बैत होना (मुरीद होना)
Author: Admin Labels:: ख़िदमत-ए-ख़ल्क, बैतहम चिश्तिया सिलसिले से ताल्लुक़ रखते हैं... तक़रीबन दस साल पहले हम बैत हुए थे... बैत होने के बारे में एक तहरीर पेश है-
सूफ़िया किराम के यहां ये सब से अहम तरीन रूक्न है, जिसके ज़रिये तालिम व तरबियत, रशदो हिदायत और इस्लाह अहवाल का काम शुरू होता है.
बैअत-ए-शैख़ अल्लाह के हुक्म से और हुज़ुरे अकरम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अमल से साबित है. अल्लाह क़ुरआन में फ़रमाता है कि बेशक जो तुम्हारे हाथों में बैअत करते हैं हक़ीक़तन वो अल्लाह के हाथों पर बैअत करते हैं, अल्लाह का हाथ उनके हाथों पर है. बैअत का अमल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अमल "बैअत-अर-रिज़वान" से बतरिकए ऊला साबित है. कुछ अहले-इल्म में नज़दीक बैअत वाजिब है और कुछ ने बैअत को सुन्नत कहा है. बल्कि एक गिरोह कसीरा ने इसे सुन्नत ही कहा है.
बैअत की कई क़िस्में होती हैं- जैसे बैअत-ए-इस्लाम, बैअत-ए-ख़िलाफ़त, बैअत-ए-हिजरत, बैअत-ए-जिहाद, बैअत-ए-तक़वा वग़ैरह. लेकिन तज़किया-ए-नफ़्स और तसफ़िया-ए-बातिन के लिए जो सूफ़िया किराम बैअत करते हैं, वो कुरबे इलाही का ज़रिया बनते हैं और तसव्वुफ़ में इसी बैअत को "बैअत-ए-शैख़" कहते हैं.
जब कोई बैअत व इरादत का चाहने वाला हाज़िर होता है और इज़हारे-ग़ुलामी व बन्दगी के लिए हल्क-ए-मुरीदैन में शामिल होना चाहता है, तो उसको का हाथ अपने हाथ में लेकर हल्क-ए-इरादत और तरीक-ए-ग़ुलामी में दाख़िल किया जाता है.
फिर तालिब से पूछते हैं कि वो किस ख़ानवाद-ए-मारफ़त (क़ादिरिया, चिश्तिया, अबुलउलाई वग़ैरह) में बैअत कर रहा है और उससे सुनते हैं वो किस ख़ानवाद- ए-तरीकत में दाख़िल हुआ. शिजर-ए-मारफ़त के सरखेल का नाम लेते हुए सिलसिला ब सिलसिला अपने पीर के ज़रिये अपने तक पहुंचाते हैं और कहते हैं कि क्या तू इस फ़क़ीर को क़ुबूल किया? तालिब कहता है कि दिलो-जान से मैंने कुबूल किया, इस इक़रार के बाद उसे तालिमन कहते हैं कि हलाल को हलाल जानना और हराम को हराम समझना और शरीअते-मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़दम जमाए रखना. (फ़िलहम्दोअलिल्लामह अला जुल्क)
अकाबिरों के नज़दीक वसीला से तवस्सले मुर्शिद ही है. हज़रत मौलाना शाह अब्दुर्रहीम, शाह वलीउल्लाह मुहद्दीस और शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दीस देहलवी साहेबान का भी यही मानना है. यहां तक कि वहाबियों के सरगना इस्माइल देहलवी का भी यह कहना है कि- 'क़ुरआन में सूरे बनी इसराइल के रुकूअ 6 में रब तआला ने शख़्स अकरब अलीउल्लाइह के लिए वसीले ही के लफ़्ज़ का इस्तेमाल किया है.'
इसमें कोई शक नहीं है कि अल्लाह की बारगाह के मुकर्रेबीन का वसीला ही वो वसी है, जिसके हासिल करने की हिदायत, अल्लाह तआला ने क़ुरआन में फ़रमाई.
Courtesy : qhizr