सवाबे-जारिया का हिस्सा बनें
Author: फ़िरदौस ख़ान Labels:: दावत-ए-हक़मुहम्मद रसुल्ल्लाह अलैही व सल्लम को अल्लाह तआला ने केवल रहबरे-इंसानियत ही बनाकर नहीं भेजा, बल्कि उनको शराफ़त और ज़िदंगी के लिए सलाह व फ़लाह और सिफ़ाते-हसना (सदगुणों) का नमुना भी बनाकर भेजा. मज़ीद ये कि इंसानियत को सही रास्ता और ऊंचाई पर लाने के लिए ऐसी कोशिश के साथ भेजा, जिससे इंसानों को जानवरों जैसी बेलगाम ज़िन्दगी से निकाल कर ख़ैर और कामयाबी की ज़िन्दगी में दाख़िल होने की राह मिली. रब्बुल आलमीन ने इसी बुनियाद पर उनको रहमतुल्लिल आलमीन की सिफ़त अता फ़रमाई.
वो उम्मत जिस की तरफ़ आप भेजे गए, उसको भी दावत इलल्लाह और कलमा-ए-तौहीद को आम करने के लिए ऐसे योग्य बनाया गया जैसा कि जिसके करने पर ही उसकी ख़ैर व फ़लाह और कामयाबी व कामरानी को मुक़द्दर किया गया. लिहाज़ा तारीख़ इस बात की गवाह है कि उम्मत ने जब जब दावत की ज़िम्मेदारी को पुरा किया, वह कामियाब रही और जब जब इस काम से ग़ाफ़िल हुई उम्मत ज़िल्लत व रुसवाई से दोचार हुई. इंफ़िरादी (वैयक्तिक) एतबार से हो या इज्तिमाई (सामुहिक)एतबार से हो, जब जब प्यासी क़ौमों तक हक़ व सदाक़त (सच्चाई) की बात और कलमा-ए-तौहीद की दावत पेश की गई ईमान व इस्लाम की बारिशें बरसीं. नसीमे-हिदायत के झोंके चले और उसके दामन में सुलगती सिसकती तड़पती, कराहती इंसानियत ने राहत व आराम, चैन, सुकुन और इत्मिनान की सांस ली.
आज के इस पुर आशोब (अंधेरे) दौर में भी अलहम्दुलिल्लाह जो लोग इस फ़रज़े-मंसबी को अदा करने के सरफ़रोशाना जद्दोजहद कर रहे हैं, ख़ुदावंदे आलम अपने फ़ज़्ल और उनकी मेहनतों से भटकते इंसानों को ज़ादहे-हक़ व सिराते मुस्तक़ी से हमकिनार (लाभन्वित) कर रहा है.
लिहाज़ा ज़रूरी है कि हम भी रसुल्ल्लाह अलैही व सल्लम की तड़प, सोच व इज़्तिराब (बेचैनी) और उनका दर्द लेकर पूरी इंसानियत को मख़्लूक परसती से निकाल कर ख़ालिक से जोड़ने और सही राह पर लाने की कोशिश करे... आमीन
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कबीर अली