दस बीबियों की कहानी

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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
कहते हैं, ये एक मौजज़ा है कि कोई कैसी ही तकलीफ़ में हो, तो नीयत करे कि मेरी मुश्किल ख़त्म होने पर दस बीबियों की कहानी सुनूंगी, तो इंशा अल्लाह मुसीबत से निजात मिलेगी और हाजत पूरी होगी.

मुश्किलों को दूर करो सुन कर कहानी सैयदा
बीबियों मांगो दुआ देकर सदा-ए-सैयदा
आफ़तें टल जाएंगी नाम से उन बीबियों के
लम्हा-लम्हा देखेंगी आप मौजज़ा सैयदा

दस बीबियों की कहानी
एक शहर में दो भाई रहते थे. बड़ा भाई बहुत अमीर था और छोटा भाई बहुत नादार व मुफ़लिस था. वह अपनी मुफ़लिसी और नादारी से बहुत आज़िज़ आ गया था. वह अपनी बीवी से कहने लगा, यहां कब तक फ़िक्र व फ़ाक़ा की मुसीबत सहें. अब मैं परदेस जाता हूं. शायद मुझको कहीं नौकरी मिल जाए और ये मुसीबत के दिन कट जाएं.

यह कहकर वह शख़्स अपनी बीवी से रुख़्सत होकर रोज़गार की तलाश में परदेस चला गया. अब यहां उसकी बीवी बहुत परेशान थी. दिल में कहने लगी, ऐ पालने वाले ! तू ही रज़्ज़ाक़ है. अब मेरा शौहर भी चला गया. अब मेरा कोई सहारा नहीं रहा, सिवाय तेरी ज़ात पाक के. ये मोमिना जब बहुत मजबूर हो गई, तो अपने शौहर के बड़े भाई के घर गई और अपने सब हालात बयान किए. तमाम हाल सुनकर उस शख़्स ने अपनी बीवी से कहा, ये मेरी भावज आई है. तुम इससे घर का काम कराओ. ये तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की ख़िदमत करेगी. तुम जो कुछ अपने खाने से बचे, इसे दे दिया करो. ग़र्ज़ कि ये मोमिना अपने शौहर के भाई के घर के तमाम काम करती. सारा दिन बच्चों की ख़िदमत करती. उस पर भी अमीर की बीवी उसे ताने देती और अपने आगे का बचा हुआ खाना उस ग़रीब को देती. इसी तरह एक मुद्दत गु़ज़र गई. हर रात ये मुसीबतज़द मोमिना अपने शौहर की वापसी की दुआ मांगती थी. इसी हालत में एक शब ये मोमिना रोते-रोते सो गई. उसने ख़्वाब में देखा कि एक बीबी नक़ाब पोश तशरीफ़ लाईं और फ़रमाया कि ऐ मोमिना तू अपने शौहर के लिए इस तरह परेशान न हो. इंशा अल्लाह तेरा शौहर सही सलामत तुझसे आकर मिलेगा. तू जुमेरात के दिन दस बीबियों की कहानी सुन, और जब तेरा शौहर आ जाए, तो मीठी रोटी का मलीदा बनाकर उसके दस लड्डू बनाना और उस पर दस बीबियो की नियाज़ देना.
इस औरत ने सवाल किया कि आप कौन हैं और आपका नाम क्या है और इन दस बीबियों के नाम क्या हैं, जिनकी नियाज़ दिलाऊं.

तब जनाब सैयदा ने फ़रमाया, मेरा नाम सैयदा ताहिरा फ़ातिमा ज़ोहरा दुख़्तर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है और नौ बीबियों के नाम हैं-
हज़रत मरियम (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत सायरा (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत आसिया (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत हाजरा (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत ज़ैनब (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत फ़ातिमा सोग़रा (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत फ़ातिमा कूबरा (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत उम्मे कुलसुम (रज़ि अल्लाहु अन्हा)
हज़रत सकीना (रज़ि अल्लाहु अन्हा). इन्हें ज़िन्दगी बहुत मुसीबतें सहनी पड़ीं और इन बीबियों ने सब्र किया. जो शख़्स इनकी तुफ़ैल में अल्लाह से जो भी हाजत तलब करेगा, ख़ुदावंद आलम उसकी हाजत पूरी करेगा.

कहानी यह है. एक दिन जनाब अमीरुल मोमेनीन ने हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपना मेहमान किया. उस दिन घर में फ़ाक़ा था. आप थोड़ा-सा जौ का आटा कहीं से क़र्ज़ लाए और जनाब सैयदा को देकर कहा कि आज रसूले-ख़ुदा मेरे मेहमान हैं. जनाब सैयदा ने उसकी छह रोटियां पकाईं. मग़रिब की नमाज़ के बाद हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तशरीफ़ लाए और दस्तरख़्वान पर बैठे. जनाब सैयदा ने एक रोटी हज़रत फ़ज़ा को दी और पांच पंजतन पाक ने खाईं. जब हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जाने लगे, तो जनाब सैयदा ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अर्ज़ किया कि मुझे भी सरफ़राज़ फ़रमाएं. हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दावत क़ुबूल कर ली. इसी तरह नवासों हज़रत इमाम हसन (अलैहिस्सलाम) और हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) ने भी अपने नाना हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को दावत दी. शेरे-ख़ुदा हज़रत अली हर रोज़ सामान क़र्ज़ पर लाते. जनाब सैयदा अनाज पीसतीं और उसकी छह रोटियां पकातीं. एक रोटी हज़रत फ़ज़ा को देतीं और पांच रोटियां पंजतन पाक नोश फ़रमाते.

हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की दावत के बाद जब हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जाने लगे, तो उन्होंने देखा कि हज़रत फ़ज़ा दरवाज़े पर खड़ी हैं. आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दरयाफ़्त किया कि फ़ज़ा कुछ कहना चाहती हो. इस पर हज़रत फ़ज़ा ने कहा कि कनीज़ इस क़ाबिल नहीं कि आपको दावत दे, लेकिन मैं भी उम्मीदवार हूं. आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दावत क़ुबूल कर ली.
अगले दिन शाम को मग़रिब की नमाज़ के बाद हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जनाब सैयदा के घर तशरीफ़ लाए. सबने उठकर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इस्तक़बाल किया. हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि आज फ़ज़ा का मेहमान हूं.
हज़रत फ़ज़ा ने किसी से इसका ज़िक्र नहीं किया था. घर में फ़ाक़ा था. हज़रत अली ने कहा कि पहले से कह देतीं, तो सामान मुहैया करा देता. हज़रत फ़ज़ा ने कहा कि आप परेशान न हों, अल्लाह मुसब्बेबल असबाब है. हज़रत फ़ज़ा एक गोशे में गईं और सजदे में गिर गईं. वह अल्लाह से दुआ करने लगीं, या क़ाज़ी अलहाजात, इस तंग दस्ती और नादारी में तू आलम दाना है. तेरे महबूब को मेहमान किया है. तुझे वास्ता आल मुहम्मद का मुझे शर्मिन्दा न करना. उन्होंने सजदे से सर उठाया, तो क्या देखती हैं कि जन्नत की हूरें खानों का तबाक़ लिए खड़ी हैं. हज़रत फ़ज़ा ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सामने खाने का तबाक़ रखा और सबने मिलकर खाना खाया. आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि ये खाना कहां से आया. गोया आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पहले से ही जानते थे. हज़रत जिब्राईल रास्ते में ही आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बता गए थे. लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को ये ज़ाहिर करना था कि हमारे घर की कनीज़ें भी अल्लाह को ऐसी प्यारी हैं कि उनके सवाल को भी अल्लाह रद्द नहीं करता.
अल्लाह के खज़ाने में किसी चीज़ की कमी नहीं है. अल्लाह पर यक़ीन रखने से सबकुछ मिल जाता है.

जब मोमिना ख़्वाब से बेदार हुई, तो वह दिन जुमेरात का था. वह अपने मुहल्ले में गई और कहने लगी कि मैंने ऐसा ख़्वाब में देखा है. तुम लोग पास बैठकर जनाब सैयदा की कहानी सुन लिया करो. मुहल्ले की औरतें उसके पास आकर जमा हो गईं. उस मोमिना ने दस बीबियों की कहानी पढ़नी शुरू की. नौ दिन गुज़र गए. जब दसवां दिन आया, तो मोमिना क्या देखती है कि उसका शौहर सही सलामत माल व ज़र के साथ उसके दरवाज़े पर खड़ा है.

वह बहुत ख़ुश हुई और फ़ौरन ग़ुस्ल कर मीठी रोटी का मलीदा बनाया और उसके दस लड्डू बनाकर दस बीबियों की नियाज़ दिलवाई. उसने नियाज़ के लड्डू तक़सीम किए. सबने बड़े ऐहतराम से लड्डू लिए. उसके बाद मोमिना एक लड्डू लेकर अपने शौहर की भावज के पास गई. उस मग़रूर औरत ने ये कहकर लड्डू वापस कर दिया कि हम ऐसी ईंट-पत्थर की चीज़ें नहीं खाते. हमारे घर से ये लड्डू ले जाओ. वह लड्डू वापस ले आई और लड्डू खाकर अल्लाह का शुक्र अदा किया.

अब इस मग़रूर औरत का हाल सुनिए. रात को वह औरत सो गई. सुबह को क्या देखती है कि उसके बच्चे मर गए और सब सामान ग़ायब हो गया. ये देखकर उसके हवास जाते रहे. दोनों मियां-बीवी रोने लगे. जब कई वक़्त गुज़र गए, तो भूख से उनका बुरा हाल हो गया. घर में गेहूं की भूसी मिली. उस औरत ने सोचा कि इसे पकाकर खा लें. जैसे ही उसने भूसी को हाथ लगाया, उसमें बराबर के कीड़े नज़र आने लगे. जब उसके शौहर ने ये माजरा देखा, तो कहने लगा कि मेरी बहन के घर चलो, वहां खाना मिल जाएगा. घर बंद करके दोनों मियां-बीवी पैदल ही चल पड़े. चलते-चलते उनके पैरों में छाले पड़ गए. रास्ते में उन्हें चने का हराभरा खेत नज़र आया. शौहर ने अपनी बीवी से कहा कि तुम यहां बैठ जाओ, मैं चने की कुछ बालियां तोड़ लाऊं, ताकि उनको खाकर ताक़त आ जाए. ये कहकर वह बहुत-सी चने की बालियां तोड़ लाया. मगर जैसे ही उसकी बीवी ने चने की बालियों को हाथ लगाया, वे सूखकर घास बन गईं. दोनों घास को फेंक कर आगे चल पड़े. कुछ दूर चलने के बाद उन्हें रास्ते में बहुत बड़ा गन्ने का खेत नज़र आया. मियां-बीवी दोनों ही भूख और प्यास से बेताब थे. गन्ने को देखकर वे बेक़रार हो गए. शौहर बहुत से गन्ने तोड़ लाया और बीवी के हाथ में दिए. बीवी का हाथ लगते ही गन्ने भी घास बन गए. वे दोनों बहुत घबरा गए और घास को फेंक कर आगे चल दिए.

कुछ वक़्त बाद ये शख़्स बीवी के साथ अपनी बहन के घर पहुंच गया. उसकी बहन ने उनके लिए बिछौना बिछाया. जब दोनों ने आराम कर लिया, तो उसकी बहन ने उन्हें लाकर खाना दिया. ये लोग कई दिन के भूखे थे. खाना देखकर बहुत ख़ुश हुए. जैसे ही उसकी बीवी ने रोटी का टुकड़ा तोड़ा, तो क्या देखती है कि खाने में से सख़्त बदबू आ रही है. खाना सड़ गया है. ये दोनों अपना सर पकड़ कर बैठ गए और कहने लगे कि अल्लाह हम कब तक भूखे-प्यासे रहेंगे. भूख से जान निकले जा रही है. उन्होंने खाने को दफ़न कर दिया. रात जिस तरह गुज़री, उन्होंने गुज़ारी. सुबह हुई, तो शौहर ने कहा कि यहां का बादशाह मेरा दोस्त है. उसके पास चलें, देखें इस मुसीबत के आलम में वह हमारी क्या मदद करता है.

दोनों बादशाह के पास गए. जब वे बादशाह के हुज़ूर में पहुंचे, तो बादशाह ने उन्हें पहचान लिया. उन्हें अलग कमरा दिया गया. बादशाह ने उनसे कहा कि तुम दोनों ग़ुस्ल करके आराम करो. बादशाह ने हुक्म दिया कि हमारे मेहमानों को सात रंग का खाना भेजो. बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ उनके लिए सात रंग का खाना लाया गया. दोनों खाना देखकर बहुत ख़ुश हुए और दस्तरख़्वान पर आकर बैठ गए. वह औरत जिस खाने को हाथ लगाती, वह खाना सड़ जाता. ग़र्ज़ कि तमाम खाना सड़ गया और उसमें कीड़े नज़र आने लगे. उसका शौहर हैरान हो गया कि ये क्या माजरा है. अगर हम बादशाह से शिकायत करेंगे, तो बादशाह नाराज़ होगा कि ताज़ा खाना भेजा और तुम हमको बदनाम करते हो. वह बहुत घबराया और बीवी से कहने लगा कि अब मैं क्या करूं. इतना बहुत सा खाना सड़ गया. बादशाह कहेगा कि इन लोगों ने जादू कर दिया है.

अलग़र्ज़ दोनों खाना लेकर बाहर आए और ज़मीन में दफ़न कर दिया. शौहर बहुत हैरान था कि ये सब क्या हो रहा है. औरत भी बहुत घबराई हुई थी. वह सेहन में आकर बैठ गई. उसने देखा कि बादशाह की लड़की ग़ुस्ल के लिए जा रही है. बादशाह की बीवी ने कहा कि वह भी ग़ुस्ल करेगी. ग़र्ज़ ये है कि दोनों ग़ुस्ल के लिए जाने लगीं. उन दोनों ने अपने चंदन हार उतार के खूंटी पर टांग दिए. ज्यूं ही उन्होंने हार टांगे, फ़ौरन खूंटी हार निग़ल गई. ये माजरा देखकर उन्हें बेहद हैरानी हुई. वह औरत घबरा कर अपने शौहर के पास आई और कहने लगी कि अब ख़ुदा ख़ैर करे. उसके शौहर ने पूछा कि क्या हुआ? तब उसने चंदन हार का सारा वाक़िया सुनाया और कहा कि अब यहां से चलो, कहीं बादशाह इस इल्ज़ाम में हमें जेल भेज दे या क़त्ल करा दे. दोनों मियां-बीवी बग़ैर इत्तला किए वहां से चल दिए. चलते-चलते वे एक दरिया के किनारे पहुंचे. दोनों वहां जाकर बैठ गए. शौहर बीवी से कहने लगा कि नहीं मालूम हमसे ऐसी क्या ख़ता हुई है, जो हम पर ऐसा अज़ाब नाज़िल हुआ है.
यह सुनकर बीवी कहने लगी कि जब तुम्हारा भाई मुलाज़िमत के लिए परदेस गया था और उसका कहीं कोई अता-पता नहीं था. तब तुम्हारी भावज बहुत परेशान रहती थी. उस वक़्त उसने ख़्वाब में देखा था कि एक नक़ाब पोश बीबी तशरीफ़ लाई और उन्होंने फ़रमाया कि तू दस बीबियों की कहानी सुन ले, जब तेरा शौहर आ जाए, तो दस बीबियों की नियाज़ दिलाना. जब तुम्हारा भाई आ गया, तो तुम्हारी भावज ने मीठी रोटी का मलीदा उसके दस लड्डू बनाए और दस बीबियों की नियाज़ दिलाई. तुम्हारी भावज ने नियाज़ के लड्डू सबको तक़सीम किए और एक लड्डू मेरे लिए भी लेकर आई. लेकिन मैंने वह लड्डू ये कहकर लेने से मना कर दिया कि मैं ऐसी ईंट-पत्थर की चीज़ें खाने वाली नहीं हूं. इस पर तुम्हारी भावज लड्डू वापस ले गई. ये गुनाह मुझसे ज़रूर हुआ है और तब से ही यह मुसीबत हम पर नाज़िल हुई है.

शौहर ने कहा कि ऐ कमबख़्त ! तूने ऐसे ग़ुरूर और तकब्बुर के अल्फ़ाज़ कहे. तू जल्दी से तौबा कर और मुआफ़ी मांग, ताकि हमको इस मुसीबत से निजात मिल सके. उस औरत ने ग़ुस्ल किया, नमाज़ पढ़ी और रो-रोकर अपनी ग़लती की मुआफ़ी मांगी और दुआ की कि ऐ बिन्ते रसूल ! इस मुसीबत के आलम में मेरी मदद कीजिए. इसके बाद उसने नहर से रेत निकाली और उसके दस लड्डू बनाकर दस बीबियों की नियाज़ दिलाई. अल्लाह के करम और पाक बीबियों की तुफ़ैल में वे लड्डू मोती चूर के हो गए. उन्होंने लड्डू खाए, पाने पिया और अल्लाह का शुक्र अदा किया.

शौहर ने कहा कि अब घर चलो, हमारी ख़ता मुआफ़ हो गई. अब वे घर आकर क्या देखते हैं कि घर असली हालत में है. ग़ल्ला वग़ैरह जिस तरह भरा हुआ, था वैसा ही भरा हुआ है. नौकर घर के काम में मशग़ूल हैं. बच्चे ज़िन्दा हो गए. वे क़ुरान की तिलावत कर रहे हैं. मां-बाप को देखकर बच्चे बहुत ख़ुश हुए.

ऐ मेरी पाक बीबियों ! जिस तरह आपने इस औरत की ख़ता मुआफ़ की, उसी तरह हम सबकी ख़तायें मुआफ़ हों और दिल की मुरादें पूरी हों.
आमीन
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बाज़ार में मिलने वाली दस बीबियों की कहानी की किताबों में बहुत सी ग़लतियां हैं. इसलिए हमने  इसे दुरुस्त करके यहां पेश किया है.
-फ़िरदौस ख़ान

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अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
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