रजब की फ़ज़ीलत...
Author: Admin Labels:: इबादत, इस्लाम, रजब की फ़ज़ीलत
माहे-रजब में दिन में रोज़ा रखने और रात में इबादत करने का सवाब सौ साल के रोज़े रखने के बराबर होता है... हो सके, तो इबादत करें... पता नहीं अगली मर्तबा ये मौक़ा मिले या न मिले...
अल्लाह हम सबको राहे-हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे... आमीन
रजब इस्लामी साल का सातवां महीना है. यह बड़ा अज़मत वाला महीना है और इसमें नेकियों का सवाब दोगुना हो जाता है. रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रजब अल्लाह का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है. इस महीने में अल्लाह तआला अपने बंदों पर बेशुमार रहमते और मग़फ़िरत की बारिश करता है. इस माह में बंदों की इबादतें और दुआएं क़ुबूल की जाती हैं. रजब को ताजीम यानी आदर का माह कहा जाता है. इस महीने की ताज़ीम करे, गुनाहों से दूर रहें, तौबा अस्तग़फ़ार करते रहें, अल्लाह तआला की इबादत करें, सदक़ा और ख़ैरात ज़्यादा ज़्यादा करें.
हज़रत सैयदुना अल्लामा सफ़्फ़ुरी रहमतुल्लाह अलैह रमाते हैं- रजब-उल-मुरज्जब बीज बोने का, शाबान-उल-मुअज़्ज़म आब-पाशी (यानि पानी देने) का और रमज़ान-उल-मुबारक फ़सल काटने का महीना है. लिहाज़ा जो रजब-उल-मुरज्जब में इबादत का बीज नहीं बोता और शाबान-उल-मुअज़्ज़म में आंसुओं से सैराब नहीं करता, वह रमजान-उल-मुबारक में फ़सले-रहेमत क्यूं कर काट सकेगा? मज़ीद फ़रमाते हैं : रजब-उल-मुरज्जब जिस्म को, शाबान-उल-मुअज़्ज़म दिल को और रमज़ान-उल-मुबारक रूह को पाक करता है. (Nuzhat-ul-Majalis, jild 1, safha 209)
अल्लाह तआला के नज़दीक 4 महीने खुसूसियात के साथ हुरमतवाले हैं. जुल कदा, जुल हिज्जाह, मुहर्रम और रजब.
हज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने माहे-हराम (यानी हुरमतवाले महीने में) में तीन दिन जुमेरात, जुमा और हफ़्ता (यानि सनीचर) का रोज़ा रखा, उसके लिए दो साल की इबादत का सवाब लिखा जाएगा. (Al Mu’jam-ul-Awsat lit-Tabrani, jild 1, safha 485, Hadees 1789)
हज़रत सैयदुना अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जन्नत में एक नहर है, जिसे रजब कहा जाता है, जो दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा मीठी है. जो कोई रजब का एक रोज़ा रखे, तो अल्लाह तआला उसे इस नहर से सैराब करेगा. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 367, Hadees 3800)
ताबई बुज़ुर्ग हज़रत सैयदुना अबु क़िलाला रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं- रजब के रोज़ादारों के लिए जन्नत में एक महल है. (Shu’ab ul-Imaan, jild 3, safha 368, Hadees 3802)
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने भी रजब का रोज़ा रखा
हज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने रजब का एक रोज़ा रखा, तो वह एक साल के रोज़ों की तरह होगा. जिसने सात रोज़े रखे, उसपर जहन्नुमम के सातों दरवाज़े बंद कर दिए जाएंगे. जिसने आठ रोज़े रखे, उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाएंगे. जिसने दस रोज़े रखे, वह अल्लाह से जो कुछ मांगेगा अल्लाह तआला उसे अता फ़रमाएगा. और जिसने 15 रोज़े रखे, तो आसमान से एक मुनादी निदा (यानी ऐलान करने वाला ऐलान) करता है कि तेरे पिछले गुनाह बख़्श दिए गए, तू अज़ सर-ए-नौ अमल शुरू करके तेरी बुराइयां नेकी से बदल दी गईं. और जो ज़्यादा करे, तो अल्लाह उसे ज़्यादा दे. और रजब में नूह अलैहि सलाम कश्ती में सवार हुए, तो ख़ुद भी रोज़ा रखा और हमराहियों को भी रोज़े का हुक्म दिया. उनकी कश्ती 10 मुहर्रम तक 6 माह बरसरे-सफ़र रही. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 368, Hadees 3801)
परहेज़गारी से एक रोज़ा रखने की फ़ज़ीलत
हज़रत शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह नक़ल करते हैं कि सुल्ताने-मदीना सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- माहे रजब हुरमत वाले महीनों में से है और छठे आसमान के दरवाज़े पर इस महीने के दिन लिखे हुए हैं. अगर कोई शख़्स रजब में एक रोज़ा रखे और उसे परहेज़गारी से पूरा करे, तो वह दरवाज़ा और वह (रोज़ेवाला) दिन उस बंदे के लिए अल्लाह तआला से मग़फ़िरत तलब करेंगे और अर्ज़ करेंगे- या अल्लाह तआला इस बंदे को बख़्श दे और अगर वह शख़्स बग़ैर परहेज़गारी के रोज़ा गुज़ारता है, तो फिर वह दरवाज़ा और दिन उसकी बख़्शीश की दरख़्वास्त नहीं करेंगे और उस शख़्स से कहते हैं- ऐ बंदे तेरे नफ़्स ने तुझे धोका दिया. (Ma-Sabata bis-Sunnah, safha 234, fazail Shahr-e-Rajab-lil Khallal, safha 3-4)
रसूले-अकरम ने फ़रमाया है कि रजब का महीना ख़ुदा के नज़दीक अज़मत वाला महीना है. इस माह में जंग करना हराम है. रिवायत है कि रजब में एक रोज़ा रखने वाले को ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल होती है . ख़ुदा का ग़ज़ब उससे दूर हो जाता है और जहन्नुम के दरवाज़े में एक दरवाज़ा उसके लिए बंद हो जाता है.
इमाम मूसा काजिम (अस ) फ़रमाते हैं कि रजब माह में एक रोज़ा रखने से जहन्नुम की आग एक साल की दूरी तक हो जाती है. जो इस माह में तीन रोज़े रखे, तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है .
इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम) से रवायत है कि रसूले-अकरम ने फ़रमाया कि रजब मेरी उम्मत के लिए अस्तग़फ़ार का महीना है. इसलिए इस माह ख़ुदा से ज़्यादा से ज़्यादा मग़फ़िरत चाहो. ख़ुदा बड़ा मेहरबान है.
रसूले-अकरम फ़रमाते हैं कि रजब को असब भी कहते हैं, क्योंकि इस माह में ख़ुदा कि रहमत बहुत ज़्यादा बरसती है. इसलिए इस माह कसरत से अस्तग़फ़ार भेजो. जो इस माह के आख़िर में एक रोज़ा रखेगा, ख़ुदा उसको मौत की सख़्तियों, मौत के बाद की हौल्नकी और क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रखेगा.
जो इस माह के आख़िर में दो रोज़े रखेगा, वह पुले-सरात से आसानी से गुज़र जाएगा.
जो तीन रोज़े रखेगा, उसे क़यामत की सख़्तियों से महफूज़ रखा जाएगा और उसको जहन्नुम की आज़ादी का परवाना अता होगा.
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अल्लाह हम सबको राहे-हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे... आमीन
रजब इस्लामी साल का सातवां महीना है. यह बड़ा अज़मत वाला महीना है और इसमें नेकियों का सवाब दोगुना हो जाता है. रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रजब अल्लाह का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है. इस महीने में अल्लाह तआला अपने बंदों पर बेशुमार रहमते और मग़फ़िरत की बारिश करता है. इस माह में बंदों की इबादतें और दुआएं क़ुबूल की जाती हैं. रजब को ताजीम यानी आदर का माह कहा जाता है. इस महीने की ताज़ीम करे, गुनाहों से दूर रहें, तौबा अस्तग़फ़ार करते रहें, अल्लाह तआला की इबादत करें, सदक़ा और ख़ैरात ज़्यादा ज़्यादा करें.
हज़रत सैयदुना अल्लामा सफ़्फ़ुरी रहमतुल्लाह अलैह रमाते हैं- रजब-उल-मुरज्जब बीज बोने का, शाबान-उल-मुअज़्ज़म आब-पाशी (यानि पानी देने) का और रमज़ान-उल-मुबारक फ़सल काटने का महीना है. लिहाज़ा जो रजब-उल-मुरज्जब में इबादत का बीज नहीं बोता और शाबान-उल-मुअज़्ज़म में आंसुओं से सैराब नहीं करता, वह रमजान-उल-मुबारक में फ़सले-रहेमत क्यूं कर काट सकेगा? मज़ीद फ़रमाते हैं : रजब-उल-मुरज्जब जिस्म को, शाबान-उल-मुअज़्ज़म दिल को और रमज़ान-उल-मुबारक रूह को पाक करता है. (Nuzhat-ul-Majalis, jild 1, safha 209)
अल्लाह तआला के नज़दीक 4 महीने खुसूसियात के साथ हुरमतवाले हैं. जुल कदा, जुल हिज्जाह, मुहर्रम और रजब.
हज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने माहे-हराम (यानी हुरमतवाले महीने में) में तीन दिन जुमेरात, जुमा और हफ़्ता (यानि सनीचर) का रोज़ा रखा, उसके लिए दो साल की इबादत का सवाब लिखा जाएगा. (Al Mu’jam-ul-Awsat lit-Tabrani, jild 1, safha 485, Hadees 1789)
हज़रत सैयदुना अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जन्नत में एक नहर है, जिसे रजब कहा जाता है, जो दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा मीठी है. जो कोई रजब का एक रोज़ा रखे, तो अल्लाह तआला उसे इस नहर से सैराब करेगा. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 367, Hadees 3800)
ताबई बुज़ुर्ग हज़रत सैयदुना अबु क़िलाला रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं- रजब के रोज़ादारों के लिए जन्नत में एक महल है. (Shu’ab ul-Imaan, jild 3, safha 368, Hadees 3802)
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने भी रजब का रोज़ा रखा
हज़रत सैयदुना अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने रजब का एक रोज़ा रखा, तो वह एक साल के रोज़ों की तरह होगा. जिसने सात रोज़े रखे, उसपर जहन्नुमम के सातों दरवाज़े बंद कर दिए जाएंगे. जिसने आठ रोज़े रखे, उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाएंगे. जिसने दस रोज़े रखे, वह अल्लाह से जो कुछ मांगेगा अल्लाह तआला उसे अता फ़रमाएगा. और जिसने 15 रोज़े रखे, तो आसमान से एक मुनादी निदा (यानी ऐलान करने वाला ऐलान) करता है कि तेरे पिछले गुनाह बख़्श दिए गए, तू अज़ सर-ए-नौ अमल शुरू करके तेरी बुराइयां नेकी से बदल दी गईं. और जो ज़्यादा करे, तो अल्लाह उसे ज़्यादा दे. और रजब में नूह अलैहि सलाम कश्ती में सवार हुए, तो ख़ुद भी रोज़ा रखा और हमराहियों को भी रोज़े का हुक्म दिया. उनकी कश्ती 10 मुहर्रम तक 6 माह बरसरे-सफ़र रही. (Shu’ab-ul-Iman, jild 3, safha 368, Hadees 3801)
परहेज़गारी से एक रोज़ा रखने की फ़ज़ीलत
हज़रत शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह नक़ल करते हैं कि सुल्ताने-मदीना सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- माहे रजब हुरमत वाले महीनों में से है और छठे आसमान के दरवाज़े पर इस महीने के दिन लिखे हुए हैं. अगर कोई शख़्स रजब में एक रोज़ा रखे और उसे परहेज़गारी से पूरा करे, तो वह दरवाज़ा और वह (रोज़ेवाला) दिन उस बंदे के लिए अल्लाह तआला से मग़फ़िरत तलब करेंगे और अर्ज़ करेंगे- या अल्लाह तआला इस बंदे को बख़्श दे और अगर वह शख़्स बग़ैर परहेज़गारी के रोज़ा गुज़ारता है, तो फिर वह दरवाज़ा और दिन उसकी बख़्शीश की दरख़्वास्त नहीं करेंगे और उस शख़्स से कहते हैं- ऐ बंदे तेरे नफ़्स ने तुझे धोका दिया. (Ma-Sabata bis-Sunnah, safha 234, fazail Shahr-e-Rajab-lil Khallal, safha 3-4)
रसूले-अकरम ने फ़रमाया है कि रजब का महीना ख़ुदा के नज़दीक अज़मत वाला महीना है. इस माह में जंग करना हराम है. रिवायत है कि रजब में एक रोज़ा रखने वाले को ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल होती है . ख़ुदा का ग़ज़ब उससे दूर हो जाता है और जहन्नुम के दरवाज़े में एक दरवाज़ा उसके लिए बंद हो जाता है.
इमाम मूसा काजिम (अस ) फ़रमाते हैं कि रजब माह में एक रोज़ा रखने से जहन्नुम की आग एक साल की दूरी तक हो जाती है. जो इस माह में तीन रोज़े रखे, तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है .
इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम) से रवायत है कि रसूले-अकरम ने फ़रमाया कि रजब मेरी उम्मत के लिए अस्तग़फ़ार का महीना है. इसलिए इस माह ख़ुदा से ज़्यादा से ज़्यादा मग़फ़िरत चाहो. ख़ुदा बड़ा मेहरबान है.
रसूले-अकरम फ़रमाते हैं कि रजब को असब भी कहते हैं, क्योंकि इस माह में ख़ुदा कि रहमत बहुत ज़्यादा बरसती है. इसलिए इस माह कसरत से अस्तग़फ़ार भेजो. जो इस माह के आख़िर में एक रोज़ा रखेगा, ख़ुदा उसको मौत की सख़्तियों, मौत के बाद की हौल्नकी और क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रखेगा.
जो इस माह के आख़िर में दो रोज़े रखेगा, वह पुले-सरात से आसानी से गुज़र जाएगा.
जो तीन रोज़े रखेगा, उसे क़यामत की सख़्तियों से महफूज़ रखा जाएगा और उसको जहन्नुम की आज़ादी का परवाना अता होगा.