वुज़ू करने का तरीका़
Author: फ़िरदौस ख़ान Labels:: इस्लाम, वुज़ूनमाज़ पढ़ने से प्रथम छोटी और बड़ी पाकी (पवित्रता ) प्राप्त करना अनिवार्य है. जो व्यक्ति नापाक (अपवित्र) हो, तो वह नमाज़ नहीं पढ़ सकता जब तक कि वह वुज़ू कर ले या ग़ुस्ल (स्नान) कर ले. फिर नमाज़ आरम्भ करे. इसी लिए वुज़ू का तरीक़ा बयान किया जाता है.
वुज़ू करने का तरीका़
हदीस
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) के निकट से गुज़रे और वह वुज़ू कर रहे थे (और पानी का अत्यधिक प्रयोग कर रहे थे) आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, यह क्या अपव्यय है ? तो उन्होंने कहा, क्या वुज़ू में अपव्यय है ? आप ने कहा, हां! और अगर तुम बहती नदी पर ही क्यो न हो ?” (इब्ने माजः)
1. नीयत
वुज़ू आरंभ करें, तो सबसे पहले वुजू़ की नीयत करें और नीयत का स्थान ह्रदय है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- निःसंदेह हर प्रकार का कर्तव्व नीयत पर आधारित है. (बुखारी तथा मुस्लिम)
2. ” बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ” कहना , जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा हैं. “ बिना वुजू़ के नमाज़ नहीं और बिना अल्लाह का नाम लिए बिना वुजू़ नहीं. ” (सुनन तिर्मिज़ी)
3. अपने हथैली को तीन बार धुलें और उंगलियों के दरमियानी भाग को दुसरे हाथ की उंगलियों से रगड़ें.
4. कुल्ली करें, तीन बार पानी मुंह में डालें और हिला कर फेंक दें और वुज़ू के बीच दांतुन करना अच्छा है.
5. तीन बार नाक में पानी डाल कर नाक साफ़ करें और दायीं हथेली से नाक में पानी डालना और बायें हाथ से नाक साफ़ करना अच्छा है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रमाणित है.
6. अपने चेहरे को तीन बार धोयें, पेशानी के बाल से ठोडी के नीचे तक और दायें कान की लौ से बायें कान की लौ तक और यदि घनी दा़ढ़ी हो, तो पानी से ख़िलाल करें और ख़िलाल पानी से तर उंगलियों को दाढ़ी के बीच दाख़िल करने का नाम है.
7. तीन बार अपने दायें हाथ को कोहनी तक धोयें. फिर तीन बार अपने बायें हाथ को कोहनी तक धोयें और वुजू़ के अंगों का रगड़ना मुस्तहब है.
8. अपने माथे के आगे से पीछे और पीछे से आगे तक एक बार मसह करें. फिर दोनों कान का भी एक बार मसह करें.
9. अपने दायें पैर को टख़ने तक तीन बार धोयें. फिर इसी तरह बायां पैर धोएं और पैर की उंगलियों के बीच ख़िलाल करें और टख़नों के ऊपर तक धोना मुस्तहब है.
10. वुजू़ के अंत में यह दुआ पढ़ना सन्नत है ” अश्हदो अल्लाइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू ला शरीक़ा लहू व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू, अल्लाहुम्मजअल्नी मिनत्तव्वाबीना वजअल्नी मिनल मुतत़ह्हिरीन ” ( सुनन तिर्मिज़ी)
जिन चीज़ों से वुज़ू भंग हो जाता है.
- गुप्तांग से निकलने वाली जीज़ों से वुज़ू टूट जाता है जैसे शैच, मूत्र, ख़ून या हवा जैसा कि अल्लाह का फरमान है।“ …. या तुम में से कोई शौच कर के आए, ….. ” (सूरः निसाः 43)
- अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ अल्लाह तआला तुम में से किसी ह़दस़ वाले व्यक्ति की नमाज़ स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि वह वुज़ू न बना ले. हज़्रमौत निवासी एक व्यक्ति ने कहा, ऐ अबू हुरैरा ह़दस़ क्या चीज़ है ? तो उन्होंने उत्तर दिया.मानव के गुप्तांग से निकलने वाली हवा” (सही बुखारीः 135, मुस्लिमः 225)
गहरी नींद से सोने से वुज़ू भंग हो जाता है.
- कोई हल्की नींद बिना टेक लगाए सोया हो या कोई बैठे-बैठे ही ओंघ रहा हो, तो उसका वुज़ू नहीं टूटेगा.
- रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ जो व्यक्ति निन्द से सो कर उठा तो वह वुज़ू कर ले।” – (सुनन अबू दाऊदः 203)
इस ह़दीस़ से प्रमाणित हुआ कि नींद से सोने से वुज़ू टूट जाता है, क्योंकि सोने की स्थिति में शरीर से कुछ निकलने के कारण मालूम नहीं होता है और हल्की नींद या ओंघ आने से वुज़ू नहीं टूटता है, जैसा कि ह़दीस में वर्णन है जिसे अनस (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, “ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) इशा की नमाज़ की प्रतिक्षा करते हुए ओंघते थे और उन के सर झुकाते थे और फिर वे नमाज़ पढ़ते और वुज़ू नहीं करते थे.” ( सुनन अबू दाऊदः 200)
बुद्धिहीन होने से वुज़ू टूट जाता है.
बुद्धिहीन होने से वुज़ू भंग हो जाता है, चाहे बुद्धिहीन, बेहोश या किसी रोग या पागल होने के कारण हुआ हो.
गुप्तांग को बिना किसी आड़ के छूने से वुज़ू टूट जाता है.
जिन चीज़ों के लिए वुज़ू करना अनिवार्य हो जाता है.
नमाज़
जब कोई नमाज़ पढ़ने का इरादा करे, तो वह अपने पवित्र होने का निश्चित कर ले. फिर यदि उसका वुज़ू नहीं है, तो वुज़ू करले जैसे कि अल्लाह का फ़रमान है- “ ऐ ईमान वालो, जब तुम नमाज़ के लिए उठो, तो अपने मुंह और हाथ कुहनियों तक धो लो और सिरों पर हाथ फेर लो और पांव टख़नों तक धो लिया करो.” (सूरः माइदाः 6)
काबा शरीफ़ के चारों ओर का तवाफ़ करना
काबा का तवाफ़ नमाज़ की तरह एक इबादत है और इसमें वुज़ू अनिवार्य होता है.
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमया, “ काबा शरीफ़ के चारों ओर का तवाफ़ करना नमाज़ पढ़ने की तरह है, मगर अल्लाह ने तवाफ़ करते समय बातचीत की अनुमति दी है, तो जो व्यक्ति तवाफ़ करते समय बातचीत करना चाहे, तो केवल भलाई ही की बातें करे.” (सुनन तिर्मिज़ीः 960, मुस्तद्रक हाकिमः 459/1)क़ुरआन करीम को छूना या उठाना
अल्लाह का कथन है. “ जिसे पवित्रों के सिवा कोई छू नहीं सकता ” (सूरः अल-वाक़िआः 79)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया, “ क़ुरआन करीम को केवल पवित्र लोग ही छूते हैं.” (तारुतु कुत्नीः 459/1)
Courtesy : muslims
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