शाने-ग़ौसे आज़म
Author: Admin Labels:: इस्लाम, औलिया, ग़ौसे-आज़मऐ बग़दाद के मुसाफ़िर ! मेरा सलाम कहना...
हमारे पीर हैं हज़रत शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रज़ियल्लाहूतआला यानी ग़ौस-ए-आज़म रज़ियल्लाहू तआला.
ये हज़रत सैयद मोईनुद्दीन अब्दुल क़ादिर अल-जिलानी अल-हसनी अल-हुसैनी का महीना रबीउल आख़िर है. इस माह की ग्यारह तारीख़ को ग़ौस-ए-आज़म की नियाज़ दिलाई जाती है.
कौन हैं ग़ौसे-आज़म
* जिन्होंने मां के पेट में ही 11 पारे हिफ़्ज़ किए
* जिन्होंने फ़रमाया- मैं इंसानों का ही नहीं, बल्कि जिन्नात का भी पीर हूं
* जिन्होंने फ़रमाया- जो मुझे अपना पीर मानेगा, वो मेरा मुरीद है
* जिन्होंने फ़रमाया- मैं मशरिक़ में रहूं और मेरा मुरीद मगरिब में मुझे पुकारेगा, तो मैं फ़ौरन उसकी मदद को आऊंगा
* जिन्होंने एक पल में बारह साल पहले डूबी हुई कश्ती को ज़िन्दा बारातियों के साथ निकाला
* जिनके हुज़ूर-ए-पाक में एक चोर चोरी की नीयत से आया और वक़्त का क़ुतुब बन गया
* जिन्होंने एक हज़ार साल पुरानी क़ब्र में दफ़न मुर्दे को ज़िन्दा कर दिया
* जिन्होंने फ़रमाया- वक़्त मुझे सलाम करता है, तब आगे बढ़ता है
* जिन्होंने अपने धोबी को हुक़्म दिया कि क़ब्र में मुन्कर नक़ीर सवाल पूछे, तो कह देना मैं ग़ौसे-आज़म का धोबी हूं, तो बख़्शा जाएगा
* जो अपने मुरीदों के लिए इरशाद फ़रमाते हैं कि जब तक मेरा एक-एक मुरीद जन्नत में नहीं चला जाए, तब तक अब्दुल क़ादिर जन्नत में नहीं जाएगा.
* जिनका नाम अगर किसी सामान पर लिख दिया जाए, तो वो सामान कभी चोरी नहीं होता
होता है, होता ही रहेगा चर्चा ग़ौसे-आज़म का
बजता है, बजता ही रहेगा डंका ग़ौसे-आज़म का
देखने वालो, चल कर देखो आस्तान-ए-अब्दुल क़ादिर
चांद के जैसा चमक रहा है रौज़ा ग़ौसे-आज़म का