अहमियत किस की रूह की या जिस्म की
Author: फ़िरदौस ख़ान Labels:: तब्सिरा
कबीर अली
सारा खेल रूह (आत्मा) का है. रूह है, तो तकलीफ़ है, ख़ुशी है, ग़म है, हर चीज़ है. रूह चली जाए तो कुछ नहीं.
अब इंसान का पहला काम है रूह को पाक रखना. ये पाक साफ़ रहेगी, तो जिस्म से होने वाले काम सही होंगे. अच्छा सोचेगा, अच्छा करेगा. रूह ही ख़राब हो, तो जिस्म को कितना भी साफ़ कर लें, कुछ नहीं होगा. हर मज़हब में कहा गया है कि आत्मा अमर है. उसको मौत नहीं आती, याद रखो. इसी आत्मा से तुम्हारे करमो का हिसाब लिया जाएगा. लोग कहते हैं, किसने देखा? जबकि सबने देखा. सपना सभी देखते हैं, सोते हुए होते घर पर हैं. देखते हैं कहीं दूर किसी शहर में कोई आपको मारता है. बहुत लोग नींद में रोते हैं. जगाकर पूछो तो कहते हैं- बुरा सपना देखा. ये वही आत्मा पर चोट थी. इसी तरह मरने पर जिस्म ख़त्म हो जाएगा और आत्मा का हिसाब होगा. क्या किया, पैसा कैसे कमाया, कहां लुटाया? अनाथों. लाचारों. कमज़ोरों. के लिए क्या किया? लोग बुढ़ापे मे इबादत करते हैं, किस काम की ? जब किसी काम के नहीं रहे, तो अल्लाह याद आया.
दोस्तों ! आज अपनी इच्छाओं के गु़लाम ना बनो, कल कोई साथ नहीं आएगा.
क्या ख़ूब काहा है-
जमी है बरफ़ जो पलकों पर जमी रहने दे
ज़रा सी देर को ठंडी हवा भी रहने दे
ये शब गुज़ार दे तू लज्ज़ते-गुनाह के बग़ैर
बचा ले रूह को, जलता है जिस्म जलने दे
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सारा खेल रूह (आत्मा) का है. रूह है, तो तकलीफ़ है, ख़ुशी है, ग़म है, हर चीज़ है. रूह चली जाए तो कुछ नहीं.
अब इंसान का पहला काम है रूह को पाक रखना. ये पाक साफ़ रहेगी, तो जिस्म से होने वाले काम सही होंगे. अच्छा सोचेगा, अच्छा करेगा. रूह ही ख़राब हो, तो जिस्म को कितना भी साफ़ कर लें, कुछ नहीं होगा. हर मज़हब में कहा गया है कि आत्मा अमर है. उसको मौत नहीं आती, याद रखो. इसी आत्मा से तुम्हारे करमो का हिसाब लिया जाएगा. लोग कहते हैं, किसने देखा? जबकि सबने देखा. सपना सभी देखते हैं, सोते हुए होते घर पर हैं. देखते हैं कहीं दूर किसी शहर में कोई आपको मारता है. बहुत लोग नींद में रोते हैं. जगाकर पूछो तो कहते हैं- बुरा सपना देखा. ये वही आत्मा पर चोट थी. इसी तरह मरने पर जिस्म ख़त्म हो जाएगा और आत्मा का हिसाब होगा. क्या किया, पैसा कैसे कमाया, कहां लुटाया? अनाथों. लाचारों. कमज़ोरों. के लिए क्या किया? लोग बुढ़ापे मे इबादत करते हैं, किस काम की ? जब किसी काम के नहीं रहे, तो अल्लाह याद आया.
दोस्तों ! आज अपनी इच्छाओं के गु़लाम ना बनो, कल कोई साथ नहीं आएगा.
क्या ख़ूब काहा है-
जमी है बरफ़ जो पलकों पर जमी रहने दे
ज़रा सी देर को ठंडी हवा भी रहने दे
ये शब गुज़ार दे तू लज्ज़ते-गुनाह के बग़ैर
बचा ले रूह को, जलता है जिस्म जलने दे