दावत व तब्लीग़
Author: फ़िरदौस ख़ान Labels:: दावत-ए-हक़किसी भी क़ौम की ख़्वातीन का उस क़ौम की तामीर व तरक़्क़ी में जो हौसला होता है, वह किसी तशरीह व बयान का मोहताज नहीं. मां की गोद बच्चे का पहला स्कूल पहला मदरसा होती है. और ऐसा स्कूल जिसमें सीखा हुआ एक एक लफ़्ज़ पत्थर के नक़्श से ज़्यादा देरपा होता है. मरने तक याद रहता है.
तारीख़े-इस्लाम शाहिद है कि महिलाओं ने क़ुरआन व हदीस के हिफ़्ज़ (याद) करने में ग़ैर मामुली कारनामे अंजाम दिए. इबादत ईसार व हया के साथ मर्दों का जिहाद व शहादत और दावते व अज़ीमत में साथ दिया या क़ुरआनी अल्फ़ाज़ में साहत का अमली नमूना है.
दावत के मैदान मे क़ुरबानियां देने में मर्दों के मुक़ाबले में औरतों ही को अव्वलियत हासिल रही है. चुनांचे आप (सल्ल) पर सबसे पहले ईमान वाली एक औरत ( हज़रत ख़दीजा रज़ी.) हैं. इस्लाम की ख़ातिर सबसे पहले अपना माल लगाने वाली भी एक औरत ही है (हज़रत.ख़दीजा रज़ी).
इस्लाम के लिए सबसे पहले जामे-शहादत नोश फ़रमाने वाली ( शहीद) भी एक औरत ही है. (हज़रत सुमैय्या रज़ी) और कलामे-इलाही ने पूरी वजा़हत के साथ उम्मते-मोहम्मदिया के हर मर्द व औरत को दावते-ईमान व इस्लाम का ज़िम्मेदार क़रार दीया है. तर्ज़ुमा
" अल ग़रज़ शरियत ने मर्दों और औरतों दोनों को दावत व तब्लीग़ का मुकल्लफ़ बनाया है"
मौलाना मुफ़्ती मोहम्मद रोशन
तस्वीर गूगल से साभार