدُ لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ «2»   सारी तारीफ़े उस अल्लाह के लिये मख़सूस हैं जो जहानों की परवरिश करने वाला है।
اَلرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ «3» जो दुनिया में सब पर रहम करने वाला और आख़िरत में सिर्फ़ मोमिनीन पर रहम करने  वाला है।
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ «4» जो क़ियामत के दिन का मालिक है।
إِيَّاكَ نَعْبُدُ وإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ «5» हम सिर्फ़ तेरी इबादत करते हैं और सिर्फ़ तुझ से मदद माँगते हैं।
اِهْدِنَا الصِّرَاطَ المُسْتَقِيمَ «6» हम को सिराते मुसतक़ीम पर साबित क़दम रख।
صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمْتَ عَلَيهِمْ  ऐसे लोगों का रास्ता जिन पर तूने अपनी नेअमतें नाज़िल की है।( वह पैग़म्बर और ुनके जानशीन हैं)
غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ उन लोगों का रास्ता नही जिन पर तूने क़हर नाज़िल किया और न उन लोगों का रास्ता जो गुमराह हैं।

सूरः ए क़ुल हुवल्लाहु अहद का तर्जुमा

بِسْمِ اللّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ«1 शुरु करता हूँ, उस अल्लाह के नाम से जो दुनिया में मोमिनों व काफ़िरों सब पर रहम करता है और आख़ेरत में मोमिनों पर रहम करेगा।
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ «2» ऐ मेरे नबी आप कह दीजिए वह अल्लाह एक है।
اللَّهُ الصَّمَدُ «3»  वह सबसे बेनियाज़ है। ( उसे किसी की अवश्यक्ता नही है)
لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ «4» न उसके कोई औलाद है और न वह किसी की औलाद है। 
وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ «5» यानी तमाम मख़लूक़ात में कोई उसके जैसा नही है।

रूकूअ और सजदे के ज़िक्र की तर्जुमा

سبحان ربي العظيم و بحمده मेरा अज़ीम अल्लाह हर बुराई और कमी से पाक व पाकीज़ा है और मैं उसकी हम्द कर रहा हूँ।
سبحان ربي الاعلي و بحمده. मेरा अल्लाह जो सबसे बड़ा है, वह हर बुराई और कमी से पाक व पाक़ीज़ा है और मैं उसकी हम्द कर रहा हूँ।

रुकूअ और सजदे के बाद के ज़िक्र का तर्जुमा

سمع الله لمن حمده  यानी अल्लाह, तारीफ़ करने वालों की तारीफ़ को सुनता और क़बूल करता है।
استغفر الله ربي و اتوب اليه  मैं, उस अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी चाहता हूँ जो मेरा पालने वाला है और मैं उसकी तरफ़ पलटता हूँ।
بحول الله وقوته اقوم و اقعود     यानी मैं अल्लाह की मदद और ताक़त से उठता बैठता हूँ।

क़ुनूत का तर्जुमा

 لا اله الا  الله الحليم الكريم لا اله الا  الله العلي العظيم سبحان الله رب السموات السبع و الارضين السبع و ما بينهن ورب العرش العظيم و الحمد لله رب العلمين कोई इबादत के लायक़ नही है, सिवाए उस अल्लाह के जो हिल्म और करम वाला है और कोई बंदगी के लायक नही है सिवाए उस अल्लाह के जो बुलंद मर्तबा और बुज़ुर्गी व अज़मत वाला है।  पाक व पाक़ीज़ा है वह अल्लाह जो सात आसमानों व ज़मीनों और उन दोनो उनके दरमियान की हर चीज़ और अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है। हम्द व तारीफ़, उस अल्लाह से मख़सूस है जो तमाम मौजूदात का मालिक है।

तसबीहात का तर्जुम

سبحان الله و الحمد لله ولا اله الا الله و الله اكبر   अल्लाह तअला पाक व पाक़ीज़ा है, हम्द व तारीफ़ उसी के लिये मख़सूस है, उसके अलावा कोई माबूद नही है, अल्लाह उससे कहीँ बड़ा है कि उसकी तारीफ़ की जाये।

तशह्हुद का तर्जुमा

اشهد ان لا اله الا الله وحده لا شريك له मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई इबादत के क़ाबिल नही है वह अकेला है उसका कोई शरीक नही है।
و اشهد ان محمدا عبده و رسوله   और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद(स) अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं।
اللهم صل علي محمد وال محمد  ऐ अल्लाह, मुहम्मद और उनकी औलाद पर रहमतें नाज़िल कर।

सलाम का तर्जुमा

 السلام عليك ايها النبي و رحمة الله و بركاته ऐ नबी, आप पर सलाम हो और आप पर अल्लाह की रहमत व बरकत नाज़िल हो।
السلام علينا  وعلي عباد الله الصالحين   हम पर और अल्लाह के तमाम नेक बंदों पर सलाम हो।
السلام عليكم  و رحمة الله و بركاته   ऐ मोमिनों, तुम पर सलाम और तुम पर अल्लाह की रहमतें और बरकतें नाज़िल हों।

ताक़ीबाते नमाज़ (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली चीज़ें)

1141.मुस्तहब है कि इंसान नमाज़ के बाद ज़िक्र व दुआ व तिलावते क़ुरआन करे और उसी चीज़ को "ताक़ीब" कहते हैं। बेहतर है कि अपनी जगह से उठने और वुज़ू टूटने से पहले क़िबले की तरफ़ मुँह करके ताक़ीबात पढ़े और यह ज़रूरी नही कि ताक़ीबात अरबी में पढ़े, लेकिन बेहतर है कि उन चीज़ों को पढ़े जिनके बारे में दुआओ की किताबों में बयान हुआ है। जिस ताक़ीब की सबसे ज़्यादा ताकीद की गई है वह हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) की तस्बीह है जिसमें 34 बार अल्लाहु अकबर, 33 बार अलहम्दु लिल्लाह और 33 बार सुब्हान अल्लाह है। सुब्हान अल्लाह को अलहम्दु लिल्लाह से पहले पढ़ सकते हैं लेकिन बेहतर यही है कि सुब्हान अल्लाह को बाद में ही कहा जाये।
1142.मुस्तहब है कि इंसान नमाज़ के बाद एक सजद ए शुक्र करे और इसके लिए इतना काफ़ी है कि इंसान अपने सर को शुक्र की निय्यत से ज़मीन पर रखदे। लेकिन बेहतर है कि 100 बार या 3 बार या 1 बार शुकरन लिल्लाह,या शुकरन, या अफ़वन, कहे। इसी तरह यह भी मुसतहब है कि जब इंसान को कोई नेमत मिले या ुससे कोई मुसीबत टले तो फ़ौरन शुक्र का सजदा करे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) पर सलवात भेजना

1143.जब इंसान पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कोई नाम जैसे मुहम्मद, अहमद, या लक़ब व कूनिय्यत जैसे मुस्तफा, अबुल क़ासिम, वग़ैरह अपनी ज़बान से ले या किसी दूसरे से सुने, तो मुसतहब है कि आप पर सलवात भेजे, चाहे नमाज़ की हालत में ही हो।
1144.पैग़म्बरे इस्लाम (स) का नाम लिखते वक़्त सलवात का लिखना मुस्तहब है। बेहतर है कि जब भी हज़रत(स) को याद करे आप पर सलवात भेजे।
Courtesy lankarani

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रोटी बैंक

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फ़िरदौस ख़ान
इंसान चाहे, तो क्या नहीं कर सकता. उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले के बाशिन्दों ने वो नेक कारनामा कर दिखाया है, जिसके लिए इंसानियत हमेशा उन पर फ़ख़्र करेगी.  बुंदेली समाज के अध्यक्ष हाजी मुट्टन चच्चा और संयोजक तारा पाटकर ने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक ऐसे बैंक की शुरुआत की है, जो भूखों को रोटी मुहैया कराता है.
बीती 15 अप्रैल से शुरू हुए इस बैंक में हर घर से दो रोटियां ली जाती हैं. शुरू में इस बैंक को सिर्फ़ 10 घरों से ही रोटी मिलती थी, लेकिन रफ़्ता-रफ़्ता इनकी तादाद बढ़ने लगी और अब 400 घरों से रोटियां मिलती हैं. इस तरह हर रोज़ बैंक के पास 800 रोटियां जमा हो जाती हैं,  जिन्हें पैकेट बनाकर ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाता है. इस वक़्त 40 युवा और पांच वरिष्ठ नागरिक इस मुहिम को चला रहे हैं.
शाम को युवा घर-घर जाकर रोटी और सब्ज़ी जमा करते हैं. फिर इनके पैकेट बनाकर इन्हें उन लोगों को पहुंचाते हैं, जिनके पास खाने का कोई इंतज़ाम नहीं है. पैकिंग का काम महिलाएं करती हैं. इस काम में तीन से चार घंटे का वक़्त लगता है. फ़िलहाल बैंक एक वक़्त का खाना ही मुहैया करा रहा है, भविष्य में दोनों वक़्त का खाना देने की योजना है.
इस नेक काम में लगे लोग बहुत ख़ुश हैं. अगर देशभर में इस तरह के रोटी बैंक खुल जाएं, तो फिर कोई भूखा नहीं सोएगा.

तस्वीर गूगल से साभार

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फ़ातिमा के शहज़ादों के ईद के नये कपड़े

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रमज़ानुल मुबारक की 29 तारीख़ थी.
ईमाम हसन (र.) की उम्र मुबारक 5 साल और ईमाम हुसैन (र.) की उम्र 4 साल 2 माह की थी.
सय्यदा फातिमा चक्की पीस कर फ़ारिग़ होती हैं. आपने जा-नमाज़ बिछाई और इरादा किया कि नमाज़ पढ़ लूं कि तभी हज़रत इमाम हसन और हुसैन (र.) दौड़ते हुए आये और जा-नमाज़ पर लेट गए.
सय्यदा ने उठने को कहा, तो दोनों शहज़ादे मचल गये और कहने लगे-
अम्मीजान ! सुबह ईद हो जाएगी. ईद के रोज़ सब नये नये कपड़े पहनेंगे. हमें भी नये कपड़े मंगवा के दे दीजिए.
सय्यदा फ़ातिमा का दिल हिल गया. आपने बच्चों को सीने से लगाकर कहा-
मेरे चांद ! मुझे नमाज़ पढ़ लेने दो. कल तुम्हें नये कपड़े मंगवाकर दूंगी.
अम्मी ! कल तो ईद है. कपड़े अगर आए, तो सिलेंगे कैसे...? हज़रत हसन (र.) ने पूछा.
आपने फ़रमाया फ़िक्र न करो बेटा. दर्ज़ी तुम्हारे लिए सिले सिलाये कपड़े लाएगा. और फिर सय्यदा फ़ातिमा ने नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी. नमाज़ के बाद बारगाहे ख़ुदावन्दी में हाथ उठा दिए.
बारी तआला ! तू सब कुछ जानता है. तेरी इस बन्दी ने सिर्फ़ इसलिए बच्चों से कपड़ों का वादा कर लिया कि उनका दिल न टूटे.
मेरे ख़ुदा ! तू ख़ूब जानता है कि फ़ातिमा ने कभी झूट नहीं बोला.
या अल्लाह ! मेरे उठे हुए हाथों की लाज रखना. मैने तेरी रहमत के सहारे पर बच्चों से नये कपड़ों का वादा कर लिया है. मेरे वादे की लाज रखना मौला.
इफ़्तारी का वक़्त हो गया. ईद का चांद नज़र आ गया. मदीना मुनव्वरा में मुनादी हो रही थी. बच्चे अभी से ईद की तैयारी कर रहे थे. रात को सोते वक़्त फ़ातिमा के शहज़ादों ने फिर अपना वादा अम्मी को याद दिला दिया.
फ़ज्र की अज़ान हुई. सय्यदा फ़ातिमा ने नमाज़ अदा की. अभी दुआ के लिए हाथ उठाये ही थे कि दरवाज़े पे दस्तक हुई.
आपने पूछे कौन है ?
आवाज़ आई - बिन्ते रसूल! आपका दर्ज़ी हूं, शहज़ादों के कपड़े लाया हूं. आपने ग़ैबी मदद समझ कर कपड़े ले
लिए. हसन और हुसैन (र.) को कपड़े पहना दिए. दोनों ख़ुश होते हुए मस्जिद-ए-नबवी में नाना जान को कपड़े दिखाने गए.
रसूले-ख़ुदा (सअव) मस्जिद-ए-नबवी के कच्चे फ़र्श पर लेटे हुए थे. आप (सअव) ने दोनों शहज़ादों को देखा, तो बहुत ख़ुश हुए. फिर आप (सअव) बेटी के घर तशरीफ़ लाए और मुस्कराते हुए पूछा- बेटी यह कपड़े कहां से आए हैं ?
आपने अर्ज़ किया- अब्बाजान ! एक दर्ज़ी दे गया है.
आप (सअव) ने फ़रमाया- बेटी जानती हो, वो दरज़ी कौन था ?
सय्यदा फ़ातिमा ने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानतें हैं.
सरकारे-दो आलम (सअव) ने फ़रमाया- बेटी आपका दर्ज़ बनकर आने वाले जिब्राईल थे. और ये जोड़े वह अल्लाह के हुक्म से जन्नत से लाए थे.
हज़रत फ़ातिमा (र.) ने ख़ुदा का शुक्र अदा किया.
उधर हज़रत अली के नन्हे-नन्हे शहज़ादे खुशी से हुज़ूर (सअव) की चादर को सर पर रखकर आपसे बार-बार लिपट रहे थे.
सुब्हान अल्लाह

साभार साजिद क़ुरैशी

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Organ Donation Is A Noble Act

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Maulana Wahiduddin Khan
God Almighty created human beings and all other forms of life. Everything big or small that we enjoy in this world is a gift from the Creator. The Quran says,“He has given you all that you asked of Him.” (14:34). By ourselves, we cannot create something out of nothing.Without Divine Grace, it would not be possible for us to live comfortably on planet Earth. If we suffer an injury and apply the right medicine, the injury is cured because our body accepts the treatment. It’s a divine blessing, because that the body accepts healing is also something facilitated by cosmic forces.We could not have created this capacity all by ourselves.
Another such blessing is chloroform.It was its use that made medical surgery possible. Referring to this divine blessing,the Scottish surgeon John Brown (1810-1882) said:“One of God’s best gifts to His suffering children.” The medical procedure of organ transplantation also figures in the long list of divine blessings.Organ transplantation is the removing of an organ from the donor’s body and giving it to another for the purpose of  replacing the recipient’s damaged or absent organ. This discovery has made a valuable addition to the list of donations that human beings can make.

Traditionally,donation was the giving of food or money. But now, it has become possible for a person to donate an organ, such as eye, kidney or blood,for example,to another person, so that the latter can become well once again and lead a healthy life.Currently,as per medical advances,12 kinds of organs can be donated and transplanted.If the organ of one person is transplanted into the body of another by means of surgery and the recipient’s body accepts the donor’s organ, this is a biological miracle.It was the Creator who invested the human body withthis potential.
Had the human body not been created with this capacity, organ transplantation would not have  been at all possible.Thus, organ transplantation is also a part of the creation process as is the organ itself.When something is part of Creation, it is more than right to say that since the Creator created this capability in the human body,it is also required that we should discover this possibility and utilise it for our benefit.

It is an Islamic teaching that every man and woman must live in society as a giver-member. Organ donation does not in any way go against religious teaching and is as good as the  donation of food and money.This is a great human value; there is no doubt about it.

In Islam, there is a concept called sadqa jariya, or continued charity. It means that if one donates something and its benefit reaches people even after the death of the donor, then that is continued charity. It would be appropriate  to say that modern medical science has added a very useful item to the list of sadqa jariya.
Medical science tells us that whenone person donates an organ of hisbody to another, this is a totally safeprocedure so long as routine precautionsare taken and the recipient’s body does not reject the donated organ dueto the body’s natural defence mechanism.For the donor,there is no risk orharm in this practice.Organ donation is the noblest form of charity.

Courtesy The Speaking Tree

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Khane se Pehle aur Baad ki Sunnatain

Author: फ़िरदौस ख़ान Labels::


1. khana khane se pehle bismillah (Bismillahi wa ala baraka Tillah) padhlena chahiye, Huzoor sallaallahu alaihi wasallam ne aik km umr sahabi R.A se khitab karte huwe ye hukum diya, “ aye bacche! Allah ka Naam lo, sidhe hath se khao aur apne samne jo hai waha se khao”.(Muslim)
2. is hadees se bismillah k alawa aur 2 sunnaton ka saboot mila wo ye k sidhe hath se khana chahiye,
3. aur teesri sunnat ye hai k Apne samne se khayen yani jo cheez apne samne hai wo khayen.
4.khane k douran agar luqma gir jaye to us ko saaf kar k khalena chahiye Huzoor sallaallahu alaihi wasallam ne irshad farmaya: Jub tum me se kisi k hath se luqma gir jaye to jo kuch us ko laga ho wo door karde phir khale.(Muslim)
5.Teen ungliyon se khayen, Huzoor sallaallahu alaihi wasallam Teen ungliyon se khaya karte the.(Muslim)Han! Agar koi aisi cheez ho jis ka Teen ungliyon se khana mumkin na ho to phir gunjayesh hai char ya panch ungliyon se khayen.
6. khane k baad bartan ko saaf Karen aur ungliyon ko chat lain, Huzoor sallaallahu alaihi wasallam ne ungliyon ko chat laine aur bartan (plait) ko saaf karne ka hukum diya aur farmaya k tum nahi jante k kis dane me barkat hai.
7. khane k baad Allah Tala ki Hamdo sana bayan Karen, Huzoor sallaallahu alaihi wasallam ne irshad farmaya , Allah Tala us bande se razi hote hai jo khaye phir us per Allah Tala ki tareef bayan Karen.(Muslim)
8. Khane k baad ki wo dua padhe jis me Allah ki Hamd-o-sana hai, “Alhamdulillahilladzi at 'amana wasaqana waj 'alna minal muslimin” Shukr hai Allah ka jis ne hum ko khilaya aur pilaya aur hum ko musalman banaya.(jame tirmizi)
1.Dono hath gattho tak dhona.2.Dastarkhwan bichana.3.Bismillah padhna. 4.Daye hath se khana (baye hath se har giz na khaye).5.Apne samne se khana Agar tashtari me kai qisam ki cheezen ho to jo pasnd ho wo khaye kisi ka hath badh raha ho to Apne hath ko rok le.6.Teen ungliyon se khana.7.Pyala tashtari Neez ungliyon ko chat kar saaf karna.8.Agar luqma gir jaye to utha kar khalena.9.khane me ayeb na lagana.10.Taik laga kar na khana.11.khane k baad ki dua padhna.12.pehle dastarkhwan uthana, phir khud uthna.13.kulli karna.14.dono hath dhona.15.khane se pehle bismillah bhool jaye to ye dua padhe (bismillahi awwalahu wa akhirahu).Allah k Naam k sath khane k shuru me bhi aur us k Aakhir me bhi.
(Sunan Abi Dawood)

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इबादत की रात

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फ़िरदौस ख़ान
कल इबादत की रात थी... घरों और मस्जिदों में रातभर इबादत की गई... ये देखकर बहुत ख़ुशी हुई कि मासूम बच्चों ने भी इबादत की... जिन लोगों ने रात भर इबादत की और आज रोज़ा रखा, अल्लाह उनकी इबादत और रोज़े को क़ुबूल फ़रमाये, आमीन...
जिन लोगों (ग़ैर मुस्लिम भी) ने हमसे दुआओं को कहा था, हमने उनका नाम लेकर उनके लिए दुआ की, अल्लाह दुआओं को क़ुबूल फ़रमाये, आमीन...
दुनिया में हर तरफ़ ख़ुशहाली हो, चैन-अमन हो, हर चेहरे पर मुस्कराहट हो, आमीन
आज भी दिल्ली में मौसम सुहाना है, कल शाम और रात बारिश हुई है, काली घटायें छाई हुई हैं और ठंडी हवायें चल रही हैं...और रुक-रुक्कर बूंदें बरस रही हैं...
अल्लाह सबकी ज़िन्दगी का मौसम भी सुहाना करे, आमीन

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नफ़िल रोज़ा

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 नफ़िल रोज़े की फ़ज़ीलत


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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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