आयतुल कुर्सी की फ़ज़ीलत

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* बिस्तर पर लेटते वक़्त आयतुल कुर्सी पढ़ने वाले के साथ अल्लाह पाक की तरफ़ से एक हिफ़ाज़त करने वाला होता है और सुबह होने तक शैतान उसके क़रीब नहीं आता.[बुख़ारी]
* जिस घर में आयतुल कुर्सी पढ़ी जाती है, वहां से शैतान और हर नुक़सान पहुंचाने वाली चीज़ दूर हो जाती है. [अहमद]
* सुबह के वक़्त आयतुल कुर्सी पढ़ने वाला शाम तक और शाम के वक़्त आयतुल कुर्सी पढ़ने वाला सुबह तक शैतान से महफ़ूज़ रहता है. [नसाई]
* हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ने वाला जन्नत में जाएगा. [नसाई]
* फ़र्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ने वाला दूसरी नमाज़ तक अल्लाह पाक की हिफ़ाज़त में होता है. [तबरानी]
* आयतुल कुर्सी में इस्म-ए-आज़म है. [हाकिम]
* आयतुल कुर्सी तमाम आयतों की सरदार है. [हाकिम]
* आयतुल कुर्सी क़ुरआन मजीद के एक चौथाई हिस्से के बराबर है. [अहमद]

* घर से निकलते वक़्त पढोगे, तो 70 हज़ार फ़रिश्ते हर तरफ़ से आपकी हिफ़ाज़त करेंगे.
* घर में दाख़िल होते वक़्त पढोगे, तो आपके घर से मोहताजी दूर होगी !
* वुजू के बाद पढोगे, तो आपके 70 दर्जे बुलंद होंगे.

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दरूद-ए- अकसीर-ए-आज़म

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Durood-e-Akseer-e-Azam
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद-ए-अकबर शरीफ़

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Durood-e-Akbar Shareef
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद लखी

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एक बार दरूद लखी पढ़ने का सवाब एक लाख दरूद शरीफ़ के बराबर होता है, इसलिए इसे दरूद लखी कहा जाता है.







Durood-e-Lakhi Shareef
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद तनजीना

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दरूद तनजीना की फ़ज़ीलत

अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन

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दरूद ताज

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दरूद ताज की फ़ज़ीलत
Durood-e-Taj Shareef
अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy yaallah

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दरूद के मसायल

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दरूद का मतलब
अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं. ऐ ईमानवालो ! तुम भी उन पर दरूद व सलाम भेजो.(सूरह अहज़ाब 33/56)

अल्लाह के नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम पर दरूद भेजने का मतलब रहमत नाज़िल करना है और फ़रिश्ते या मुसल्मानों का आप पर दरूद भेजने का मतलब रहमत की दुआ करना हैं.

* हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है कि नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम ने फ़रमाया- तुममे से कोई शख़्स जब तक अपनी नमाज़ की जगह पर जहां उसने नमाज़ पढ़ी है, बैठा रहे और उसका वुज़ु न टूटे तब तक फ़रिश्ते उस पर दरूद भेजते रहते हैं और यूं कहते हैं – ऐ अल्लाह ! इसे बख़्श दे, इस पर रहम फ़रमा. (अबू दाऊद)

हज़रत आयशा रज़ि. से रिवायत है कि नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम ने फ़रमाया – सफ़ के दाईं तरफ़ के लोगों पर अल्लाह रहमत नाज़िल करता है और फ़रिश्ते उसके लिए रहमत की दुआ करते हैं. (अबू दाऊद)

तमाम नबियों पर दरूद भेजने का हुक्म 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि. कहते हैं के नबी के अलावा किसी पर दरूद न भेजो. अलबत्ता मुसलमान मर्दों और औरतों के लिए इस्तिग़फ़ार करो. (इसे काज़ी इस्माईल ने फ़ज़लुस्सलात अलन्नबिय्यि में रिवायत किया है.)
दरूद की फ़ज़ीलत
* हज़रत अनस रज़ि से रिवायत हैं के नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम ने फ़रमाया – जिसने मुझ पर एक बार दरूद भेजा अल्लाह उस पर 10 बार रहमतें नाज़िल करेगा, उसके 10 गुनाह माफ़ करेगा और 10 दर्जे बुलन्द करेगा. (निसाई)

* हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि. से रिवायत है कि नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम ने फ़रमाया – जो मुझ पर कसरत से दरूद भेजता है, क़यामत के दिन वो मेरे सबसे क़रीब होगा. (तिर्मिज़ी)

* हज़रत अबी बिन काअब रज़ि. से रिवायत है कि मैंने नबी सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम से कहा – ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं आप पर कसरत से दरूद भेजता हूं, मै अपनी दुआ में से कितना वक़्त दरूद के लिए छोड़ूं? आपने फ़रमाय – जितना तू चाहे. मैंने कहा- एक चौथाई सही है. आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे, लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे, तो तेरे लिए अच्छा है. मैंने कहा कि आधा वक़्त अगर छोड़ूं. आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे, लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे, तो तेरे लिए अच्छा है. मैंने कहा कि तो तिहाई वक़्त अगर छोडू़ं. आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे, लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे, तो तेरे लिए अच्छा है. मैंने कहा- मैं अपना सारा दुआ का वक़्त दरूद के लिए रख छोड़ता हूं. इस पर आप सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम ने फ़रमाया– ये तेरे सारे दुखों और मुसीबतों के लिए काफ़ी होगा और तेरे गुनाह की माफ़ी का सबब होगा. (तिर्मिज़ी)

अल्लाह हम सबको कसरत से दरूद-ओ-सलाम पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन
Courtesy islam-the-truth

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शिजरा

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फ़िरदौस ख़ान
लोग अकसर शिजरे की बात करते हैं... हमारा ताल्लुक़ फ़लां ख़ानदान से है, उसका फ़लां से है... हम आला ज़ात के हैं और फ़लां कमतर ज़ात का है...
हमारा एक ही जवाब है- हमारा ताल्लुक़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम है, जो जन्नत में रहा करते थे...
हम ही क्या दुनिया के हर इंसान का ताल्लुक़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम है... इसलिए ख़ुद को आला और दूसरे को कमतर समझना अच्छी बात नहीं है...

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कलमा

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मेरे मौला !
पहले ज़ुबां पर
कलमे की  तरह
उसका नाम रहता था...
लेकिन
अब शामो-सहर ज़ुबां पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
कलमा ही रहता है.…
वो इश्क़े-मजाज़ी था
और
ये इश्क़े-हक़ीक़ी है…
-फ़िरदौस ख़ान 

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मेरे मौला

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मेरे मौला
मुझे तेरी दोज़ख़ का ख़ौफ़ नहीं
और ना ही
तेरी जन्नत की कोई ख़्वाहिश है
मैं सिर्फ़ तेरी इबादत ही नहीं करती
तुझसे मुहब्बत भी करती हूं
मुझे फ़िरदौस नहीं, मालिके-फ़िरदौस चाहिए
क्यूंकि
मेरे लिए तू ही काफ़ी है
अल्लाह तू ही तू...
-फ़िरदौस ख़ान

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खाने में नख़रे

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फ़िरदौस ख़ान
हम खाना खाते वक़्त हज़ार नख़रे करते हैं... हमें ये सब्ज़ी पसंद नहीं, हमें वो सब्ज़ी पसंद नहीं... दूध पीने के मामले में भी सौ नख़रे... मां से कितनी ही मिन्नतें करवाने के बाद दूध पीते हैं... अमूमन हर आम घर की ये कहानी है...
लेकिन हम ये नहीं जानते कि इस दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें न तो पेट भरने के लिए रोटी मिलती है और न ही पीने के लिए साफ़ पानी... करोड़ों लोग हर रोज़ भूखे पेट सोते हैं... दुनिया भर में लोग भूख से मर रहे हैं...
लाखों बच्चों को दूध तो क्या, पीने के लिए पेटभर उबले चावल का पानी तक नसीब नहीं होता... और भूख से बेहाल बच्चे दम तोड़ देते हैं...
अल्लाह ने जो दिया है, उसका शुक्र अदा करके उसे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेना चाहिए... क्या हुआ अगर एक दिन घर में हमारी पसंद की सब्ज़ी नहीं बनी है तो...

तस्वीर गूगल से साभार

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ग़ुरूर

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फ़िरदौस ख़ान
कोई बड़े बंगले में रहता है, कोई छोटे से मकान में... कोई मिट्टी के कच्चे घर में, कोई छप्पर तले, कोई झुग्गी-झोपड़ी में, किसी को अपनी एक अदद छत तक नसीब नहीं है...
तो क्या बड़े बंगले में रहने वाले को ख़ुद पर ग़ुरूर होना चाहिए... ? क्या उसे नाज़ करने का कोई हक़ नहीं, जिसके पास रहने के लिए बड़ा बंगला नहीं है...
आख़िर में सभी को ख़ाक में ही मिल जाना है... फिर ग़ुरूर किस बात का... और क्यों...? 

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फ़िज़ूलख़र्ची

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खाओ और पियो और फ़िज़ूलख़र्ची न करो, क्योंकि अल्लाह फ़िज़ूलख़र्ची करने वालों को दोस्त नहीं रखता (सूरह आराफ़ 31)

जहां एक तरफ़ करोड़ों लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, वहीं इतने ही लोग ज़रूरत से ज़्यादा पानी का इस्तेमाल करके इसे बर्बाद करने पर आमादा हैं. जब हम पानी पैदा नहीं कर सकते, तो फिर हमें इसे बर्बाद करने का क्या हक़ है? हमें यह समझना होगा कि पानी पर सबका हक़ है. अगर हम किफ़ायत से पानी का इस्तेमाल करें, तो उस बचे पानी से किसी और का गला तर हो सकता है. पानी ही हर बूंद क़ीमती है, इसलिए पानी फ़िज़ूल न बहाएं... उन लोगों के बारे में सोचें, जिन्हें पीने तक के लिए साफ़ पानी मयस्सर नहीं.
फ़िरदौस ख़ान
तस्वीर गूगल से साभार

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सजदा...

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मेरे मौला
मेरा एक सजदा
तो ऐसा हो
जो तुझे पसंद आ जाए...
-फ़िरदौस ख़ान 

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HOT

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एक बाअख़्लाक माशरे (सभ्य समाज) में जो चीज़ें वाहियात मानी जाती हैं... आज वही फ़ैशन बन रही हैं... एक लफ़्ज़ है HOT... आज इसका इस्तेमाल तारीफ़ के लिए ख़ूब किया जाता है... लानत है ऐसी तारीफ़ पर...
फ़ेसबुक पर HOT पेज ख़ूब पसंद किए जाते हैं... हैरत तो इस बात की होती है कि ख़ुद को मज़हबी बताने वाले लोग जहां कवर पेज पर मज़हबी तस्वीर लगाते हैं, स्टेटस में मज़हबी बातें लिखते हैं, लेकिन पसंद उनकी भी यही HOT पेज होते हैं...
भाइयो ! HOT तो जहन्नुम भी है... जाना चाहोगे... नहीं न...

दुख होता है ये देखकर कि ख़ुद को मुसलमान कहने वाले इस मामले में सबसे आगे रहते हैं... भाइयों अल्लाह के लिए, उसके प्यारे नबी हज़रत मुहम्‍मद (सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम)के लिए अपने दीन का कुछ तो पास रखें...

Allah humma ajirni minan naar
Ameen

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खाना

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हम खाना खाते वक़्त हज़ार नख़रे करते हैं... हमें ये सब्ज़ी पसंद नहीं, हमें वो सब्ज़ी पसंद नहीं... दूध पीने के मामले में भी सौ नख़रे... मां से कितनी ही मिन्नतें करवाने के बाद दूध पीते हैं... अमूमन हर आम घर की ये कहानी है...
लेकिन हम ये नहीं जानते कि इस दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें न तो पेट भरने के लिए रोटी मिलती है और न ही पीने के लिए साफ़ पानी... करोड़ों लोग हर रोज़ भूखे पेट सोते हैं... दुनिया भर में लोग भूख से मर रहे हैं...
लाखों बच्चों को दूध तो क्या, पीने के लिए पेटभर उबले चावल का पानी तक नसीब नहीं होता... और भूख से बेहाल बच्चे दम तोड़ देते हैं...
अल्लाह ने जो दिया है, उसका शुक्र अदा करके उसे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेना चाहिए... क्या हुआ अगर एक दिन घर में हमारी पसंद की सब्ज़ी नहीं बनी है तो...
(Firdaus Diary)

तस्वीर गूगल से साभार

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मरने के बाद भी सवाब का सिलसिला जारी रखें

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प्यारे नबी हज़रत मुहम्‍मद (सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम) ने फ़रमाया ” कि जो शख्स अल्लाह की रज़ा के लिए मस्जिद की तामीर करता है, अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त उसके बदले में उस शख़्स को जन्नत में उसकी पसंद का घर अता फ़रमाएंगे

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सदक़ा...

Author: फ़िरदौस ख़ान Labels:: , , ,


सिर्फ़ रुपये-पैसे देना ही सदक़ा नहीं हुआ करता. अल्लाह को ख़ुश करने का हर अमल सदक़ा है. हर वो काम सदक़ा है, जिससे दूसरों का भला हो. सदक़े में बहुत-सी चीज़ें शामिल हैं.
प्यारे नबी हज़रत मुहम्‍मद (सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम) ने फ़रमाया-
मोमिन का हर अच्छा अमल सदक़ा है. (बुख़ारी)
आपने फ़रमाया-
* लोगों के दरमियान इंसाफ़ करना सदक़ा है, किसी को जानवर पर चढ़ने में मदद करना सदक़ा है. किसी का सामान उठा * देना सदक़ा है, अच्छी बात कहना सदक़ा है, नमाज़ की ओर क़दम बढ़ाना सदक़ा है, रास्ते में से नुक़सादेह चीज़ों को हटाना सदक़ा (बुख़ारी)
* शौहर का अपनी बीवी को घर के कामकाज में मदद करना भी सदक़े में शुमार होगा.
* अपने मोमिन भाई कि ओर देखकर मुस्कराना भी सदक़ा है ( तिरमिजि)

प्यारे नबी हज़रत मुहम्‍मद (सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम) ने फ़रमाया-  क़यामत के दिन मोमिन के सदक़ात उसके लिए छांव बनेंगे (तिरमिजी)
सलफ़ सालेहीन ने कहा-
* सदक़ा अल्लाह के गु़स्से को ठंडा करता है
* सदक़ा गुनाहों का कफ़्फ़ारा है
* सदक़ा तकलीफ़-मुसीबत दुर करता है
* सदक़ा हिदायत मिलने या हिदायत में इज़ाफ़ा होने का सबब है

यानी हर नेक काम सदक़ा है... किसी को दुआ देना सदक़ा है. इसी तरह इल्म सिखाना भी सदक़ा है.
किसी ज़रूरतमंद की मदद करना भी सदक़ा ही है.
किसी को अच्छा मशवरा देना भी सदक़ा है
किसी को अपना वक़्त देना भी सदक़ा है.
किसी को तरबियत देना भी सदक़ा है.
मुश्किल वक़्त में हौसला या तसल्ली देना भी सदक़ा है.
नेकी की राह दिखाना भी सदक़ा है.
बुराई से रोकना भी सदक़ा है.
किसी भटके हुए को रास्ता बताना भी सदक़ा है.
किसी प्यासे को पानी पिलाना भी सदक़ा है.
किसी भूखे को खाना खिलाना भी सदक़ा है.
परिन्दों के लिए दाना-पानी रखना भी सदक़ा है.
नरमी से बात करना भी सदक़ा है.
माफ़ करना भी सदक़ा है.
किसी की ख़ुशी में शामिल होना भी सदक़ा है.
बीमार की तीमारदारी करना भी सदक़ा है.
बीमार की ख़ैरियत पूछना भी सदक़ा है.
मुस्कराहट से मिलना भी सदक़ा है.

आप सबसे ग़ुज़ारिश है कि राहे-हक़ की हमारी कोई भी तहरीर आपको अच्छी लगे, तो उसे दूसरों तक ज़रूर पहुंचाएं... हो सकता है कि हमारी और आपकी कोशिश से किसी का भला हो जाए.
-फ़िरदौस ख़ान


तस्वीर गूगल से साभार

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अंगदान

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फ़िरदौस ख़ान
एक मुसलमान शख़्स की दोनों किडनियां ख़राब हो चुकी हैं... उसका भाई उसे अपनी एक किडनी देना चाहता है, ताकि उसकी जान बचाई जा सके...
मज़हबी लोगों का कहना है कि इस्लाम अंगदान की इजाज़त नहीं देता... क्या उस शख़्स को मौत के मुंह में जाते हुए देखना सही है...?
बीबीसी के मुताबिक़ ब्रिटेन में पिछले साल किडनी ट्रांसप्लांट का इंतज़ार कर रहे एशियाई मूल के 70 मरीज़ों की मौत हो गई. इसकी एक वजह ये है कि कई मुसलमानों को लगता है कि अंगदान इस्लाम के ख़िलाफ़ है. लेकिन ब्रिटेन में एक मुहिम चलाकर बताया जा रहा है कि अगर किसी की ज़िन्दगी बचाने के लिए ऐसा करना हो, तो इस्लाम में उसकी इजाज़त है.

Organ Donation Is A Noble Act

तस्वीर गूगल से साभार

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ज़कात

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ज़कात इस्लाम का तीसरा स्तम्भ है, उसके महत्व के कारण अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में बहुत से स्थानों पर उसका और नमाज़ का एक साथ उल्लेख किया है, यह कुछ निर्धारित शर्तों के साथ मालदारों की सम्पतियों में एक अनिवार्य अधिकार है, इसे कुछ निर्धारित लोगों पर निर्धारित समय में वितरण किया जाता है।
ज़कात की वैधता की हिकमत
इस्लाम में ज़कात के वैध किए जाने की अनेक हिकमतें और लाभ हैं, जिनमें से कुछ यह हैं :
(1)- मोमिन के हृदय को गुनाहों और नाफरमानियों के प्रभाव और दिलों पर उसके दुष्ट परिणामों से पवित्र करना, और उसकी आत्मा को बखीली और कंजूसी की बुरार्इ और उन पर निष्कर्षित होने वाले बुरे नतार्इज से पाक और शुद्ध करना, अल्लाह तआला का फरमान है :

 (  103  التوبة), خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِمْ بِهَا
उनके मालों में से ज़कात लेलीजिए, जिसके द्वारा आप उन्हें पाक और पवित्र कीजिए।
(सूरतुत-तौब: 103)
(2)- निर्धन मुसलमान के लिए किफायत, उसके आवश्यकता की पूर्ति और उसकी खबरगीरी (देख रेख), और उसे ग़ैरूल्लाह के सामने हाथ फैलाने की जि़ल्लत से बचाना।
(3)- कर्ज़दार मुसलमान के कर्ज़ को चुकाकर, और उसके ऊपर क़र्ज़ देने वालों की ओर से जो क़र्ज अनिवार्य है उसकी पूर्ति करके उसके शोक और चिन्ता को हलका करना।
 (4) अस्त व्यस्त और खिन्न (परागन्दा और बिखरे हुए) दिलों को र्इमान और इस्लाम पर एकत्र करना, और उन्हें उनके अन्दर दृढ़ विश्वास न होने के कारण पाए जाने वाले सन्देहों और मानसिक व्याकुलताओं से निकाल कर दृढ़ र्इमान और परिपूर्ण विश्वास की ओर लेजाना।
(5) मुसलमान यात्री की सहायता करना, यदि वह रास्ते में फंस जाए (आपत्ति ग्रस्त होजाए) और उसके पास उसकी यात्रा के लिए पर्याप्त व्यय न हो, तो उसे ज़कात के फण्ड (कोष) से इतना माल दिया जाएगा जिससे उसकी आवश्यकता पूरी होजाए यहां तक कि वह अपने घर वापस लौट आए।
(6)- धन को पवित्र करना, उसको बढ़ाना, उसकी सुरक्षा करना, और अल्लाह तआला की आज्ञापालन, उसके आदेश का सम्मान और उसके मख्लूक़ पर उपकार करने की बरकत से उसे दुर्घटनाओं से बचाना।
जिन धनों में ज़कात अनिवार्य है :
वह चार प्रकार के हैं, जो निम्नलिखित हैं :
1)     घरती से निकलने वाले अनाज और ग़ल्ले।
2)    क़ीमतें (मूल्याएं) जैसे सोना चांदी और बैंक नोट (करेनसियां)।
3)     तिजारत के सामान, इससे अभिप्राय हर वह वस्तु है जिसे कमाने और व्यवपार करने के लिए तैयार किया गया हो, जैसेकि ... जानवर, अनाज, गाडि़यां आदि।
4)     चौपाए और वह ऊंट बकरी और गाय हैं।
इन सब पूंजियों में ज़कात कुछ निर्धारित शर्तों के पाए जाने पर ही अनिवार्य है, यदि वह नहीं पाए गए तो ज़कात अनिवार्य नहीं है।
ज़कात के हक़दार लोग
 इस्लाम में ज़कात के कुछ विशेष मसारिफ (उपभोक्ता) हैं, और वह निम्नलिखित वर्ग के लोग हैं:
1) गरीब और निर्धन लोग (जिनके पास उनकी ज़रूरतों का आधा सामान भी नहीं होता है)
2)  मिसकीन लोग (जिनके पास उनकी ज़रूरत का आधा, या उससे अधिक सामान होता है, किन्तु पूरा सामान नहीं होता है।)
3) - ज़कात वसूल करने पर नियुक्त कर्मचारी।
4) जिनके दिल की तसल्ली की जाती है, (अर्थात नौ-मुस्लिम, मुसलमान क़ैदी आदि)
5)- गुलाम (दास या दासी) आज़ाद करने के लिए।
6) - कर्ज़ खाए हुए लोग, तथा तावान उठाने वाले लोग।
7) - अल्लाह के मार्ग में अर्थात जिहाद (धर्म-युद्ध) के लिए।
8) यात्री (अर्थात वह यात्री जिसका यात्रा के दौरान माल असबाब समाप्त होजाए)
ज़कात के फ़ायदे
1)     अल्लाह और उसके रसूल के आदेश का आज्ञापालन, और अल्लाह और उसके रसूल की प्रिय चीज़ को अपने नफस की प्रिय चीज़ धन पर प्राथमिकता देना।
2)     अमल के सवाब (पुण्य) का कर्इ गुना बढ़ जाना, (अल्लाह तआला का फरमान है):
 مَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنْبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنْبُلَةٍ مِائَةُ حَبَّةٍ وَاللَّهُ يُضَاعِفُ لِمَنْ يَشَاءُ     ,
जो लोग अपना धन अल्लाह तआला के रास्ते में खर्च करते हैं उसका उदाहरण उस दाने के समान है जिसमें सात बालियां निकलें और हर बाली में सौ दाने हों, और अल्लाह तआला जिसे चाहे बढ़ा चढ़ाकर दे। (सूरतुल-बक़्रा: 261)
3)- ज़कात निकालना र्इमान का प्रमाण और उसकी निशानी है, जैसा कि हदीस में है:
  رواه مسلم والصدقة برهان
और सदक़ा (दान करना) (र्इमान का) प्रमाण है। (मुस्लिम)
4)- गुनाहों और दुष्ट आचरण (अख्लाक़) की गन्दगी से पवित्रता प्राप्त करना, अल्लाह तआला का फरमान है :
103 التوبة  خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِمْ بِهَا
आप उनके धनों में से सदक़ा (दान) लेलीजिए, जिसके द्वारा आप उनको पाक साफ करदें।  (सूरतुत-तौबा: 103)
5)    - धन में बढ़ोतरी, बरकत और उसकी सुरक्षा, और उसकी बुरार्इ से बचाव होना, इसलिए कि हदीस में है कि:
رواه مسلم  ما نقص مال من صدقة
दान पुण्य (सदक़ा) करने से धन में कोर्इ कमी नहीं होती। (मुस्लिम)
6)  दान पुण्य करने वाला कि़यामत के दिन अपने दान पुण्य के छावों में होगा, जैसा कि उस हदीस में है कि अल्लाह तआला सात लोगों को उस दिन अपने छाया में स्थान देगा जिस दिन कि उसके छाया के अतिरिक्त कोर्इ और छाया न होगा :
متفق عليه  رجل تصدق بصدقة فأخفاها حتى لا تعلم شماله ما تنفق يمينه
एक वह व्यक्ति जिसने दान पुण्य किया, तो उसे इस प्रकार गुप्त रखा कि जो कुछ उसके दाहिने हाथ ने खर्च किया है, उसका बायां हाथ उसे नहीं जानता हैं। (बुखारी व मुस्लिम)
7 )  अल्लाह तआला की कृपा और दया का कारण है: (अल्लाह तआला का फरमान है):
الأعراف 156, (وَرَحْمَتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ فَسَأَكْتُبُهَا لِلَّذِينَ يَتَّقُونَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاة)
मेरी रहमत सारी चीज़ों को सम्मिलित है, सो उसे मैं उन लोगों के लिए अवश्य लिखूंगा, जो डरते हैं और ज़कात देते हैं। (सूरतुल-आराफ: 156).



Courtesy knowingallah

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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
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