दूसरों की क़द्र करनी चाहिए
Author: Admin Labels:: सबक़, सूफ़ीएक सूफ़ी अपने मक़तब में लड़कों को पढ़ा रहे थे. उसी समय उनके एक पंडित मित्र आए, जिनके नंगे शरीर पर केवल जनेऊ पड़ी हुई थी. मस्तक पर तिलक आदि लगाए हुए थे. धोती पहन रखी थी. उनके पैरों में खडाऊं थी. सिर पर मोटी सी चोटी थी.
उन्हें देखकर सूफ़ी जी का एक शिष्य मुस्कराने लगा.
सूफ़ी जी ने पंडित जी से बातचीत की और जब पंडित जी चले गए, तब सूफ़ी ने अपने उस शिष्य से जो मुस्करा रहा था कहा, तुम यहां से निकल जाओ, मैं तुम्हें नहीं पढ़ाऊंगा.
शिष्य ने कहा कि मुझसे क्या ग़लती हुई है?
सूफ़ी ने कहा तुम जानते हो, तुमने क्या ग़लती की है.
शिष्य ने बहुत विनती की और कहा मुझे आप न निकालें, जो सज़ा चाहें दे दें.
तब सूफ़ी ने कहा कि एक ही रास्ता है. तुम कल उसी वेश से आओ जैसे आज पंडित जी आए थे और चार धाम की यात्रा करो, तब मेरे पास आओ. फिर मैं तुम्हें शिष्य के रूप में स्वीकार करूंगा.
शिष्य ने ऐसा ही किया और तब सूफ़ी ने उसे अपना शिष्य स्वीकार किया.
दूसरों के विश्वासों और धार्मिक मान्यताओं को सम्मान देना हम सब का कर्तव्य है.
-असग़र वज़ाहत